नई दिल्ली, 14 अक्टूबर। छत्तीसगढ़ अपनी समृद्ध लोक संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें संगीत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस क्षेत्र के लोक संगीत में मदन सिंह चौहान का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। उन्होंने अपनी मधुर आवाज के माध्यम से छत्तीसगढ़ की परंपरा और संस्कृति को देश-विदेश में फैलाया है। उन्हें स्नेहपूर्वक 'गुरुजी' के नाम से भी जाना जाता है।
मदन सिंह चौहान का जन्म 15 अक्टूबर 1947 को रायपुर में हुआ। संगीत के प्रति उनकी रुचि बचपन से ही थी, लेकिन आर्थिक कठिनाइयों ने उनके संगीत के सफर में बाधाएं डालीं। उन्होंने अपने प्रारंभिक दिनों में ढोलक बजाना शुरू किया, जो कि टिन के पीपे से शुरू हुआ, क्योंकि उनके पास ढोलक खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। पंडित कन्हैयालाल भट्ट के मार्गदर्शन में उन्होंने तबला वादन में महारत हासिल की। ढोलक, तबला और गायन, तीनों क्षेत्रों में उन्होंने उत्कृष्टता प्राप्त की।
चौहान तबला वादन के साथ-साथ गजल और लोक संगीत में भी माहिर हैं। उनकी आवाज में एक ऐसा जादू है जो श्रोताओं को लोक संगीत से जोड़ देता है। छत्तीसगढ़ के पारंपरिक गीतों जैसे पंडवानी और करमा से प्रेरित होकर, वे आधुनिक सूफी संगीत को एक नया रूप देते हैं। उनके गीतों में प्रेम, वियोग और आध्यात्मिकता का अद्भुत मिश्रण होता है, जो श्रोताओं के दिलों को छू जाता है। कबीर की याद में गाया गया उनका प्रसिद्ध गीत 'आज मोरे घर साहिब आए' इस बात का प्रमाण है।
मदन सिंह चौहान एक प्रतिष्ठित संगीत शिक्षक भी हैं। रायपुर में उनके शिष्य देश-विदेश में छत्तीसगढ़ का नाम रोशन कर रहे हैं।
उनकी जीवनभर की संगीत साधना और छत्तीसगढ़ी लोक संगीत में उनके अद्वितीय योगदान के लिए, भारत सरकार ने उन्हें 2020 में पद्मश्री से सम्मानित किया। उस समय के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने कहा था, 'छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया।'
78 वर्ष की आयु में भी, मदन सिंह चौहान संगीत के क्षेत्र में सक्रिय हैं और युवा पीढ़ी को लोक संगीत से जोड़ने का कार्य निरंतर कर रहे हैं।