‘हरियाणा में प्रॉपर्टी ID और पोर्टल-राज के कारण हुई परेशानी
Garima Singh September 23, 2024 12:27 PM

‘हरियाणा में प्रॉपर्टी ID और पोर्टल-राज के कारण हुई कठिनाई बड़ा इश्यू है. जिन लोगों के मकान 50-60 वर्ष पहले बने थे, उन पर लाखों की रिकवरी निकाल दी गई. जमकर लूट-खसोट मचाई. 70 से 80% प्रॉपर्टी ID गलत थीं. घर-दुकान-शोरूम-प्लाट खरीदने वाले भी परेशान हैं

ये पीड़ा केवल हरियाणा के यमुनानगर में रहने वाले प्रॉपर्टी डीलर अशोक गुप्ता की नहीं है. प्रदेश में जिसके नाम पर भी घर, मकान, दुकान या प्लाट है, वह इसी कठिन का सामना कर रहा है. अशोक गुप्ता तो तंग आकर प्रॉपर्टी डीलिंग का काम ही छोड़ गए. जिन लोगों ने 50-60 वर्ष पुराने नक्शे वगैरह संभाल कर नहीं रखे, वह दफ्तरों के धक्के खा रहे हैं.

कैथल में दुकान चला रहे विश्व कहते हैं कि 5 वर्ष में काम नहीं हुए. नायब सैनी ने सीएम बनने के बाद कुछ अच्छे निर्णय लिए लेकिन उससे पहले खट्टर साहब से लोग खुश नहीं रहे. किसान और जाट बीजेपी से खुश नहीं हैं.

हरियाणा में बीजेपी अपनी गवर्नमेंट के पोर्टल सिस्टम को भ्रष्टाचार समाप्त करने का सबसे बड़ा हथियार बताती रही है. दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी सत्ता में आते ही इसे समाप्त करने का वादा कर रही है. पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स मानते हैं कि मनोहर लाल खट्‌टर ने बतौर मुख्यमंत्री पहले टर्म (2014-19) में अच्छी गवर्नमेंट दी लेकिन दूसरे कार्यकाल में गाड़ी बेपटरी हो गई.

हरियाणा की 90 सीटों पर 5 अक्टूबर को एक साथ वोट डाले जाएंगे और नतीजे 8 अक्टूबर को आएंगे. प्रदेश में हवा का रुख समझने के लिए दैनिक भास्कर ने लोकल लोगों, पॉलिटिकल पार्टियों और एक्सपर्ट्स से बात की.

 

 

