राजस्थान के रणथम्भोर टाइगर रिज़र्व की खुली पोल
Sneha Srivastava September 22, 2024 06:27 PM

दुनिया में जब कभी टाइगर्स की बात की जाती है तो हर किसी के जहन में सबसे पहला नाम रणथम्भोर टाइगर रिज़र्व का ही आता है, ये वो टाइगर रिज़र्व है जिसने टाइगर और वाइल्डलाइफ साइटिंग की परिभाषा को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है. रणथम्भोर वो नाम है जिसकी बदौलत आज हिंदुस्तान के एक या दो नहीं चार टाइगर रिज़र्व जिन्दा है.

रणथम्भोर नाम की अपनी एक अलग परिभाषा है, जो तीन भिन्न-भिन्न शब्दों से मिलकर बनी है, इसमें पहला शब्द रण है जिसका मतलब युद्धभूमि होता है, दूसरा शब्द थम्ब जो यहां की 7 किलोमीटर लम्बी सिंगल पहाड़ी को स्तम्भ के रूप में दर्शाता है, और तीसरा शब्द है भोर, जो रणभूमि और पहाड़ी के बीच की स्थान को भवर की तरह दिखाता है. ये शब्द उस स्थान को दिखाते हैं जो आज 80 से अधिक टाइगर्स का घर है. विंध्य और अरावली पहाड़ियों की तलहटी में बसे रणथंभौर को केवल बाघ ही नहीं बल्कि वनस्पतियों और जीवों की विविधता के लिए भी जाना-जाता है. 392 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला रणथंभौर नेशनल पार्क हाड़ौती पठार के किनारे पर स्थित है, जो चंबल नदी के उत्तर और बनास नदी के दक्षिण में विशाल मैदानी भूभाग पर फैला है. रणथंभौर अभयारण् का नाम यहाँ के मशहूर रणथम्भौर दुर्ग पर रखा गया है, तो आईये आज चलते हैं रणथंभौर नेशनल पार्क की टाइगर सफारी

रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान के सवाईमाधोपुर ज़िले में स्थित है, इसे उत्तर हिंदुस्तान के बड़े राष्ट्रीय उद्यानों में गिना जाता है. रणथंभौर उद्यान को हिंदुस्तान गवर्नमेंट ने 1955 में सवाई माधोपुर खेल अभयारण् के तौर पर स्थापित किया था. बाद में देशभर में बाघों की घटती संख्या से चिंतित होकर गवर्नमेंट ने इसे 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर अभयारण् घोषित किया और बाघों के संरक्षण की कवायद प्रारम्भ की. इस प्रोजेक्ट से अभयारण् और राज्य को फायदा मिला और रणथंभौर एक सफारी पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन गया. इसके चलते 1984 में रणथंभौर को राष्ट्रीय अभयारण् घोषित कर दिया गया. 1984 के बाद से लगातार राज्य के अभ्यारणों और वन क्षेत्रों को संरक्षित किया गया. साल 1984 में ‘सवाई मानसिंह अभयारण् और ‘केवलादेव अभयारण् की घोषणा भी की गई, और बाद में इन दोनो नयी सेंचुरी को भी बाघ संरक्षण परियोजना से जोड़ दिया गया.

रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान में जानवरों, पक्षियों, उभयचरों, रेप्टाइल्स, वनस्पतियों और जीवों की कई देशी और विदेशी प्रजातियों के साथ दुनिया के सबसे अद्भुत बाघों की प्रजाति भी पाई जाती है. रिकॉर्ड्स के मुताबिक इस पार्क में रेप्टाइल्स की कुल 35, मैमल की 40 और पक्षियों की 320 प्रजातियाँ पाई जाती हैं. इस टाइगर रिज़र्व को बाघों का अभयारण् बोला जाता है, लेकिन यहाँ बड़ी संख्या में अन्य वन्यजीवों की मौजूदगी भी है, जिनमे तेंदुए, कैराकल, मछली पकड़ने वाली बिल्लियां, जंगली बिल्लियां, सियार, चीता, लकड़बग्‍घा, दलदली मगरमच्‍छ, जंगली सुअर और हिरण की विभिन्‍न प्रतातियां शामिल है. सर्दियों में अनेक प्रवासी पक्षी यहाँ आते हैं, जिनमें चील, क्रेस्टड सरपेंट ईगल, ग्रेट भारतीय हॉर्न्ड आउल, तीतर, पेंटेड तीतर, क्वैल, स्परफाइल मोर, ट्री पाई और कई तरह के स्टॉर्क शामिल हैं.  ये प्राकृतिक विवधता इस पार्क को वन्यजीव प्रेमियों और बर्ड वॉचर्स के लिए सबसे बेस्ट स्थान बनाती है. यह अभयारण् विविध प्रकार की वनस्पति, पेड़-पौधों, लताओं, छोटे जीवों और पक्षियों के लिए विविधताओं से भरा घर है. रणथम्भौर में हिंदुस्तान का सबसे बड़ा बरगद भी एक लोकप्रिय स्थल है. रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान की वनस्पति प्रजातियों में मुख्य रूप से ढोक, बरगद, पीपल, नीम, आम, इमली, जामुन, बेर, छिला, बबूल, गोंद, गुर्जन, कदम, खैर, खजूर, काकेरा, कारेल, खिमी, किकर, महुआ और सालार पाए जाते हैं.

रणथंभौर नेशनल पार्क में कुल 10 सफारी ज़ोन हैं, जिसमें से हर ज़ोन की अलग सुन्दरता और विशेषता है. हर ज़ोन में अलग तरह के वन्य जीव या पक्षी दिख सकते हैं. लेकिन बात जब बाघों की आती है, तो कुछ खास ज़ोन ही हैं, जहां इन बाघों के नज़र आने की संभावनाएं बढ़ जाती है. रणथंभौर नेशनल पार्क के कोर एरिया में 5 जोन उपस्थित है. माना जाता है कि बाघों के दिखने की सबसे अधिक आसार इन 5 जोन क्षेत्रों में ही होती है. जंगल के जोन नंबर 1 से 3 के बीच सबसे अधिक घने जंगल, पानी के तालाब और पथरिले क्षेत्र हैं, जो इन्हें बाघों के रहने और छिपने के लिए आदर्श स्थान बनाते हैं. पर्यटकों और जंगल सफारी के गाईड का मानना है कि गेट नंबर 3 जिसे सुल्तानपुर गेट भी बोला जाता है, में बाघ सबसे अधिक नजर आते हैं. रणथंभौर नेशनल पार्क के बफर क्षेत्र में जोन 6 से 10 उपस्थित है.

रणथंबोर नेशनल पार्क के 17 सौ वर्ग किलोमीटर में आज करीब 84 बाघ-बाघिन हैं, इसमे 25 बाघ, 25 बाघिन और 34 शावक हैं. रणथंभौर कई प्रसिद्ध टाइगर्स का घर रहा है, इनमे दुनिया की सबसे मशहूर बाघिन मछली, रणथंभौर का राजा सलमान, मातृत्व भावना और शिकार कौशल के लिए जानी जाने वाली नोरा, विशाल आकार और ताकतवर दहाड़ के लिए जाना जाने वाला टाइगर टी 73, रोमियो, लैला, डॉलर, उस्ताद, माला, जंगली, बीना वन, बीना टू और सितारा शामिल है.

रणथंबोर नेशनल पार्क की सबसे प्रसिद्ध टाइग्रेस को मछली के नाम से जाना जाता है. मछली वो टाइग्रेस है जिसकी दुनिया में सबसे अधिक फोटोज़ खींची गयी, साथ ही मछली के नाम दुनिया की सबसे अमीर बाघिन होने का और दुनिया की सबसे पॉपुलर बाघिन होने का रिकॉर्ड भी शामिल है. मछली का जन्‍म 1997 में हुआ था. इस बाघिन के चेहरे के बायीं तरफ मछली के आकार का निशान था, जिसके चलते इसका नाम मछली रखा गया था. मछली ने 2 वर्ष की उम्र में शिकार करना प्रारम्भ कर दिया था और अपनी मां के टेरिटरी पर कब्‍जा कर लिया था. उसके नाम पर कुछ विश्‍व रिकॉर्ड भी दर्ज हैं, जैसे एक बाघ औसतन 7-8 वर्ष तक एक क्षेत्र पर कब्‍जा कर सकता है, लेकिन मछली दुनिया की एकमात्र ऐसी बाघिन थी जिसने पूरे रणथंभौर नेशनल पार्क पर 15 वर्ष तक राज किया. मछली ने एक बार 13 फीट लम्बे मगरमछ को जंग में मृत्यु के घाट उतार दिया था, जिसके बाद इसे विश्वभर में द लेडी ऑफ द लेक और क्रोकोडाइल किलर जैसे विभिन्‍न उपनाम भी दिए गए. मछली को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड भी मिल चुका है.

