अरावली पर बवाल, पर्यावरण मंत्री का दावा भ्रम फैलाया जा रहा है, क्या बोले अखिलेश?
Webdunia Hindi December 22, 2025 04:42 PM

Aravalli Mountain Range : अरावली पर्वत श्रंखला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बवाल मचा हुआ है। केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव का कहना है कि अरावली को लेकर कुछ लोग भ्रम फैला रहे हैं। यहां किसी भी तरह की छूट नहीं दी गई है और ना ही दी जाएगी। वहीं अखिलेश ने कहा कि अरावली को बचाना अपरिहार्य है क्योंकि यह दिल्ली और एनसीआर के लिए एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच है या कहें कुदरती ढाल है।

क्या है मामला : सुप्रीम कोर्ट के हाल के एक फैसले ने अरावली पहाड़ियों को लेकर पर्यावरणविदों और आम जनता के बीच बहस छेड़ दी है। इस फैसले को '100-मीटर का फैसला' कहा जा रहा है, जिसमें यह साफ किया गया है कि अरावली इलाके में 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अपने आप 'जंगल' के तौर पर क्लासिफाई नहीं किया जा सकता।

केंद्र सरकार के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने समिति की उस सिफारिश को स्वीकार किया है, जिसके तहत संरक्षित क्षेत्र, इको-सेंसिटिव जोन, टाइगर रिजर्व, आर्द्रभूमि और इनके आसपास के क्षेत्रों में खनन पर पूरी तरह रोक रहेगी। केवल राष्ट्रीय हित में आवश्यक, रणनीतिक और गहराई में स्थित खनिजों के लिए सीमित छूट दी जा सकती है।


क्या बोले भूपेंद्र यादव : केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि भ्रम फैलाना बंद करें! अरावली के कुल 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में मात्र 0.19% हिस्से में ही खनन की पात्रता हो सकती है। बाकी पूरी अरावली संरक्षित और सुरक्षित है।

उन्होंने कहा कि अरावली पर्वतमाला भारत के चार राज्यों दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात में फैली हुई है। अरावली का क्षेत्र 39 जिलों में विस्तारित है। अरावली को लेकर कानूनी प्रक्रिया कोई नई नहीं है, बल्कि 1985 से इस पर याचिकाएं चल रही हैं। इन याचिकाओं का मूल उद्देश्य अरावली क्षेत्र में खनन पर सख्त और स्पष्ट नियम लागू करना रहा है, जिसका सरकार पूरी तरह समर्थन करती है।

पर्यावरण मंत्री के अनुसार, 100 मीटर की सुरक्षा सीमा पहाड़ी के बॉटम यानी जिस स्थान तक पहाड़ी का आधार फैला होता है, वहां से मानी जाती है। पहाड़ी के नीचे से 100 मीटर तक का पूरा इलाका संरक्षित रहेगा। वहां किसी भी तरह की खुदाई या गतिविधि की अनुमति नहीं होगी। अगर दो अरावली पहाड़ियों के बीच सिर्फ 500 मीटर का ही अंतर है तो वह पूरी जमीन भी अरावली रेंज का हिस्सा मानी जाएगी। यानी केवल पहाड़ ही नहीं, बल्कि उनके बीच की भूमि भी संरक्षण के दायरे में आएगी।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार का मकसद किसी तरह का विकास रोकना नहीं, बल्कि प्राकृतिक विरासत, पर्यावरण संतुलन और भविष्य की पीढ़ियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

क्या बोले अखिलेश : सपा नेता अखिलेश ने अपनी पोस्ट में कहा कि अरावली को बचाना कोई विकल्प नहीं है बल्कि ये तो संकल्प होना चाहिए। मत भूलिए कि अरावली बचेगी तो ही एनसीआर बचेगा। अरावली को बचाना अपरिहार्य है क्योंकि यह दिल्ली और एनसीआर के लिए एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच है या कहें कुदरती ढाल है। अरावली ही दिल्ली के ओझल हो चुके तारों को फिर से दिखा सकती है, पर्यावरण को बचा सकती है। अरावली पर्वतमाला ही दिल्ली के वायु प्रदूषण को कम करती है और बारिश-पानी में अहम भूमिका निभाती है।

edited by : Nrapendra Gupta

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