15 लाख इंजीनियर हर साल: क्या उन्हें मिल रही है नौकरी?
तरुण अग्रवाल September 16, 2024 04:42 PM

भारत दुनिया भर में इंजीनियरिंग टेलेंट के लिए जाना जाता है. हर साल भारत में करीब 15 लाख इंजीनियर्स बनकर तैयार होते हैं. ये संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है. लेकिन फिर भी इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स की संख्या और उन्हें मिलने वाले रोजगार के बीच एक बड़ा अंतर है. एक छोटा हिस्सा ही नौकरी पाने में सफल हो पाता है.

NASSCOM ने 2019 में ऐसा ही एक सर्वेक्षण किया था जिसमें पता चला था कि भारत में हर साल 15 लाख इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स तैयार करता है. इनमें से केवल 2.5 लाख ही नौकरी पाने में सफल होते हैं. इसका मतलब है कि लगभग 83% छात्र इंजीरियरिंग करके भी नौकरी नहीं पा रहे हैं. हर छह ग्रेजुएट इंजीनियरिंग छात्र में से 1 को ही नौकरी मिल पाती है. वहीं AICTE मान्यता प्राप्त कॉलेजों से ग्रेजुएट होने वाले नए इंजीनियरों में से 2017 से 2018 के बीच करीब 50% ने नौकरी पाई.

नीति आयोग ने 2022 में एक रिपोर्ट में बताया था कि भारत में लगभग 48% इंजीनियरिंग छात्रों को नौकरी नहीं मिल रही है. आयोग ने इस बात पर जोर दिया कि उच्च शिक्षा में सुधार और कौशल विकास की आवश्यकता है ताकि छात्र नौकरी पाने में सक्षम हो सकें. मतलब कि एजुकेशन सिस्टम इस तरह से बदलने की जरूरत है कि यह छात्रों को आवश्यक कौशल और ज्ञान प्रदान हो सकें. जिससे उन्हें नौकरी पाने में मदद मिल सके.

डिग्री के बाद भी नौकरी आखिर क्यों नहीं मिलती
भारत के एक मशहूर उद्यमी और इन्फोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने देश के एजुकेशन सिस्टम पर टिप्पणी की थी. उन्होंने कहा था, "भारत के इंजीनियरिंग कॉलेज केवल 25 फीसदी काबिल इंजीनियर तैयार कर रहे हैं और लगभग 80-85 फीसदी युवा किसी भी नौकरी के लिए योग्य नहीं हैं."

NASSCOM की अध्यक्ष डेबजानी घोष ने भी हाल ही में आईटी सेक्टर में कौशल की कमी के बारे में चिंता व्यक्त की थी. उन्होंने कहा था कि आवश्यक काबिलियत की कमी के कारण आईटी कंपनियों को नए ग्रेजुएट्स को काम पर रखने से पहले उन्हें ट्रेनिंग देने में अधिक समय और संसाधन खर्च करने पड़ते हैं.


निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्लेसमेंट में 50-70% की गिरावट
Disenosys कंपनी के फाउंडर और सीईओ ने अपनी लिंक्डइन पोस्ट में बताया, साल 2023 में प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजों के प्लेसमेंट में 50-70% की गिरावट देखी गई है. यह आंकड़ा आईटी के लिए है, जो इंजीनियरिंग में सबसे ज्यादा प्लेसमेंट वाले डिपार्टमेंट्स में से एक है. मैकेनिकल इंजीनियरिंग का आंकड़ा और भी कम है. क्योंकि कंपनियां अपनी हायरिंग नीतियों पर गौर कर रही हैं, इसलिए वे अब शायद ही कभी किसी नए व्यक्ति को लेने और उन्हें नौकरी के लिए ट्रेन करने के लिए तैयार हों. इसके बजाय, वे काबिल और अनुभवी इंजीनियरों की तलाश में हैं क्योंकि वे अब बाजार में अच्छी संख्या में हैं.

उन्होंने आगे कहा, इसलिए मैकेनिकल इंजीनियर जो ग्रेजुएट्स होते हैं, बेरोजगार हो जाते हैं या तो अनुभव की कमी के कारण या मुख्य रूप से कंपनियों को जिस काबिलियत की जरूरत है उसकी कमी के कारण. फिर कुछ समय बाद उन्हें अपने रुचि के क्षेत्र में जाने के लिए लाखों रुपये खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ता है. अगर उन्हें पहले ही सही मार्गदर्शन मिलता, तो वे बच सकते थे.

क्या भारत में अच्छे कॉलेज की कमी?
STRI अकेडमी के सीईओ प्रफुल्ल रामदास वानारे ने हाल ही में अपनी लिंक्डइन पोस्ट में कहा, भारत में शिक्षा महंगी हो रही है और इंजीनियरिंग मध्यवर्ग परिवारों के लिए सबसे अधिक चुने जाने वाले ऑप्शन्स में से एक है क्योंकि यह दूसरे ऑप्शन्स की तुलना में बहुत अधिक खर्च नहीं करता है. इंजीनियरिंग में प्रवेश पाना भी आसान है क्योंकि देश में 4500+ इंजीनियरिंग कॉलेज हैं.

