कॉलेज डिग्रियों की वैल्यू में गिरावट: क्या यह पुरानी अवधारणा बन गई है?
Naukri Nama Hindi October 13, 2025 11:42 PM
नई दिल्ली में कॉलेज डिग्रियों की बदलती स्थिति


नई दिल्ली, अक्टूबर 2025: पहले सफलता की कुंजी मानी जाने वाली कॉलेज डिग्रियां अब वैसी आर्थिक सुरक्षा नहीं दे रही हैं। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्रियों की एक नई रिपोर्ट में बताया गया है कि शिक्षा की पारंपरिक धारणा में बदलाव आ रहा है। अब हर डिग्री जीवनभर की वित्तीय स्थिरता का आश्वासन नहीं देती। रिपोर्ट में "डिग्री थकान" की बात की गई है, जहां तकनीकी परिवर्तन और ऑटोमेशन ने कई पारंपरिक डिग्रियों का मूल्य कम कर दिया है।


प्रतिष्ठा भी अब पर्याप्त नहीं

हार्वर्ड के श्रम अर्थशास्त्री डेविड जे. डेमिंग और शोधकर्ता कदीम नॉरे की 2020 की स्टडी में यह सामने आया कि कंप्यूटर साइंस, इंजीनियरिंग और बिजनेस जैसे एप्लाइड विषयों की डिग्रियों से मिलने वाला आर्थिक लाभ समय के साथ घट रहा है। पहले ये डिग्रियां "सफलता की कुंजी" मानी जाती थीं, लेकिन अब तकनीकी क्रांति ने इन्हें लगातार नई स्किल्स सीखने पर निर्भर बना दिया है। यहां तक कि प्रतिष्ठित संस्थानों के एमबीए ग्रेजुएट्स भी अब पहले जैसी उच्च श्रेणी की नौकरियों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।


मानवीकी विषयों का पतन

जहां एप्लाइड साइंस के कोर्स में अनिश्चितता है, वहीं ह्यूमैनिटीज़ और सोशल साइंसेज में पहले से ही गिरावट देखी जा रही है। द हार्वर्ड क्रिमसन के आंकड़ों के अनुसार, 2013 से ह्यूमैनिटीज़ में दाखिले लगातार कम हो रहे हैं। छात्र अब तेजी से STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित) और करियर-केंद्रित कोर्स की ओर बढ़ रहे हैं। कंपनियों की प्राथमिकताएं भी बदल रही हैं, और अब वे सामान्य डिग्रियों की बजाय विशिष्ट स्किल्स पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।


10 डिग्रियां जिनकी मार्केट वैल्यू घट रही है

हार्वर्ड की रिसर्च और 2025 के मार्केट ट्रेंड्स के अनुसार, निम्नलिखित 10 कॉलेज डिग्रियां अब पहले जैसी करियर वैल्यू और आर्थिक रिटर्न नहीं दे रही हैं:



  • जनरल बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (एमबीए समेत) – ओवरसैचुरेशन और बदलते हायरिंग पैटर्न के कारण लाभ घटा।

  • कंप्यूटर साइंस – शुरुआती सैलरी अधिक, लेकिन लगातार अपस्किलिंग के बिना स्किल्स जल्दी अप्रासंगिक हो जाती हैं।

  • मैकेनिकल इंजीनियरिंग – ऑटोमेशन और ऑफशोर प्रोडक्शन ने जॉब अवसर घटाए।

  • अकाउंटिंग (लेखांकन) – आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन ने मानवीय भूमिकाओं को कम किया।

  • बायोकैमिस्ट्री – अकादमिक क्षेत्र के बाहर सीमित अवसर।

  • साइकोलॉजी (अंडरग्रेजुएट स्तर) – उन्नत डिग्री के बिना रोजगार के अवसर बेहद कम।

  • अंग्रेज़ी और ह्यूमैनिटीज़ – दाखिलों में गिरावट और अस्थिर करियर वैल्यू।

  • सोशियोलॉजी और सोशल साइंसेज – जॉब मार्केट से कमजोर तालमेल।

  • इतिहास (History) – मिड-कैरियर वेतन वृद्धि सीमित।

  • फिलॉसफी (Philosophy) – सोचने की क्षमता सराही जाती है, लेकिन बाजार में सीधी मांग नहीं।


  • बदलती प्राथमिकताएं

    2025 की स्टूडेंट चॉइस रिपोर्ट भी इसी दिशा में इशारा करती है। इसमें इंजीनियरिंग, कंप्यूटर साइंस और नर्सिंग को सबसे "स्थिर और लाभदायक" विषय बताया गया है। लेकिन रिपोर्ट का यह भी कहना है कि भविष्य में सफलता केवल तकनीकी डिग्रियों पर निर्भर नहीं होगी, बल्कि रचनात्मकता, अनुकूलन क्षमता और भावनात्मक बुद्धिमत्ता रखने वाले छात्र ज्यादा सफल होंगे।


    क्या कॉलेज डिग्री अब पुरानी अवधारणा बन रही है?

    रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि कॉलेज डिग्री खत्म नहीं हो रही, लेकिन उसका अर्थ और मूल्य निश्चित रूप से बदल रहा है। अब यह केवल एक बार मिलने वाला प्रमाणपत्र नहीं रह गया, बल्कि सीखने की निरंतर प्रक्रिया बन गया है। भविष्य उन छात्रों का होगा जो अपनी शिक्षा को लगातार अपडेट करते रहेंगे।


    नई पीढ़ी के लिए सबक

    हार्वर्ड की यह रिपोर्ट आने वाली पीढ़ी के लिए एक चेतावनी और अवसर दोनों है। यह बताती है कि सिर्फ नामी यूनिवर्सिटी या डिग्री अब करियर की सफलता तय नहीं कर सकती। आज की अर्थव्यवस्था में विजेता वही होंगे जो तकनीकी दक्षता के साथ-साथ मानवीय रचनात्मकता, सामाजिक समझ और लचीलापन लेकर आएंगे।


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