दिवाली की मिठास में महंगाई की कड़वाहट, आसमान छूती कीमतों ने छीनी मिठाइयों की 'चांदी'!
TV9 Bharatvarsh October 16, 2025 03:42 PM

त्योहारों का मौसम दस्तक दे चुका है और मिठाइयों के बिना दिवाली की कल्पना भी अधूरी है. सोचिए, काजू कतली या गुलाब जामुन पर जब तक चांदी का चमचमाता वर्क न लगा हो, तो वो रौनक कहां. लेकिन इस साल त्योहारों की मिठास में चांदी की बढ़ती कीमतों ने कड़वा कर दिया है. आलम यह है कि मिठाइयों की शान बढ़ाने वाला चांदी का वर्क बाज़ार से गायब सा हो गया है और दुकानदार इसे खरीदने से कतरा रहे हैं. मंगलवार को हाजिर बाज़ार में चांदी के वर्क का भाव 1.9 लाख रुपये प्रति किलोग्राम की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया, जिसने मिठाई कारोबारियों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं.

यह स्थिति मिठाई निर्माताओं के लिए एक पहेली की तरह बन गई है. एक तरफ जहां सरकार ने मिठाइयों पर जीएसटी की दर घटाकर 5% कर दी है, जिससे उन्हें थोड़ी राहत मिलनी चाहिए थी, वहीं दूसरी तरफ चांदी जैसी जरूरी चीजों के आसमान छूते दामों ने उस राहत पर पानी फेर दिया है. हर दुकान के लिए इतना महंगा वर्क खरीदना संभव नहीं है, ज्यादातर दुकानदार इस अतिरिक्त लागत का बोझ ग्राहकों पर डालने से बच रहे हैं.

आसमान छूती कीमतें, फीकी पड़ती चमक

चांदी के वर्क की कीमतों में आए इस उछाल ने सीधे तौर पर मिठाइयों की लागत और उनकी प्रस्तुति को प्रभावित किया है. आगरा के दो सौ साल से भी ज्यादा पुराने प्रतिष्ठान ‘भगत हलवाई’ के मालिक शिवम भगत बताते हैं कि पिछले साल दिवाली पर चांदी के वर्क का जो एक पत्ता 5 रुपये का मिलता था, वह इस साल बढ़कर 8 रुपये का हो गया है. यह लगभग 60% की सीधी बढ़ोतरी है. उनका कहना है, “जीएसटी में कटौती निश्चित रूप से एक सकारात्मक कदम है, लेकिन दूध, चीनी और चांदी जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में लगातार हो रहा उतार-चढ़ाव हमारे जैसे कारोबारियों के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर रहा है. लागत निकालना भी मुश्किल होता जा रहा है.” त्योहारों के समय जब बिक्री सबसे ज्यादा होती है, तब इस तरह की महंगाई मुनाफे को खत्म कर देती है.

GST की राहत पर महंगाई ने फेरा पानी

मिठाई कारोबारियों के लिए यह स्थिति “आगे कुआं, पीछे खाई” जैसी है. सरकार ने जीएसटी घटाकर उन्हें त्योहारी सीजन में एक बड़ा तोहफा दिया था, जिसका मकसद ग्राहकों को सस्ती मिठाइयां उपलब्ध कराना और कारोबार को बढ़ावा देना था. लेकिन चांदी की कीमतों में लगी आग ने इस पूरी उम्मीद को धूमिल कर दिया है. मिठाई विक्रेता इस दुविधा में हैं कि वे जीएसटी कटौती का लाभ ग्राहकों तक कैसे पहुंचाएं, जब उनकी अपनी लागत ही अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई है. यह सिर्फ चांदी की बात नहीं है; परिवहन लागत और अन्य कच्चे माल की कीमतों में भी इजाफा हुआ है, जिससे मिठाई बनाने की कुल लागत काफी बढ़ गई है.

ग्राहकों को बचाने के लिए दुकानदारों ने निकाले नए रास्ते

इस मुश्किल घड़ी में भी मिठाई विक्रेता ग्राहकों को निराश नहीं करना चाहते. वे जानते हैं कि त्योहारी खुशियों के लिए ग्राहक मिठाइयों पर दिल खोलकर खर्च करते हैं और वे इस परंपरा को बनाए रखना चाहते हैं. मुंबई के प्रसिद्ध ‘पारसी डेयरी फार्म’ ने फैसला किया है कि वे मिठाइयों की कीमतें नहीं बढ़ाएंगे. इसके प्रबंध निदेशक बख्तियार के. ईरानी ने कहा कि उनके द्वारा खरीदे जाने वाले वर्क की लागत में 10-15% की वृद्धि हुई है, लेकिन वे इस बोझ को खुद वहन करेंगे. वहीं, दिल्ली के ‘खोया मिठाई’ के संस्थापक सिड माथुर ने इस समस्या से निपटने के लिए एक रचनात्मक तरीका निकाला है. उन्होंने बताया कि कुछ मिठाइयों में वर्क के डिजाइन को बदला जा रहा है या उसका उपयोग कम किया जा रहा है, ताकि लागत को नियंत्रित किया जा सके और मिठाई की खूबसूरती भी बनी रहे. ये कदम दिखाते हैं कि कारोबारी किस तरह ग्राहकों के साथ अपने रिश्ते को महत्त्व देते हुए इस संकट का सामना कर रहे हैं.

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