Putrada Ekadashi Ke Rules: हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है. भगवान विष्णु को समर्पित यह व्रत आत्मिक शुद्धि, पुण्य प्राप्ति और पारिवारिक कल्याण का मार्ग दिखा सकता है. पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है. इसे संतान सुख और वंश वृद्धि के लिए विशेष फलदायी व्रत माना गया है. पंचांग के अनुसार, साल 2025 में यह एकादशी 30 दिसंबर को है.धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गर्भवती महिलाओं के लिए यह एकादशी पवित्र मानी जाती है. शास्त्रों में उनके लिए व्रत के विशेष नियम बताए गए हैं, जिनका पालन करना आवश्यक है.
गर्भवती महिलाओं के लिए व्रत के नियमधर्मग्रंथों और विद्वानों के अनुसार, गर्भवती महिलाओं को निर्जल या कठोर उपवास नहीं करना चाहिए. शास्त्र स्पष्ट करते हैं कि गर्भ में पल रहे शिशु की सुरक्षा सर्वोपरि है. इस कारण गर्भवती महिलाएं अपनी शारीरिक क्षमता अनुसार फलाहार या सात्विक भोजन के साथ एकादशी का पालन कर सकती हैं. यदि स्वास्थ्य अनुकूल न हो, तो उपवास के बजाय मंत्र जप, कथा श्रवण और पूजा को व्रत का मुख्य अंग माना गया है. शास्त्र बताते हैं कि इसे भी पूर्ण व्रत का फल प्राप्त होता है.
पूजा और आचरण के नियमगर्भवती महिलाओं को प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए. भगवान विष्णु या बाल गोपाल की पूजा करें, दीप जलाएं और तुलसी पत्र अर्पित करें. इस दिन क्रोध, तनाव और नकारात्मक विचारों से दूर रहना आवश्यक है. गर्भवती महिला का मानसिक भाव गर्भस्थ शिशु पर प्रभाव डाल सकता है. इसलिए इस दिन शांत मन, शुभ विचार और संयमित वाणी रखने की विशेष आवश्यकता है.
क्या करें और क्या न करें?गर्भावस्था में किया गया पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत माता और गर्भस्थ शिशु दोनों के लिए अत्यंत कल्याणकारी माना गया है. इस दिन संयम, भक्ति और सात्विक आचरण को अपनाने से संतान के संस्कार शुभ बनते हैं. शास्त्रों के अनुसार, यह व्रत कठोर तप से अधिक आध्यात्मिक प्रभावी है और माता-पिता के जीवन में संतुलन, शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है.
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Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है. टीवी9 भारतवर्ष इसकी पुष्टि नहीं करता है.