Hindi Diwas 2025: हिंदी का जन्म कैसे हुआ, दुनिया में कितना बढ़ा इसका रुतबा?
TV9 Bharatvarsh September 14, 2025 06:42 PM

Hindi Diwas 2025: हिंदी, केवल एक भाषा भर नहीं है, बल्कि यह भारत की आत्मा और सांस्कृतिक धड़कन भी है. इसकी उत्पत्ति, विकास और वर्तमान स्वरूप एक दीर्घ ऐतिहासिक यात्रा का परिणाम है. हिंदी दिवस (14 सितम्बर) हमें न केवल हिंदी की महत्ता स्मरण कराता है, बल्कि यह भी याद दिलाता है कि दुनिया की सबसे प्राचीन और समृद्ध भाषाओं की धारा का यह एक आधुनिक रूप है, जिसने करोड़ों लोगों को जोड़ने का कार्य किया है.

जानिए, हिंदी कितनी पुरानी, इसके बाद कितनी भाषाओं का जन्म हुआ, हिंदी कितनी ग्लोबल हुई और किन कवियों-लेखकों ने इसे समृद्ध बनाया.

हिंदी की जड़ें कहां से जुड़ी हैं?

हिंदी की जड़ें संस्कृत जैसी प्राचीन भाषा से जुड़ी हैं. संस्कृत को लगभग 3500 से 4000 वर्ष पुरानी भाषा माना जाता है. संस्कृत से प्राकृत और अपभ्रंश भाषाएं बनीं. इन्हीं अपभ्रंश बोलियों से मध्यकाल में हिन्दवी, हिन्दूई, हिन्दोस्तानी बोली उभरकर सामने आई, जिसे आगे चलकर “हिंदी” नाम मिला. इतिहासकार मानते हैं कि हिंदी का रूप लगभग एक हजार साल पहले आकार लेने लगा था, जब हिंदीतर जातीय प्रभावों (फ़ारसी, अरबी, तुर्की आदि) और स्थानीय बोलियों ने मिलकर इसे एक जीवंत, संवादशील भाषा बना दिया.

हिंदी कितनी पुरानी है?

यदि हम इसे संस्कृत व अपभ्रंश से जोड़ें तो हिंदी की जड़ें हजारों साल पुरानी हैं. पर आधुनिक खड़ी बोली आधारित हिंदी लगभग 500-600 साल पुरानी मानी जा सकती है. तुलसीदास की रामचरितमानस (16वीं शताब्दी) और कबीर के दोहे हिंदी के प्रारंभिक मानक रूप को दर्शाते हैं.

हिंदी के बाद कितनी भाषाएं आईं?

मानव सभ्यता की भाषाई यात्रा ऐसी रही है कि नई भाषाएं हमेशा पुरानी से जन्म लेती रही हैं. Ethnologue 2024 के अनुसार आज दुनिया में ज्ञात भाषाओं की संख्या लगभग 7100 है. इनमें से कई छोटी भाषाएं विलुप्त हो रही हैं. अकेले भारतीय उपमहाद्वीप में ही 122 से अधिक मुख्य भाषाएं और 19,500 से अधिक बोलियां मौजूद हैं. हिंदी का जन्म संस्कृत और प्राकृत श्रृंखला से हुआ, और इसके बाद मराठी, गुजराती, पंजाबी, उड़िया, बंगला जैसी आधुनिक भारतीय भाषाओं का भी विकास हुआ.

हिंदी कितनी ग्लोबल हुई?
  • आज हिंदी केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक पहचान बना चुकी है.
  • विश्व स्तर पर हिंदी लगभग 60 करोड़ लोगों द्वारा बोली या समझी जाती है.
  • मातृभाषा के रूप में बोलने वालों की संख्या लगभग 45-48 करोड़ है.
  • दूसरी भाषा के रूप में इसे 12-15 करोड़ लोग प्रयोग करते हैं.
  • विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं की सूची में हिंदी का स्थान तीसरे से चौथे क्रम पर आता है.
  • हिंदी, अंग्रेज़ी, चीनी मंदारिन और स्पेनी जैसी भाषाओं के साथ प्रतिस्पर्धा करती हुई दिखती है.
  • भारत, नेपाल, मॉरीशस, फिजी, त्रिनिदाद, सूरीनाम, गुयाना, अमेरिका, इंग्लैंड, क़तर, सऊदी अरब और यूनाइटेड अरब अमीरात जैसे देशों में हिंदी भाषियों की उल्लेखनीय संख्या है.
  • संयुक्त राष्ट्र में भी हिंदी को बढ़ते महत्व के साथ देखा जा रहा है और हिंदी में अनुवाद की सुविधाएँ बढ़ रही हैं.
हिंदी की गहराई और साहित्यिक परंपरा