  1. प्रदेश में मुख्य मुकाबला बीजेपी बनाम कांग्रेस पार्टी है. लगभग 20 वर्ष बाद कांग्रेस पार्टी अपने बूते बहुमत का आंकड़ा हासिल कर सकती है. पोलिंग से 2 सप्ताह पहले पार्टी 90 में से 40 से 42 सीटों पर अच्छी पोजिशन में दिख रही है. मतदान की तारीख आने तक ये नंबर घट-बढ़ सकता है. 10 वर्ष से गवर्नमेंट चला रही बीजेपी दूसरे नंबर पर रहते हुए 18 से 25 सीटें जीत सकती है. जीटी रोड और अहीरवाल बेल्ट में उसके प्रदर्शन पर काफी कुछ निर्भर करेगा. पार्टी के रणनीतिकारों को आशा है कि कांग्रेस पार्टी की तरफ जा रहे वोट बैंक में इनेलो, जेजेपी, AAP और बागी-निर्दलीय सेंध लगाकर उसकी राह आसान कर सकते हैं.
  2. निर्दलीय हमेशा से हरियाणा में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं. इस बार भी 5 से 8 सीटों पर निर्दलीय कैंडिडेट जीत सकते हैं.
  3. रीजनल पार्टियों में ओमप्रकाश चौटाला की भारतीय नेशनल लोकदल (इनेलो) ने बसपा (BSP) से गठबंधन किया है. इन्हें 2 से 4 सीटें मिल सकती है. दूसरा क्षेत्रीय दल दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (JJP) है. दुष्यंत ने चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी (ASP) से गठजोड़ किया है लेकिन इनका खाता खुलना कठिन है. आम आदमी पार्टी (AAP) पहली बार अपने बूते लगभग सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है. उसका वोट शेयर बढ़ सकता है.
  4. हरियाणा की कुल जनसंख्या में 20% से अधिक अनुसूचित जातियां (SC) है. राज्य की 17 सीटें इनके लिए रिजर्व हैं. 2019 में बीजेपी ने इनमें से 5 और कांग्रेस पार्टी 7 सीटें जीती. बाकी JJP-निर्दलीय को गईं. बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव में दोनों रिजर्व सीटें अंबाला-सिरसा हार गई. कांग्रेस पार्टी 17 रिजर्व सीटों में से 11 पर आगे रही. यदि इनेलो-BSP और JJP-ASP गठबंधन के चलते दलित वोट बंटे तो लाभ बीजेपी को मिलेगा. कांग्रेस पार्टी के लिए सांसद कुमारी सैलजा की नाराजगी कोढ़ में खाज साबित हो सकती है.
  5. भाजपा-कांग्रेस, दोनों बागियों से जूझ रही हैं. कांग्रेस पार्टी अपने 36 और बीजेपी 33 बागियों को इंकार चुकी है लेकिन आज भी 15 सीटों पर बीजेपी के 19 और 20 सीटों पर कांग्रेस पार्टी के 29 बागी मैदान में हैं. बागी जिस पार्टी के वोटबैंक में जितनी अधिक सेंध लगाएंगे, उसे उतना ही हानि होगा.
  6. लोग बीजेपी से कम और उसके नेताओं से अधिक नाराज हैं. हाईकमान भी इसे भांप चुका था इसलिए उसने अपने 41 विधायकों में से 15 के टिकट काट दिए. इनमें 4 मंत्री थे. लोगों को सबसे अधिक नाराजगी पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्‌टर से रही. इसी वजह से बीजेपी को लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उनकी स्थान नायब सैनी को सीएम कुर्सी पर बैठाना पड़ा. हालांकि ग्राउंड पर इसका खास असर नजर नहीं आता क्योंकि सैनी को परफॉर्मेंस दिखाने के लिए महज 51 दिन मिल पाए. इसके उलट कांग्रेस पार्टी ने इस मामले को भुनाने के लिए अपने सभी 31 विधायकों को रिपीट किया है.
 

अब पढ़िए राज्य की 7 बेल्ट में कौन सी पार्टी की सीटवाइज क्या स्थिति…

1. जीटी रोड बेल्ट : बीजेपी के लिए गढ़ बचाना मुश्किल

भाजपा को सत्ता दिलाने में सबसे बड़ा सहयोग इसी बेल्ट का रहा. 2014 में पार्टी की 47 में से 21 सीटें और 2019 में 40 में से 12 सीटें इसी क्षेत्र से आईं. मनोहर लाल खट्टर, नायब सैनी के साथ-साथ गवर्नमेंट में रहे अनिल विज, कंवरपाल गुर्जर, सुभाष सुधा, महिपाल ढांडा इसी एरिया से आते हैं. स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता भी यहीं से हैं.

इस रीजन में ज्यादातर वोटर गैर जाट हैं और बीजेपी की राजनीति इन्हीं के इर्दगिर्द घूमती है. इस बार खट्‌टर मैदान से बाहर हैं और सैनी को सीट बदलते हुए करनाल की स्थान लाडवा से उतारा गया है. जगाधरी में AAP के टिकट पर उतरे कांग्रेस पार्टी के बागी आदर्श पाल गुर्जर बिरादरी से आते हैं और वह शिक्षा मंत्री रहे कंवरपाल गुर्जर को सीधे हानि पहुंचा रहे हैं.

अंबाला कैंट में अनिल विज को पिछले 3-4 चुनाव के मुकाबले इस बार कई गुना अधिक पसीना बहाना पड़ रहा है. एंटी इनकम्बेंसी के कारण स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता और सुभाष सुधा की राह भी मुश्किल दिखती है. कांग्रेस पार्टी 2019 के मुकाबले इस क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन करेगी और बीजेपी की सीटें सिंगल डिजिट तक समेट सकती है.

