कौन हैं Vikram-I के मालिक पवन कुमार चांदना? इसरो की नौकरी छोड़ लिख दी सफलता की कहानी
et November 28, 2025 04:42 PM
क्या कोई यह सोच सकता है, कि गणित में कमजोर होने के बाद भी आईआईटी में सिलेक्शन हो जाए? लोगों को यही लगता है कि आईआईटी और ऐसे ही बड़े इंस्टिट्यूट में एडमिशन के लिए आपका गणित तो एकदम पक्का होना चाहिए। लेकिन पवन कुमार चांदना की सफलता आपके भी ऐसे विचारों को बदल देगी। जिन्होंने गणित में कमजोर होने के बाद भी न केवल आईआईटी में एडमिशन लिया, बल्कि इसरो में नौकरी भी हासिल की। अब Vikram-I रॉकेट का निर्माण करके कम उम्र में ही दुनिया भर में चर्चा में बने हुए हैं।
विक्रम-I क्या है ? इस रॉकेट का नाम भारत के स्पेस प्रोग्राम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। जिसके लंबाई लगभग सात मंजिला इमारत के बराबर है। कंपनी का दावा है कि इसे केवल 24 घंटे में असेंबल करके लॉन्च के लिए तैयार भी किया जा सकता है। यह एक मल्टी स्टेज लॉन्च व्हीकल है। इस रॉकेट के अंदर 300 किलोग्राम पेलोड को लो अर्थ आर्बिट तक ले जाने की क्षमता है।
पवन कुमार चांदना कौन हैं ?साल 1991 हरियाणा के कुरुक्षेत्र में पवन कुमार चांदना का जन्म हुआ। जो केवल 34 साल की उम्र में ही दुनिया भर में प्रसिद्ध हो चुके हैं। जिन्होंने आईआईटी खरगपुर से बीटेक और थर्मल साइंस एंड इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। कॉलेज के दिनों से ही उनका झुकाव रॉकेट डायनेमिक्स और लॉन्च सिस्टम में था।
बड़े सपने, बड़ी मेहनत कई लोगों का सपना होता है इसरो में नौकरी करना। लेकिन अपने सपने को पूरा करने के लिए पवन कुमार चांदना ने इसरो में अच्छी खासी नौकरी भी छोड़ दी। पहले उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से आईआईटी खड़कपुर में एडमिशन हासिल किया। इसके बाद अपने सपने की और आगे बढ़ते हुए इसरो में नौकरी भी हासिल कर ली। लेकिन केवल इसरो में ही नौकरी करना उनका सपना नहीं था। वे अपनी कंपनी की शुरुआत करके रॉकेट बनाना चाहते थे। पावन कुमार GSLV प्रोजेक्ट का भी हिस्सा रह चुके हैं।
नौकरी छोड़ लिया रिस्क इसरो में लगभग 6 साल तक बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स पर काम करने के बाद, साल 2018 अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़कर पवन कुमार चांदना और उनके दोस्त नागा भरत ने मिलकर स्काईरूट नाम की एयरोस्पेस कंपनी की नींव रखी। यह वही कंपनी है जिसके अंतर्गत प्राइवेट स्पेस विक्रम-l रॉकेट का निर्माण हुआ है। यह रॉकेट चर्चा में उसे वक्त आया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 नवंबर को इसे दुनिया के सामने पेश किया।
चुनौतियों से सामनाऐसा नहीं है कि पवन कुमार और नागा भरत को यह सफलता इतनी आसानी से मिल गई। एक बड़ी कंपनी का निर्माण करना और उसके लिए फंडिंग जुटाना बड़ी चुनौती से कम नहीं होता है। यह चुनौती स्काईरूट के सामने भी थी। लेकिन दोनों की तकनीकी में मजबूत पकड़ और बड़े लक्ष्य ने निवेशकों को पैसा लगाने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें 10 करोड़ रुपए की पहली फंडिंग केवल 45 मिनट की मीटिंग में ही मिल गई थी। हालांकि इस मीटिंग के लिए उन्होंने कई दिनों से तैयारी की थी। इसके बाद उनकी कंपनी ने कुल 750 करोड रुपए की फंडिंग हासिल की।
युवाओं के लिए प्रेरणाइतनी कम उम्र में खुद की कंपनी बनाना और फिर उसे कंपनी के जरिए भारत का पहला प्राइवेट रॉकेट का निर्माण किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है। वे युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन चुके हैं। उन्होंने यह साबित किया है कि सही दिशा में सही तरीके से की गई मेहनत से बड़े से बड़ा मुकाम भी हासिल किया जा सकता है।