हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि वह एसआईआर प्रक्रिया से असंतुष्ट नहीं है। यह केवल एक पहलू है, जबकि दूसरा पहलू राजनीतिक परिदृश्य में विकसित हो रहा है।
सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणियों ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को मजबूती प्रदान की है। सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि निर्वाचन आयोग को एसआईआर कराने का वैधानिक और संवैधानिक अधिकार है। इसलिए, उसने 12 राज्यों में चल रही इस प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। कोर्ट की खंडपीठ ने एसआईआर के खिलाफ दलीलें दे रहे वकीलों से पूछा कि क्या किसी विदेशी नागरिक के आधार कार्ड बनवाने पर उसे वोट डालने का अधिकार मिल जाना चाहिए। एक अवसर पर बेंच ने यह भी कहा कि बिहार में एसआईआर के संदर्भ में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिला है जिसमें जानबूझकर लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाए गए हों।
हालांकि कई राज्यों की याचिकाओं पर न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया है, लेकिन उसके रुख से यह स्पष्ट नहीं होता कि वह इस प्रक्रिया से असंतुष्ट है। दूसरी ओर, राजनीतिक दायरे में कई विपक्षी पार्टियां इस प्रक्रिया की मंशा, कार्यान्वयन के तरीके और कुछ समुदायों के नाम काटने के आरोप लगा रही हैं। बूथ स्तर के अधिकारियों पर बढ़ते कार्यभार, कुछ की आत्महत्या या मौतें, और कुछ के इस्तीफे जैसी घटनाएं इस प्रक्रिया को और विवादास्पद बना रही हैं।
इसका परिणाम यह हो रहा है कि चुनाव संबंधी प्रक्रियाओं और प्रशासनिक व्यवस्था पर अविश्वास की खाई और गहरी हो रही है। इसका दीर्घकालिक प्रभाव होगा, जिससे भविष्य में हर चुनाव की पृष्ठभूमि संदिग्ध बनी रहेगी। यह हैरान करने वाला है कि निर्वाचन आयोग ने इस स्थिति और इसके संभावित परिणामों को समझने की कोई आवश्यकता नहीं समझी है। संभवतः न्यायपालिका इसे केवल कानूनी और संवैधानिक दृष्टिकोण से देख रही है, जबकि इसका एक बड़ा पहलू राजनीतिक है।