"क्योंकि कोर नौकरियों की कमी है, लोग अपनी इंजीनियरिंग के बावजूद आईटी नौकरियों की तलाश करते हैं. भारत इंजीनियर्स तैयार करने वाला एक बड़ा हब है, लेकिन दुख की बात है कि हमारे पास उनके लिए पर्याप्त नौकरियां नहीं हैं. अच्छे कॉलेजों के छात्र अच्छी कंपनियों में नौकरी पर रख लिए जाते हैं और कुछ छात्र हायर एजुकेशन के लिए जाते हैं लेकिन बाकी 80%–90% के पास कोई ऑप्शन नहीं हैं. हालांकि कई नए स्टार्टअप आ रहे हैं और भारत में कई आईटी दिग्गज हैं लेकिन वे हर साल लाखों फ्रेशर्स को नहीं रख सकते हैं."

प्रफुल्ल रामदास वानारे ने ये भी कहा कि अगर आप काबिल हैं तो एक फ्रेशर के रूप में भी अच्छी सैलेरी प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन दुख की बात है कि हमारे पास कई कॉलेज होने के बावजूद अच्छे कॉलेजों की संख्या बहुत कम है.

क्या है भारत में इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थिति?
भारत में साढ़े चार हजार से ज्यादा इंजीनियरिंग कॉलेज हैं. भारत सरकार का नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF) के हर साल देश में टॉप-100 इंजीनियरिंग कॉलेजों की लिस्ट जारी करता है. खास बात ये है कि इनमें से ज्यादातर सरकारी कॉलेज हैं. इनमें 21 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) और 21 राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (NIT) शामिल हैं.

इसके अलावा ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत के टॉप-100 इंजीनियरिंग कॉलेजों में से कोई भी कॉलेज दुनिया के 150 सबसे अच्छे कॉलेज की लिस्ट में भी शामिल नहीं है. यूसी न्यूज के अनुसार, दुनिया के टॉप इंजीनियरिंग कॉलेजों की लिस्ट में 163 रैंक पर तमिलनाडु का वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (वीआईटी)  पहला भारतीय इंजीनियरिंग कॉलेज है. 


कंपनियां इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स की क्वालिटी से संतुष्ट नहीं?
2009 में वर्ल्ड बैंक ने एक सर्वे किया था जिसमें पता चला कि 64% नियोक्ता इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स की क्वालिटी से संतुष्ट नहीं थे या बहुत कम संतुष्ट थे. सर्वे में ये भी पता चला कि भारतीय इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स सिर्फ छोटी-मोटी चीजें ही समझते हैं, बड़ी-बड़ी तकनीकी समस्याएं सुलझाने में उन्हें दिक्कत होती है.

दरअसल, ज्यादातर इंजीनियरिंग छात्र खुद भी जानते हैं कि उनकी पढ़ाई का कोई मतलब नहीं है. 2009-2010 में एक सर्वे किया गया था जिसमें दिल्ली के 1178 इंजीनियरिंग छात्रों से बात की गई. पता चला कि कॉलेज में सिर्फ थ्योरी पढ़ाई जाती है और प्रैक्टिकल काम बहुत कम होता है. आधे से ज्यादा छात्रों को कभी भी अपने सीखे हुए काम को असल में करने का मौका ही नहीं मिला. सरकारी कॉलेजों में प्रैक्टिकल काम करने के ज्यादा मौके मिलते हैं जबकि प्राइवेट कॉलेजों में ऐसा कम होता है.

ग्लोबल इंडिया टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में एक सर्वे किया गया था जिसमें 48 सरकारी और प्राइवेट कॉलेजों में पढ़ रहे 7000 से ज्यादा इंजीनियरिंग छात्रों से बात की गई थी. आधे से अधिक छात्रों ने कहा कि उनकी पढ़ाई के दौरान उनके ज्ञान, कौशल और क्षमताओं में काफी सुधार हुआ है. हालांकि, केवल एक तिहाई छात्रों ने अपनी प्राप्त शिक्षा की गुणवत्ता को औसत से अधिक माना. बाकी या तो जवाब नहीं दिया या अनिश्चित थे.

इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स का कैसा है भविष्य
इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स के लिए भविष्य खराब दिख रहा है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) टूल्स के इस्तेमाल में तेजी से बढ़ोतरी होने से कई लो-स्किल प्रोग्रामिंग रोल खत्म हो जाएंगे. 2019 में द एस्पायरिंग माइंड (अब SHL) ने 750 कॉलेजों से 170,000 ग्रेजुएट्स का सर्वे किया. चौंकाने वाली बात यह थी कि अध्ययन से पता चला कि केवल 3% इंजीनियरों में AI से संबंधित नौकरियों के लिए आवश्यक काबिलियत थी.

यहां तक कि ग्रेजुएट होने और भारत की बड़ी कंपनियों में नौकरी पाने के बाद भी बहुत सारे इंजीनियरों को अपने स्किल्स अपग्रेड करने में दिक्कत होती है. अक्सर लगातार स्किल इंप्रूवमेंट और 'सीखते हुए करते रहने' के लिए प्रोत्साहन की कमी भी होती है.

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