बाजार में चहकती उत्सव की खुशियांImage Credit source: Pixabay
प्रसिद्ध हिंदी कवि भवानी प्रसाद मिश्र ने कहा था- "गीत बेचता हूं..." लेकिन अब समय बदल चुका है। आजकल कवि गीत लिखना छोड़ चुके हैं, तो अब खुशियों का व्यापार कौन करेगा? चुनावों से लेकर बाजार तक, हर जगह खुशियों का कारोबार जोरों पर है। कोई खुशियां बेच रहा है, तो कोई उन्हें खरीदने में लगा है। नई और रोमांचक खुशियों के साथ-साथ पारंपरिक खुशियों पर भी डिस्काउंट मिल रहा है। ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह की खुशियों की भरमार है। कहीं-कहीं तो बंपर ऑफर भी चल रहे हैं- खुशियां बाय वन, गेट वन! चुनावी वादों और घोषणाओं के साथ खुशियों का यह चमत्कार हर ओर फैला हुआ है।
अगर आपके पास बाजार जाकर खुशियां खरीदने का समय नहीं है, तो चिंता की कोई बात नहीं। खुशियों की होम डिलीवरी भी उपलब्ध है। बस एक ऐप डाउनलोड करें और ऑर्डर करें। आपकी खुशियां आपके दरवाजे पर पहुंचा दी जाएंगी। क्योंकि आपकी खुशी में ही हमारी खुशी है। हम मिलकर खुशियां बांटते हैं। त्योहार हो या चुनाव, हम हर मौके पर आपके साथ हैं। तो बताएं, आप क्या लेना चाहेंगे? छोटी खुशियां, बड़ी खुशियां, हमारे पास हर आकार की खुशियां हैं।
हर उत्सव अब 24×7 ऑनलाइनबजट की चिंता भी नहीं, हम खुशियों को ईएमआई में भी उपलब्ध कराते हैं। आसान किस्तों में, बिना ब्याज के। छोटी खुशियों के लिए एक बटन दबाएं, बड़ी खुशियों के लिए दो। अब उत्सव 24×7 ऑनलाइन हो चुका है। आप इसे संस्कृति का विकास भी कह सकते हैं। एक कॉल करें और हमारी कंपनी का उत्सव पुरुष आपके दरवाजे पर खुशियों का खजाना लेकर हाजिर होगा।
हमारी खुशियों की कोई एक्सपायरी नहीं है, इसकी गारंटी है। अगर खुशियां डैमेज हो जाएं, तो सर्विसिंग की सुविधा भी है। हमारी कंपनी खुशियों का केवल उत्पादन नहीं करती, बल्कि खुशियों का अहसास भी कराती है।
सौगातों की बहारवास्तव में, खुशियों का ऐसा विकास कभी नहीं हुआ। चुनावों में भी खुशियां विस्फोटक हो जाती हैं। रैलियों में ये खुशियां कभी-कभी आक्रामक भी हो जाती हैं। नेताजी कहते हैं- तुम मुझे ‘ये’ दो, मैं तुम्हें ‘वो’ दूंगा। चुनावी मौसम में खुशियां इसी करार के तहत दी जा रही हैं।
हाल ही में एक विज्ञापन में देखा कि एक बुजुर्ग कह रहे हैं- "टेक्नोलॉजी इतनी एडवांस नहीं हुई कि मैसेज पर मुंह मीठा कर सके।" यह उस समय की बात है जब हर चीज की होम डिलीवरी हो रही है। अब हर उत्सव बाजार के लिए एक महोत्सव बन चुका है।
बाजारशास्त्रियों की चपेट में उत्सवजो हाल चुनाव में मतदाताओं का है, वही त्योहारों में खरीदारों का है। उत्सव बाजार की चपेट में है। बाजार में एक मास्टरमाइंड है जो हमें त्योहार मानना सिखा रहा है।
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