Yugrishi Shriram Sharma: Founder of Gayatri Parivar and Pioneer of Spiritual Revolution
Gayatri Parivarश्रीराम शर्मा आचार्य: गायत्री परिवार के संस्थापक श्रीराम शर्मा का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। 20 सितम्बर 1911 को उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के आंवलखेड़ा में जन्मे इस युगऋषि ने अपना सारा जीवन अध्यात्म, मानव चेतना, भारतीय संस्कृति और सभ्यता को समर्पित किया। 2011 में इस महापुरुष की जन्मशती मनायी गई।
श्रीराम शर्मा के द्वारा किये गए उल्लेखनीय कार्यो में अखिल विश्व गायत्री परिवार और ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान की स्थापना प्रमुख हैं। उन्होंने वेद, उपनिषद, स्मृति आदि की व्याख्या की। उन्हें वैज्ञानिक अध्यात्म का अग्रदूत भी कहा जाता है। युग निर्माण योजना जिसे युग परिवर्तन अभियान भी कहा जाता है उनके द्वारा चलाए गए अभियान का हिस्सा है। उनका नारा था हम बदलेंगे युग बदलेगा, हम सुधरेंगे, युग सुधरेगा।
महामना मदन मोहन मालवीय के आत्मीय श्रीराम शर्मा को उनका असीम स्नेह बचपन में ही मिल गया था जब मालवीय जी ने मात्र नौ वर्ष की आयु में उनका यज्ञोपवीत यानी उपनयन संस्कार अपने कर कमलों से संपन्न कराया और गायत्री मंत्र से दीक्षित किया। गायत्री माता की ऐसी कृपा हुई कि 15 वर्ष की आयु में उन्होंने 15 वर्ष की आयु में गायत्री मंत्र के 24 महापुरश्चरण पूरे कर लिये। जिसमें 24 लाख गायत्री मंत्रों का लय बद्ध पाठ भी शामिल था।
इसके अलावा श्री राम शर्मा ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लेकर मातृभूमि का ऋण अदा किया। उनके क्रान्तिकारी गीत न केवल "दैनिक सैनिक" में छपे, बल्कि कानपुर से छपने वाले पत्र 'विद्यार्थी' जिसके सम्पादक श्री गणेशशंकर विद्यार्थी थे, में भी नियमित रूप से प्रकाशित हुए। श्री विद्यार्थी जी उनको निरन्तर प्रोत्साहित करते रहते थे, जिससे प्रेरित होकर उन्होंने अपने गीत कलकत्ता से छपने वाले "दैनिक विश्वामित्र" में भी भेजना प्रारम्भ कर दिया। इन गीतों ने समूचे बंगाल में क्रान्ति की आग भड़काने में अपूर्व योगदान दिया। पीछे तो 'किस्मत' और 'मस्तान्ना' जैसी प्रसिद्ध पत्रिकाओं ने भी उनकी रचनाएँ प्रकाशित करना प्रारम्भ कर दिया। यह गीत अक्सर कांग्रेस के कार्यक्रमों-अधिवेशनों में भी गाये जाते थे ।
क्रांति के इस साधक के गीतों ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का मनोबल बढ़ाया, वहीं क्रान्ति की ज्वाला भी द्रुत गति से भड़काई । ये गीत दैनिक सैनिक में "मत्त प्रलाप" शीर्षक से नियमित रूप से छपा करते थे, जिन्हें आज भी चिरंजीव पुस्तकालय ने सुरक्षित करके रखा है। १९३५-३६ में छपे कुछ गीत इस प्रकार हैं :-
देख-देख कर बाधाओं को पथिक न घबरा जाना ।यह पंक्तियाँ बताती है कि उनके हृदय में क्रान्ति की कितनी जबर्दस्त आग बचपन से ही जल रही थी। यह एक अबूझ पहेली है कि वे ऊपर से उतने ही विनम्र और सेवाभावी थे। एक बार श्री बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' आगरा आये और उन्होंने श्री पालीवाल जी से कहा "मैं कांग्रेस के नेताओं से तो बहुत मिल चुका हूँ मुझे उन स्वयंसेवकों से भेंट कराओ, जिन पर गान्धीजी की छाप हो। श्री पालीवाल जी उन्हें आचार्य जी के पास ले गये और बोले, यह बालक सच्चे अर्थों में कांग्रेस का स्वयंसेवक है।" श्री नवीन जी झुककर उनके पैर छूने लगे, जबकि आयु में वे बहुत बड़े थे । संकोचवश श्री आचार्य जी पीछे हटने लगे तो नवीन जी ने कहा- "बेटा ! आज देश को तुम जैसे स्वयंसेवकों की ही जरूरत है।" श्री नवीन जी के इस कथन को आचार्य श्रीराम शर्मा ने न केवल साबरमती जाकर और पक्का किया, अपितु सारा जीवन ही स्वयंसेवक के रूप में गुजारा । जितना कार्य उन्होंने अकेले किया, उतना कार्य करने वाला व्यक्ति शायद ही कोई और इतिहास में ढूँढ़ने पर मिले। उन्होंने बिना किसी यश की कामना से यदि एकनिष्ठ होकर कार्य न किया होता, तो ३५०० पुस्तकों की संरचना, उनका प्रकाशन-प्रसार, ५-६ पत्रिकाओं का नियमित सम्पादन-प्रकाशन, देश के कोने-कोने की यात्रा, ३००० शक्तिपीठों, १२००० प्रज्ञामण्डलों की स्थापना और १० लाख अखण्ड-ज्योति परिवार का एक विस्तृत संगठन खड़ा न हो पाता।