कांग्रेस के नेता इस बार कर्नाटक में सत्ता परिवर्तन के प्रयास को पहले से अलग मानते हैं। पहले केवल बातें होती थीं, लेकिन अब उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार इस मामले में गंभीर हैं। 20 नवंबर को सिद्धारमैया के मुख्यमंत्री के रूप में ढाई साल पूरे हो रहे हैं। पहले यह अटकलें थीं कि क्या सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच ढाई साल सत्ता साझा करने का कोई समझौता हुआ था। अब शिवकुमार ने स्पष्ट किया है कि यह एक ‘सीक्रेट डील’ है, जो कुछ लोगों के बीच हुई है। यह सच है कि जून 2023 में सरकार के गठन के समय शिवकुमार को यह वादा किया गया था कि ढाई साल बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। यदि सोनिया और राहुल गांधी ने ऐसा वादा नहीं किया होता, तो शायद स्थिति इतनी गंभीर नहीं होती। कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता मानते हैं कि यदि उस समय शिवकुमार को मुख्यमंत्री बना दिया जाता, तो सिद्धारमैया कुछ नहीं कर पाते। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है और कांग्रेस के प्रति जो गुडविल थी, उसमें कमी आई है। इसलिए आलाकमान किसी को नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकता।
हालांकि, जानकार सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की विदाई तय है, लेकिन सवाल केवल समय का है। कहा जा रहा है कि शिवकुमार को थोड़े समय और धैर्य रखने के लिए मनाया जा रहा है। कांग्रेस के एक नेता ने बताया कि अगले साल अप्रैल और मई में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं, जिनमें दक्षिण के तीन राज्य शामिल हैं। कांग्रेस किसी भी जातीय समीकरण को बिगाड़ना नहीं चाहती। सिद्धारमैया कुरूबा जाति से हैं, जो एक मजबूत पिछड़ी जाति है, जबकि शिवकुमार वोक्कालिगा हैं, जो केवल कर्नाटक में प्रभावी हैं। इसलिए कांग्रेस के नेता मानते हैं कि सिद्धारमैया को हटाने का असर अगले साल के चुनावों पर पड़ सकता है, क्योंकि पिछड़ी जातियां नाराज हो सकती हैं।
इसके अलावा, सिद्धारमैया को हटाने से राहुल गांधी के सामाजिक न्याय के एजेंडे में भी बाधा आ सकती है, क्योंकि वे अकेले पिछड़ी जाति के मुख्यमंत्री हैं। राहुल अधिक से अधिक पिछड़े और दलितों को आगे लाना चाहते हैं। इसलिए, एक पिछड़े मुख्यमंत्री को हटाकर वोक्कालिगा मुख्यमंत्री बनाना उनके एजेंडे के अनुकूल नहीं होगा। मल्लिकार्जुन खड़गे और राज्य के अन्य दलित नेताओं के नाम भी चर्चा में हैं। अगले साल के चुनावों के अलावा, कर्नाटक में जाति गणना की रिपोर्ट भी आने वाली है, जो कांग्रेस आलाकमान के लिए निर्णय लेना आसान बना सकती है। इस प्रकार, सिद्धारमैया की विदाई में दो प्रमुख बाधाएं हैं: जाति गणना और तमिलनाडु व केरल के चुनाव।