 

2. अहीरवाल बेल्ट: राव का विरोध बदल सकता है समीकरण

हरियाणा का ये दूसरा ऐसा क्षेत्र है जहां बीजेपी स्ट्रॉन्ग रही है. उसने 2014 में यहां की सभी 11 और 2019 में 11 में से 8 सीटें जीती. अहीर बाहुल्य इस क्षेत्र में पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा या प्लस पाॅइंट कहें तो वह राव इंद्रजीत सिंह हैं. कांग्रेस पार्टी के बड़े लीडरों में कैप्टन अजय सिंह यादव और राव दान सिंह इसी बेल्ट से आते हैं.

भाजपा में अभय सिंह यादव और राव नरबीर जैसे इक्का-दुक्का चेहरों को छोड़ दें तो पूरी अहीर बेल्ट को राव इंद्रजीत अपने हिसाब से हांकते रहे हैं. उनका यही स्टाइल इस बार उनकी मुसीबतें बढ़ाता दिख रहा है. अटेली से अपना पॉलिटिकल डेब्यू करने जा रही उनकी बेटी आरती पहले ही चुनाव में फंसी हुई नजर आती हैं. यहां राव विरोधी उनकी मुश्किलें बढ़ाने में जुटे हैं. नारनौल में ओमप्रकाश यादव और नांगल चौधरी में अभय सिंह यादव की स्थिति कुछ ठीक है.

कांग्रेस की बात करें तो महेंद्रगढ़ सीट पर राव दान सिंह और रेवाड़ी में कैप्टन अजय यादव के बेटे और लालू प्रसाद यादव के दामाद चिरंजीव राव कंफर्टेबल पोजिशन में हैं. राव इंद्रजीत के भाई राव यदुवेंद्र ने अधिक हानि नहीं पहुंचाया तो कोसली में कांग्रेस पार्टी के जगदीश यादव जीत सकते हैं.

गुरुग्राम, बादशाहपुर, सोहना, पटौदी और बावल में अगले 10-12 दिन में ऊंट किसी भी तरफ बैठ सकता है.

 

3. साउथ हरियाणा: बीजेपी पर 2019 का प्रदर्शन दोहराने का दबाव

यूपी और दिल्ली से लगते फरीदाबाद-पलवल की 9 सीटें दोनों प्रमुख पार्टियों के लिए जरूरी हैं. मोदी लहर के बावजूद 2014 में बीजेपी यहां अधिक अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई लेकिन 2019 में उसने यहां की 9 में से 7 सीटें जीत ली.

ब्रजभूमि से लगते इस क्षेत्र में गुर्जरों का असर है. फरीदाबाद से लगातार तीसरी बार लोकसभा सांसद बने बीजेपी के कृष्णपाल गुर्जर इस बिरादरी का प्रमुख चेहरा हैं. इस बार वह फरीदाबाद NIT सीट से अपने बेटे देवेंद्र चौधरी के लिए टिकट चाहते थे. इसके चलते यहां कैंडिडेट का घोषणा नॉमिनेशन के अंतिम दिन तक रुका रहा. उसके बाद पार्टी ने गुर्जर के बेटे की स्थान विपुल गोयल को टिकट थमा दिया. कांग्रेस पार्टी में पार्टी प्रदेश अध्यक्ष चौधरी उदयभान के अतिरिक्त नीरज शर्मा और करण दलाल इसी क्षेत्र से हैं.

दिल्ली से सटे होने के कारण यहां आम आदमी पार्टी का असर है. शहरी वोटरों ने साथ दिया तो फरीदाबाद सीट बीजेपी के खाते में जा सकती है. फरीदाबाद NIT, बड़खल, पलवल और होडल में कांग्रेस पार्टी की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर दिखती है. हथीन, तिगांव और पृथला में मुकाबला 50-50 है.

 

4. बांगर बेल्ट: कद्दावर नेताओं की भावी पीढ़ी का टेस्ट, दुष्यंत कठिन में

हरियाणा का हार्ट कही जाने वाली इस बेल्ट पर बड़े चेहरों के आमने-सामने होने के कारण सबकी नजर रहती है. सर छोटूराम के नाती बीरेंद्र सिंह के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी सांसद रणदीप सुरजेवाला और जयप्रकाश जेपी इसी क्षेत्र से आते हैं. 2019 में इन तीनों परिवारों को हार झेलनी पड़ी थी.