हिंदी केवल बातचीत की भाषा नहीं, बल्कि विश्व साहित्य की धरोहर है. और यह जन्म से लेकर आज तक विस्तार लेती जा रही है.

  • भक्ति काल: कबीर, सूरदास, तुलसीदास, रहीम आदि कवियों ने हिंदी को आध्यात्मिक और लोकभाषा का स्वरूप दिया.
  • रीति काल: बिहारी, देव, केशव के काव्य ने हिंदी को श्रृंगार, अलंकार और सौंदर्यपूर्ण भाषा बनाया.
  • आधुनिक काल: भारतेन्दु हरिश्चंद्र, प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, रामधारी सिंह “दिनकर” ने हिंदी को साहित्य और राष्ट्रवाद में नया स्थान दिया.
  • समकालीन युग: हिंदी कथा-साहित्य, कविता, फ़िल्म, नाटक और डिजिटल मीडिया में आधुनिक समय के अनुरूप विकसित हुई है.
क्या है हिंदी की ताकत?

हिंदी आज उत्तर भारत से लेकर मध्य भारत और प्रवासी अंचल तक मजबूत है. यह अन्य भाषाओं से शब्द आत्मसात करने में सक्षम है. अंग्रेज़ी, फारसी व अरबी से हिंदी ने कई शब्द लिए हैं. इंटरनेट पर हिंदी सामग्री लगातार बढ़ रही है. गूगल और सोशल मीडिया पर हिंदी इस्तेमाल करने वालों की संख्या तीव्र गति से बढ़ी है. बॉलीवुड सिनेमा और भारतीय टीवी चैनलों के कारण हिंदी विश्व भर में लोकप्रिय है.

भाषा और पहचान

हिंदी केवल संवाद का साधन नहीं है, बल्कि यह भारतीय पहचान और सांस्कृतिक अस्मिता का प्रतीक है. जब कोई प्रवासी भारतीय हिंदी में बात करता है, तो वह अपनी जड़ों से जुड़ा महसूस करता है. हिंदी गीत, कहावतें, मुहावरे और लोककथाएँ भारतीय समाज की रगों में बहने वाली संस्कृति को जीवित रखते हैं.

अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर चुनौतियां और सम्भावनाएं
  • अंग्रेज़ी का दुनिया भर में वर्चस्व हिंदी के सामने चुनौती है.
  • तकनीकी अनुवाद और मशीन लर्निंग में हिंदी का उपयोग अभी तक उस स्तर पर नहीं है जितना अंग्रेज़ी का है.
  • परन्तु डिजिटल इंडिया, गूगल ट्रांसलेट, एआई आधारित टूल्स, और मोबाइल उपभोक्ता संस्कृति के कारण हिंदी की स्वीकार्यता बढ़ रही है.

इस तरह हम पाते हैं कि हिंदी एक विराट वटवृक्ष की तरह है जिसकी जड़ें हजारों साल पुरानी संस्कृत और प्राकृत परंपरा में फैली हुई हैं. यह भाषा केवल भारतीय जनमानस को जोड़ने वाली डोर नहीं है, बल्कि यह विश्व पटल पर भी अपनी पहचान मजबूती से स्थापित कर चुकी है.

हिंदी दिवस हमें इस भाषा की महिमा, उपयोगिता और गौरव का स्मरण कराता है. यह केवल संवाद की भाषा नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, साहित्य, इतिहास और पहचान का अभिन्न हिस्सा है. यदि हम अपनी भाषा को आत्मविश्वास से अपनाएँ, तो हिंदी आने वाले समय में दुनिया के लिये भी एक प्रमुख संचार माध्यम बन सकती है.

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