पहाड़ी क्षेत्र में अगेती आलू की खेती में रखें इन बातों का ध्यान
Garima Singh September 21, 2024 06:27 PM

श्रीनगर गढ़वाल उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में अब किसान पारंपरिक खेती छोड़कर सब्जियों की खेती पर बल दे रहे हैं पहले यहां के किसान सिर्फ़ गेहूं, धान, और मडुआ की खेती करते थे, लेकिन अब वे अधिक फायदा कमाने के लिए आलू, प्याज और गोभी समेत अन्य सब्जियों की खेती भी कर रहे हैं ऐसे में, यदि आप भी पर्वतीय क्षेत्र के किसान हैं, तो आलू की खेती करना चाहते हैं तो कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ेगा माना जाता है कि आलू की खेती से बेहतर उत्पादन लेना कोई बहुत कठिन काम नहीं है लेकिन सबसे पहले मिट्टी का चुनाव, उन्नत प्रजाति के बीज और उर्वरकों के ठीक इस्तेमाल और खेती करने ठीक विधि का पता होना महत्वपूर्ण है

गढ़वाल यूनिवर्सिटी के कृषि जानकार ईश्वर सिंह ने लोकल 18 को कहा कि पहाड़ों में आलू की अगेती बुवाई 15 से 25 सितंबर और इसकी पछेती बुवाई के लिए 15-25 अक्टूबर तक का समय ठीक माना जाता हैलेकिन उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में आलू की खेती सितंबर से पहले ही प्रारम्भ कर दी जाती है हालांकि, मध्य हिमालयी क्षेत्र में अभी भी अगेती आलू की खेती की जा सकती है आलू की खेती के लिये बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है और पर्वतीय क्षेत्रों में ये कई स्थान पाई जाती हैं

पहाड़ी क्षेत्र के लिए आलू की बेस्ट किस्में
ईश्वर सिंह बताते हैं कि अगेती आलू की खेती के लिए 15 से 30 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त होता है अगेती आलू की खेती के समय ऐसी किस्मों का चयन करना चाहिए जो अधिक तापमान सहन कर सकें, जिनमें कुफरी सूर्या एक प्रमुख प्रजाति है, जिसे सीपीआरआई, मोदीपुरम, यूपी द्वारा विकसित किया गया है किसान इस प्रजाति को अगेती फसल के रूप में उगा सकते हैं और इससे अच्छा फायदा कमा सकते हैं

ऐसे करें आलू की खेती
ईश्वर सिंह ने लोकल 18 को कहा कि आलू की खेती 3 प्रकार के बेड बनाकर की जा सकती है फ्लैट बेड में आलू लगाते समय दो बार मिट्टी चढ़ानी होती है, जबकि ट्रेंच में 15 से 20 दिन बाद मिट्टी चढ़ाई जाती है मेड वाले आलू पर 30 से 35 दिन में मिट्टी चढ़ाने की जरूरत होती है आलू लगाने के लिए 5 सेंटीमीटर तक के आलू को काटा जाता है और फिर उसे फफूंदनाशक से उपचारित किया जाता है, इसके बाद इसे खेत में लगाया जाता है आलू की फसल में 8 से 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी होती है अगेती आलू की फसल 60 से 80 दिनों में तैयार हो जाती है

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