World Heart Day : दुनिया के चिकित्सा जगत के लिए यह बड़ी अच्छी समाचार है। इससे दिल प्रत्यारोपण के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकते हैं। इससे दिल की गंभीर रोंगों से जूझ रहे लाखों लोग के दिल के प्रत्यारोपण का नया रास्ता खुल गया है। स्वदेशी कृत्रिम दिल बनाने की दिशा में जानकारों को बड़ी कामयाबी मिली है। इसका छठा मॉडल खून की सारी जांचों में खरा पाया गया है। अब इसके विदेशी सुअर में ट्रांसप्लांट की तैयारी प्रारम्भ हो गई है। दिल बीमारी संस्थान के निदेशक ने बोला कि यदि सब ठीक रहा तो इस वर्ष के अंत तक हम पहला कृत्रिम दिल ट्रांसप्लांट करेंगे। आइए जानते इसके बारे में विस्तार से।
World Heart Day पर ये अच्छी समाचार दिल के रोगियों के लिए आई है। जानकारों के मुताबिक यदि सारी प्रक्रिय सफल रही तो जल्द ही अन्य ट्रायल होंगे। यह रिसर्च दिल मरीजों के लिए वरदान साबित होगी। आईआईटी कानपुर के गंगवाल विद्यालय ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी दिल बनाने की रिसर्च तीन वर्ष से जारी है। वैज्ञानिकों ने इसे ‘हृदयंत्र’ नाम दिया है।
‘हृदयंत्र’ प्रोजेक्ट से जुड़े आईआईटी के एक जानकार ने बोला कि कृत्रिम दिल के पहले पांच मॉडल खून की जांच में हल्की खामियों के कारण खरे नहीं उतर पाए थे। इसके बाद खामियां दूर करके छठा मॉडल बनाया गया। इसकी सारी जांचें एलपीएस इंस्टीट्यूट ऑफ कॉर्डियोलॉजी ने की। ये सभी जांचें सफल भी रहीं। इससे एनिमल ट्रायल की राह खुली है। विदेशी प्रजाति के सुअर पर इसका ट्रायल होगा, जिसके दिल का आकार मनुष्य के हदय से काफी मिलता-जुलता है।
एलपीएस इंस्टीट्यूट ऑफ कॉर्डियोलॉजी के निदेशक के मुताबिक इस दिल में दो बैटरियां होंगी। प्रत्यारोपण प्रक्रिया थोड़ी जटिल रहेगी। इसे दो बैटरियों द्वारा संचालित किया जाएगा। चार्ज कम होने पर बैटरी बीप के साथ अलर्ट देगी। एक घंटे तक इसे चार्ज करना होगा।
हृदयंत्र की सतह खून के संपर्क में नहीं आएगी। पंप के अंदर टाइटेनियम पर ऐसे डिजाइनिंग की जाएगी कि वो धमनियों की अंदरूनी सतह की तरह बन जाए। इससे प्लेटलेट्स एक्टिव नहीं होंगे। प्लेटलेट्स एक्टिव होने पर शरीर में खून के थक्के जम सकते हैं। ऑक्सीजन का प्रवाह बढ़ाने वाले रेड ब्लड सेल्स भी नहीं मरेंगे।