इस बार इन तीनों नेताओं के बेटे कांग्रेस पार्टी टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. कैथल में रणदीप के बेटे आदित्य सुरजेवाला को शुरुआती एज है लेकिन कलायत में जयप्रकाश जेपी ने विवादित बयानबाजी से अपने बेटे विकास सहारण की राह कठिन बना दी है.

जींद की हाईप्रोफाइल सीट उचाना में बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह कड़े मुकाबले में फंसे हैं. जाट वोट बंटे तो 2019 में अपनी मां प्रेमलता को JJP नेता दुष्यंत चौटाला के हाथों मिली हार का बदला लेने की बृजेंद्र सिंह की राह कठिन हो जाएगी.

चौटाला परिवार भी उचाना से ताल ठोकता रहा है. ओमप्रकाश चौटाला को सजा होने के बाद, उनके पोते दुष्यंत चौटाला ने अपनी अलग पार्टी बनाते हुए ये सीट स्वयं के लिए चुनी लेकिन इस बार के नतीजे उनके लिए शायद ही सुखद रहें.

जींद की जुलाना सीट रेसलर विनेश फोगाट की वजह से चर्चा में है. विनेश का यह पहला चुनाव है और उन्हें जिताना कांग्रेस पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है.

सफीदों और जींद शहर में कांग्रेस-भाजपा की सीधी भिड़न्त है. नरवाना में इनेलो कैंडिडेट विद्यारानी चौंका सकती हैं.

कैथल की पूंडरी सीट पर 6 बार से निर्दलीय उम्मीदवार जीतता रहा है और इस बार भी कांग्रेस पार्टी के बागी सतबीर भाणा यह रिकॉर्ड बरकरार रख सकते हैं. गौसेवा करते रहे भाणा 2 चुनाव हार चुके हैं इसलिए वोटरों में उनके प्रति कुछ सहानुभूति है.

ओबीसी वर्ग से आने वाले सतबीर भाणा को रोड बिरादरी के वोट कांग्रेस-BJP में बंटने का लाभ मिल सकता है. भाणा कांग्रेस पार्टी में रणदीप सुरजेवाला ग्रुप से जुड़े थे और पार्टी टिकट सुल्तान जडौला के हिस्से में जाने पर वह निर्दलीय उतर गए.

 

5. देशवाल बेल्ट: हुड्‌डा की अपने गढ़ में बादशाहत कायम रहेगी

पुराना रोहतक और जाटलैंड कहलाने वाले इस क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी नेता भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा का दबदबा है. रोहतक-झज्जर और सोनीपत के इस एरिया में मोदी वेव के बावजूद बीजेपी न तो 2014 में बढ़त बना पाई और न 2019 में.

इस बार हुड्‌डा अपने किले में अधिक मजबूत दिख रहे हैं. रोहतक-झज्जर की 8 में से 7 सीटें कांग्रेस पार्टी को जाती दिख रही हैं. यदि कांग्रेस पार्टी की अंदरूनी जंग ने हानि नहीं किया तो महम सीट भी दांगी परिवार जीत सकता है. कांग्रेस पार्टी के पुराने कद्दावर आनंद सिंह दांगी 2019 का चुनाव महम में निर्दलीय बलराज कुंडू से हार गए थे. इस बार आनंद सिंह दांगी ने अपने बेटे बलराम दांगी को टिकट दिलाया है.

सोनीपत की 6 में से 4 सीटों- बरौदा, गोहाना, राई और खरखौदा में कांग्रेस पार्टी बेहतर स्थिति में है. गन्नौर में कांग्रेस पार्टी कैंडिडेट कुलदीप शर्मा और सोनीपत में सुरेंद्र पंवार को सबसे बड़ा सहारा हुड्‌डा का है. गन्नौर में जाट वोटरों का झुकाव बीजेपी के बागी देवेंद्र कादियान की तरफ है. गन्नौर सीट पर अब तक 13 चुनाव हुए हैं और इनमें से 6 बार विनिंग मार्जिन 2 हजार से कम रहा है. केवल 3 चुनाव ऐसे रहे जब जीत का अंतर 10 हजार से अधिक पहुंचा. इस बार भी यहां करीबी मुकाबला है.

