आंख बंद कर आगे नहीं बढ़ सकते… US ट्रेड-वीजा टेंशन के बीच बोले मोहन भागवत
TV9 Bharatvarsh September 22, 2025 11:42 AM

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ और एच-1बी वीजा नियमों को लेकर चल रहे तनाव को लेकर कहा कि भारत को वर्तमान समस्याओं से निपटने के लिए जो भी जरूरी हो वह करना चाहिए. लेकिन साथ ही भविष्य में ऐसी समस्याओं से बचने के लिए उसे सनातन दृष्टिकोण पर चलते हुए अपना रास्ता खुद बनाना शुरू करना होगा.

रविवार (21 सितंबर) को दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि भारत और अन्य देश आज जिस समस्या का सामना कर रहे हैं वो पिछले 2000 सालों से अपनाए गए विकास के एक खंडित दृष्टिकोण का परिणाम हैं. उन्होंने कहा कि इस दृष्टिकोण में ‘मैं’ और बाकी दुनिया या ‘हम’ और ‘वे’ की भावना प्रबल होती है. उन्होंने कहा ‘ हम इस स्थिति से मुंह नहीं मोड़ सकते. हमें इससे बाहर निकलने के लिए जो भी जरूरी हो, वह करना होगा। लेकिन हम आंख मूंदकर आगे नहीं बढ़ सकते’.

‘हमें अपना रास्ता खुद बनाना होगा’

भागवत ने आगे कहा, इसलिए हमें अपना रास्ता खुद बनाना होगा. हम कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेंगे. लेकिन अनिवार्य रूप से, भविष्य में किसी न किसी मोड़ पर हमें इन सब चीजों का फिर से सामना करना पड़ेगा. क्योंकि इस खंडित दृष्टिकोण में एक ओर मैं होता है और दूसरी ओर बाकी दुनिया, या हम और वे. उन्होंने जीवन के चार लक्ष्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत को जीवन के चार लक्ष्यों – अर्थ (धन), काम (इच्छा और आनंद) और मोक्ष (मुक्ति) के अपने सदियों पुराने दृष्टिकोण का पालन करना चाहिए, जो धर्म से बंधा हो और यह सुनिश्चित करता हो कि कोई भी पीछे न छूटे.

‘हर किसी के अलग-अलग हित होते हैं’

तीन साल पहले अमेरिका के एक शख्स के साथ अपनी मुलाकात को याद करते हुए भागवत ने उस शख्स का नाम लिए बिना कहा कि उन्होंने भारत-अमेरिका साझेदारी और सुरक्षा, आतंकवाद विरोध के साथ ही अर्थव्यवस्था सहित विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग की संभावनाओं पर बात की, लेकिन हर बार उन्होंने यही दोहराया बशर्ते अमेरिकी हितों की रक्षा हो. भागवत ने कहा कि हर किसी के अलग-अलग हित होते हैं इसलिए संघर्ष तो चलता ही रहेगा. फिर सिर्फ राष्ट्र हित ही मायने नहीं रखता. मेरा भी हित है. मैं सब कुछ अपने हाथ में रखना चाहता हूं.

‘तो हम 1947 से लेकर आज तक लगातार लड़ते रहते…’

उन्होंने यह भी कहा कि रत ही एकमात्र ऐसा देश है जिसने पर्यावरणीय मुद्दों पर अपनी सभी प्रतिबद्धताओं को निभाया है. उन्होंने कहा कि अगर हमें हर टकराव में लड़ना होता, तो हम 1947 से लेकर आज तक लगातार लड़ते रहते. लेकिन हमने यह सब सहन किया. हमने युद्ध नहीं होने दिया. हमने कई बार उन लोगों की भी मदद की, जिन्होंने हमारी नीतियों का विरोध किया. उन्होंने कहा कि अगर भारत विश्वगुरु और विश्वमित्र बनना चाहता है तो उसे अपने दृष्टिकोण के आधार पर अपना रास्ता स्वयं बनाना होगा.

उन्होंने कहा कि अगर हमें इसे प्रबंधित करना है, तो हमें अपने दृष्टिकोण से सोचना होगा. हमारे देश का दृष्टिकोण पारंपरिक है, लेकिन यह पुराना नहीं है, यह ‘सनातन’ है. भागवत ने इस बात पर भी बल दिया कि भारत का दृष्टिकोण केवल ‘अर्थ’ और ‘काम’ को छोड़ता नहीं है, बल्कि ये दोनों जीवन के अनिवार्य पहलू हैं, बशर्ते कि वे धर्म से जुड़े हों.

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