रात का सन्नाटा छा जाता है, दिनभर की थकान बिस्तर पर आते ही गायब होने लगती है। पति-पत्नी एक साथ बिस्तर पर लेटते हैं और तभी शुरू होती है छोटी-सी घरेलू "जंग" — “यह मेरी साइड है, तुम उधर जाओ।” जवाब मिलता है, “क्या फर्क पड़ता है, बिस्तर तो एक ही है!” लेकिन सच यह है कि फर्क पड़ता है। थोड़ी ही देर में दोनों अपनी-अपनी पसंदीदा जगह पर लौट आते हैं।
यदि यह कहानी आपको जानी-पहचानी लग रही है, तो आप अकेले नहीं हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बिस्तर की कोई खास साइड चुनना संयोग नहीं है। इसके पीछे हमारे मनोविज्ञान, आदतें और सुरक्षा की भावना छिपी होती है।
सोने की आदत और स्वास्थ्य पर असर
अध्ययन बताते हैं कि दुनिया में लगभग आधे वयस्क करवट लेकर सोना पसंद करते हैं। यह तरीका रीढ़ की हड्डी के लिए लाभकारी है और नींद को भी निरंतर बनाए रखता है। लेकिन कौन सी करवट किस पर असर डालती है, यह जानना दिलचस्प है:
दाईं करवट: शोध के अनुसार दाईं तरफ सोने वाले लोग सबसे शांतिपूर्ण नींद लेते हैं। इससे शरीर के प्रमुख अंगों और नसों पर कम दबाव पड़ता है।
बाईं करवट: एसिडिटी या रिफ्लक्स की समस्या वाले लोगों के लिए बाईं तरफ सोना बेहतर माना जाता है। गर्भवती महिलाओं के लिए भी यह साइड सुरक्षित मानी जाती है।
पीठ के बल सोना: जो लोग पीठ के बल सोते हैं, उन्हें नींद में बार-बार टूट-फूट और खर्राटे या स्लीप एपनिया का खतरा अधिक होता है।
सुरक्षा और मानसिक आदतें
बिस्तर की साइड चुनने में केवल शारीरिक आराम नहीं, बल्कि अचेतन मन का सुरक्षा की तलाश भी महत्वपूर्ण है। बहुत लोग दीवार की ओर सोते हैं क्योंकि इससे उन्हें सुरक्षा का एहसास होता है। वहीं, कुछ लोग दरवाजे के पास सोना पसंद करते हैं, ताकि आपातकाल में जल्दी प्रतिक्रिया दी जा सके।
मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि ऐसे लोग खुद को "रक्षक" या खतरे से बचने वाले की भूमिका में देखते हैं। जैसे हम स्कूल या ऑफिस में एक ही सीट को बार-बार चुनते हैं, उसी तरह दिमाग बिस्तर की अपनी पुरानी साइड को आरामदायक और सुरक्षित मानता है।
पर्सनैलिटी का भी संबंध
शोध बताते हैं कि आपकी सोने की साइड आपकी पर्सनैलिटी को भी दर्शा सकती है। यूके में 2011 में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि बाईं ओर सोने वाले लोग जीवन में अधिक खुशमिजाज और आशावादी होते हैं, जबकि दाईं ओर सोने वाले लोग थोड़े गंभीर और नियम-कायदा फॉलो करने वाले होते हैं। अक्सर कपल्स अपनी पसंदीदा साइड रिश्ते की शुरुआत में ही तय कर लेते हैं और बाद में उसे बदलना मुश्किल हो जाता है।
करवट और दिमाग का "वेस्ट मैनेजमेंट"
करवट लेकर सोना दिमाग के "वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम" के लिए भी फायदेमंद हो सकता है। जानवरों पर हुई स्टडी में पाया गया कि करवट लेकर सोने से दिमाग से टॉक्सिन्स आसानी से बाहर निकलते हैं। इससे भविष्य में अल्जाइमर जैसी भूलने की बीमारी का खतरा कम हो सकता है।
क्यों बदलना मुश्किल है?
एक बार जब हमारी पसंदीदा साइड तय हो जाती है, तो उसे बदलना आसान नहीं होता। इसे "मसल मेमोरी" और मानसिक आदत कहा जाता है। दिमाग उस जगह को नींद, आराम और सुरक्षा के साथ जोड़ लेता है। यही कारण है कि होटल या नए घर में साइड बदलने पर हमें बेचैनी और असहजता महसूस होती है।