सोनीपत सीट से 2019 में विधानसभा चुनाव जीते सुरेंद्र पंवार पर पिछले दिनों प्रवर्तन निदेशालय की रेड पड़ी थी. वह 24 जुलाई से कारावास में हैं. पंवार का प्रचार उनकी पुत्रवधु समीक्षा पंवार और दोस्तों ने संभाल रखा है. सोनीपत में कांग्रेस पार्टी को बीजेपी की गुटबाजी का लाभ मिल सकता है. यहां पूर्व कैबिनेट मंत्री कविता जैन और उनका परिवार कांग्रेस पार्टी से आकर बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ रहे निखिल मदान की सहायता से इनकार कर चुका है.

 

6. बागड़ बेल्ट: पिछले दो चुनाव की तरह मिक्स परिणाम के आसार

यह क्षेत्र हरियाणा के तीनों लाल परिवारों- देवीलाल, बंसीलाल और भजनलाल की कर्मभूमि रहा है. विधानसभा सीटों के लिहाज से यह जीटी रोड बेल्ट के बाद राज्य का दूसरा सबसे बड़ा एरिया है. यहां के पांचों जिलों में जाट वोटरों का डॉमिनेंस है. 2014 हो या फिर 2019, कोई पार्टी इस क्षेत्र में एकतरफा जीत दर्ज नहीं कर पाई. इस बार भी परिणाम मिक्स रहने के चांस हैं.

सिरसा की पांच सीटों पर देवीलाल कुनबे का दबदबा रहा है लेकिन परिवार में हुई फूट के बाद 2019 के नतीजे चौटाला फैमिली के लिए सुखद नहीं रहे. ओपी चौटाला की सियासी विरासत आगे बढ़ाने की प्रयास कर रहे अभय चौटाला केवल ऐलनाबाद सीट जीत पाए.

यहां की 3 सीटों पर इस बार भी चौटाला परिवार आमने-सामने है. रानियां से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे रणजीत चौटाला के सामने अभय चौटाला के बेटे अर्जुन चौटाला हैं. अभय के बड़े भाई अजय चौटाला की JJP यहां रणजीत का समर्थन कर रही है. डबवाली में इनेलो ने बीजेपी छोड़कर आए आदित्य देवीलाल चौटाला को टिकट दिया है जिनके सामने उन्हीं के भतीजे और JJP महासचिव दिग्विजय चौटाला है. इस बार इनेलो सिरसा की दो से तीन सीटों पर मुख्य मुकाबले में है.

हिसार की 7 सीटों में से 3 पर भाजपा, 3 पर कांग्रेस पार्टी और एक पर निर्दलीय भारी दिख रही हैं. आदमपुर में लोकल बनाम बाहरी का जो नारा चल रहा है, वह कुलदीप बिश्नाई के बेटे भव्य के पक्ष में काम कर सकता है. हिसार शहर सीट पर निर्दलीय सावित्री जिंदल ने बीजेपी के कमल गुप्ता की राह में कांटे बो दिए हैं.

भिवानी की चारों और फतेहाबाद की तीनों सीटों पर मुकाबला किसी भी तरफ जा सकता है. तोशाम सीट जीतना किरण चौधरी और उनकी बेटी श्रुति के लिए नाक का प्रश्न बन गया है. चरखी-दादरी की दोनों सीटों पर कांग्रेस पार्टी को अपर हैंड कह सकते हैं.

 

7. मेवात: मुसलमान कांग्रेस पार्टी के साथ, नूंह में बीजेपी को ध्रुवीकरण की आस

मुस्लिम बाहुल्य इस जिले की तीनों सीटें 2019 में कांग्रेस पार्टी ने जीती थी. 2014 में यहां 2 सीटों पर इनेलो के विधायक बने जबकि तीसरी सीट निर्दलीय के पक्ष में गई.

पिछले वर्ष हिंदू संगठनों की ब्रजमंडल यात्रा के दौरान हुए दंगों के कारण नूंह देश-दुनिया में सुर्खियां बना. उसके बाद हुई गिरफ्तारियों और बुलडोजर एक्शन से मुस्लिमों के मन में यह भावना और गहरे तक घर कर गई कि बीजेपी उनके विरुद्ध है. इसका लाभ कांग्रेस पार्टी को मिलेगा.

