कर्नाटक में कांग्रेस सरकार की हेट स्पीच और हेट क्राइम से जुड़े बिल का लगातार विरोध किया जा रहा है. पहले केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे के बाद अब वहां के हिंदू धर्म से जुड़े संगठन भी इसके विरोध में उतर आए हैं. राज्यपाल से पत्र लिखकर इस बिल को अपनी मंजूरी नहीं दिए जाने की मांग कर रहे हैं. शोभा करंदलाजे ने भी राज्यपाल से इस बिल को अपनी सहमति नहीं देने का अनुरोध किया था.
राज्य के एक दक्षिणपंथी संगठन, हिंदू जन जागृति समिति ने कल रविवार को कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत से नफरत फैलाने वाले भाषणों और नफरत भरे अपराधों पर रोक लगाने वाले नए बिल को मंजूरी नहीं देने का अनुरोध किया, इसे “असंवैधानिक” और बोलने की आजादी के साथ-साथ धार्मिक आजादी के लिए भी “गंभीर खतरा” बताया.
हिंदू समिति ने इन मुद्दों पर जताई चिंताहिंदू जन जागृति समिति ने राज्यपाल को भेजे अपने एक ज्ञापन में, कर्नाटक हेट स्पीच एंड हेट क्राइम्स (प्रिवेंशन) बिल, 2025 (Karnataka Hate Speech and Hate Crimes (Prevention) Bill, 2025) का जमकर विरोध किया और आगाह किया कि इससे जुड़े प्रावधानों का दुरुपयोग किया जा सकता है, जैसे कि असहमति को दबाना.
साथ ही यह भी दावा किया गया कि यह बिल “अस्पष्ट, बहुत व्यापक और असंवैधानिक है, और संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत खुलकर बोलने की आजादी के साथ-साथ धार्मिक आजादी के लिए भी गंभीर खतरा है.” समिति ने “हेट स्पीच”, “हेट क्राइम” और “पूर्वाग्रह से ग्रसित” की “अत्यधिक अस्पष्ट और व्यापक” परिभाषाओं पर चिंता जताई, और उसने आगाह किया कि ये “इरादे या आसन्न हिंसा की अनुपस्थिति में भी” किसी भाषण का क्रिमिनलाइज कर सकते हैं, और इस वजह से अधिकारियों द्वारा मनमानी और चुनिंदा लोगों पर कार्रवाई संभव हो सकती है.
धार्मिक परंपराओं पर चिंता जताते हुए, इस पत्र में कहा गया है कि यह बिल सबूत का बोझ भी आरोपी पर ही डालता है जिससे वह “सार्वजनिक हित” या “सद्भावनापूर्ण धार्मिक उद्देश्य” साबित कर सके. लेकिन यह पहले से तय आपराधिक न्यायशास्त्र (Criminal Jurisprudence) के खिलाफ है.
साथ ही समिति ने आगाह किया कि “वैदिक ग्रंथों का संदर्भ देना, धार्मिक प्रवचन, सैद्धांतिक बहस, धर्म परिवर्तन पर चर्चा, या फिर धार्मिक विचारधाराओं की आलोचना” जैसी अहम हिंदू गतिविधियों को प्रस्तावित कानून के जरिए अपराधी बनाया जा सकता है.
किसी भाषण से संबंधित अपराधों को संज्ञेय और गैर-जमानती बनाए जाने पर आपत्ति जताते हुए, समिति ने कहा कि इससे तत्काल गिरफ्तारी, साधु-संतों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों का उत्पीड़न, तथा असहमति और स्वतंत्र अभिव्यक्ति का दमन हो सकता है. साथ ही बिल की इस बात के लिए भी आलोचना की गई कि यह पर्याप्त न्यायिक निगरानी के बिना “कार्यकारी मजिस्ट्रेटों और पुलिस अधिकारियों को व्यापक शक्तियां” देता है.
केंद्रीय मंत्री शोभा ने भी जताई आशंकासमिति ने देश के मौजूदा कानूनों के साथ ओवरलैप होने का जिक्र करते हुए कहा कि बिल के तहत शामिल चीजें पहले से ही भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम में शामिल हैं. साथ ही राज्य का कानून संविधान की धारा 254 के तहत टकराव का जोखिम पैदा करता है. समिति ने राज्यपाल गहलोत से अनुरोध किया कि वे “धारा 200 के तहत बिल पर अपनी सहमति रोक दें” और “बिल को स्पष्ट परिभाषाओं, भाषण और धर्म की आजादी के लिए सुरक्षा उपायों तथा न्यायिक निगरानी तंत्र पर पुनर्विचार के लिए विधायिका को वापस भेज दें”.
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इससे पहले केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे ने भी राज्यपाल गहलोत से कर्नाटक सरकार के हेट स्पीच एंड हेट क्राइम (प्रिवेंसन) बिल 2025 पर अपनी सहमति नहीं देने का अनुरोध किया था. उनका कहना था कि यह बिल अस्पष्ट है और इसके दुरुपयोग किए जाने की आशंका बहुत अधिक है.