अगर आप रणथंभौर सेंचुरी की सैर करने आये हैं तो इस पार्क के अंदर स्थित रणथंभौर के किले की सैर भी कर सकते हैं. यह किला जयपुर के महाराजाओं का पूर्व शिकारगाह रहा है. इसके अतिरिक्त आप इस पार्क के पास स्थित भगवान गणेश के सबसे मशहूर मंदिरों में से एक, गणेश त्रिनेत्र मंदिर के दर्शन करने के लिए भी जा सकते हैं. इसके साथ ही यहां जो लोग दर्शन करने के लिए आते हैं वो मंदिर के पास पत्थर के छोटे घर बनाते हैं, जिससे उनकी वास्तविक घर बनाने की इच्छा पूरी हो सके.

रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान के सभी पर्यटन जोन 1 अक्टूबर से 30 जून तक जंगल सफारी के लिए खुले रहते हैं. साल के शेष महीनों यानि जुलाई से सितंबर में पार्क के जोन 1 से 5, मानसून के मौसम के कारण पर्यटकों के लिए बंद रहते हैं, जबकि जोन 6 से 10, मानसून में सफारी के लिए खुले रहते हैं. वैसे तो मानसून के मौसम में पार्क सफारी के लिए खुला रहता है, लेकिन नवंबर से अप्रैल का समय रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान में घूमने के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है. क्योंकि इस समय टाइगर दिखने की आसार सबसे अधिक होती है.

रणथंभौर नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व में दो तरह की जंगल सफारी मौजूद हैं, जीप सफारी और कैंटर सफारी. दोनों तरह की सफारी के लिए आपको अपनी सीट पहले से बुक करनी होगी जो औनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से बुक की जा सकती है. पर्यटक सुबह और शाम की जंगल सफारी बुक कर सकते हैं. आम तौर पर सुबह की सफारी सुबह 06:30 से 10:00 बजे तक और शाम की सफारी दोपहर 02:30 से 06:00 बजे तक होती है. हालाँकि मौसम के मुताबिक सफारी का समय भिन्न-भिन्न हो सकता है. जीप सफारी के लिए भारतीय नागरिकों को तेरह सौ पचास रूपये प्रति आदमी और विदेशी नागरिकों को पच्चीस सौ रूपये प्रति आदमी खर्च करने पड़ते हैं. वहीँ कैंटर सफारी के लिए भारतीय नागरिकों को 815 रूपये प्रति आदमी और विदेशी नागरिकों को 2000 प्रति आदमी खर्च करने पड़ते हैं.

रणथम्भोर नेशनल पार्क राष्ट्र के सभी हिस्सों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है, यदि आप हवाई जहाज से रणथम्भोर नेशनल पार्क की यात्रा करना चाहते हैं तो बता दें कि इसका निकटतम हवाई अड्डा जयपुर है. जो पार्क से केवल 180 किमी दूर स्थित है. रेल द्वारा रणथम्भोर नेशनल पार्क की यात्रा करने के लिए सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन सवाई माधोपुर रेलवे स्टेशन है. यहां से रणथम्भोर नेशनल पार्क करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. सड़क मार्ग से रणथम्भोर नेशनल पार्क पहुंचने के लिए सबसे करीबी बस अड्डा सवाई माधोपुर है. जो पार्क से केवल 11 किमी की दूरी पर स्थित है. एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन और बस अड्डे से आप टाइगर रिज़र्व तक पहुंचने के लिए टैक्सी या कैब की सहायता ले सकते हैं.

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