हिंसा का सबसे अधिक असर नूंह शहर और इससे लगते इलाकों में पड़ा था. बीजेपी ने इस सीट से हिंदू कार्ड खेलते हुए अपने मुसलमान नेता जाकिर हुसैन की स्थान संजय सिंह को उतारा है. राजपूत बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले संजय सिंह 2019 में सोहना से विधायक बने थे. इस बार उन्हें नूंह शिफ्ट किया गया.

31 जुलाई 2023 को अत्याचार के कारण अधूरी रह गई ब्रजमंडल यात्रा को दोबारा निकालने की आवाज बुलंद करने वालों में संजय सिंह सबसे आगे थे. बीजेपी के रणनीतिकारों को आशा है कि नूंह विधानसभा हलके में हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण का लाभ उसे मिल सकता है. यहां संजय सिंह का मुकाबला कांग्रेस पार्टी के आफताब अहमद से है.

भाजपा ने इस जिले की फिरोजपुर झिरका सीट से नसीम अहमद और पुन्हाना से एजाज खान को टिकट दिया है. इनका मुकाबला कांग्रेस पार्टी के मामन खान और मोहम्मद इलियास से है.

 

एक्सपर्ट्स बोले- बीजेपी के प्रति एंटी इनकम्बेंसी, कांग्रेस पार्टी को गुटबाजी से नुकसान वेटरन जर्नलिस्ट विजय सभरवाल के अनुसार 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का नाम चला. इस बार मोदी का असर कम है. किसानों के आंदोलन की वजह से ग्रामीण एरिया बीजेपी के विरुद्ध है. दूसरा कारण, मनोहर लाल ने जाटों के नेता निपटा दिए, अनिल विज को खुड्‌डेलाइन लगा दिया. ये चीजें मैटर करती हैं. पुराने नेताओं को समाप्त करने का हानि बीजेपी को होगा.

 

चंडीगढ़ स्थित पंजाब यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और सियासी विश्लेषक डाक्टर हिंदुस्तान की राय कुछ अलग है. बीजेपी के विरुद्ध सत्ता विरोधी लहर की बात वह भी मानते हैं लेकिन उन्हें लगता है कि सब कुछ बीजेपी के विरोध में आंकना ठीक नहीं होगा.

डॉ हिंदुस्तान के अनुसार, कांग्रेस पार्टी 10 वर्ष से सत्ता से बाहर है. पार्टी में नेताओं की अंतर्कलह साफ दिख रही है. सैलजा की नाराजगी और मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर जो संशय है, वह पार्टी के विरुद्ध जा सकता है.

 

 

वेदपाल बोले- बीजेपी राज में करप्शन ज्यादा सोनीपत के हरसाना खुर्द गांव में रहने वाले वेदपाल कहते हैं कि बीजेपी गवर्नमेंट से लोग नाराज हैं क्योंकि करप्शन बहुत है. बच्चों की जॉब नहीं लग पा रही. अफसर-कर्मचारी सुनवाई नहीं करते. ये चुनाव मुद्दों का है. इस बार कैंडिडेट देखकर नहीं, करप्शन देखकर वोट देंगे. कांग्रेस पार्टी के टाइम पर इतना करप्शन नहीं था. अग्निवीर लगने वाला बच्चा 4 वर्ष में क्या करेगा. उसे रिटायर होने पर पेंशन तक नहीं मिलेगी जबकि विधायकों-पूर्व विधायकों को हर कार्यकाल की अलग पेंशन मिलती है.

 
 

मदन गोयल बोले- बीजेपी ने बहुत काम किया हिसार के रहने वाले मदन गोयल का दावा है कि बीजेपी ने पिछले 10 वर्ष में बहुत काम किया है. सारी गलियों को पक्का करवाया. फ्लाईओवर-रेलवे स्टेशन और तिरंगा लाइट लगवाई. घरों में पीने का पानी ठीक आने लगा. बीजेपी ने पूरे शहर को चमका दिया.

 
 
 
 
 
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