भागलपुर। भागलपुर और सिल्क एक दूसरे के लिए जाना जाता है। यदि लोग भागलपुर का नाम लेते हैं तो सिल्क से पहचान होती है। सिल्क का नाम लेते हैं भागलपुरी सिल्क का नाम आता है। अब इसकी स्थिति ऐसी हो गई है मानो कि एक दूसरे के बिना अधूरा नाम लगता हो। लेकिन अब भागलपुर में बिस्कोस के धागे से बने कपड़े को भी तरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलने वाली है। दरअसल, अब यहां के बिस्कोस के कपड़े को चीन के लोग पहनेंगे। यहां की लुंगी और कुर्ता चीन को सबसे अधिक पसंद आया है। सैंपल के तौर पर कई सेट कपड़े भी लेकर गए हैं। अब जल्द ही बल्क में ऑर्डर मिलने वाला है।
जब इसको लेकर सिल्क व्यवसायी हेमंत कुमार से बात की गई तो उन्होंने कहा कि साउथ के रहने वाले गणेश जी चीन में रहते हैं और वहां उनकी मुलाकात सिंघाई के रहने वाले एक कपड़ा व्यवसायी सी चियांग से हुई। जिसे यहां के बारे में कहा गया। तभी दोनों भागलपुर के चंपानगर पहुंचे। यहां पर कई तरह के कपड़े देखे लेकिन उन्हें बिस्कोस के बने कपड़े को पसंद किया। यहां से कुर्ता और लुंगी बनवाकर ले गए।
कैसे तैयार होता है यह धागा
आपको बता दें कि बिस्कोस का धागा पेड़ से तैयार किया जाता है। यह धागा नीलगिरी, बीच और पाइन के पेड़ से मिलने वाले सेल्युलोज या लकड़ी के गुदे से तैयार किया जाता है। इसका गूदा निकाल कर काफी प्रोसेस किया जाता है उसके बाद यह तैयार होता है। पहले यह भागलपुर और बांका में तैयार होता था लेकिन अब यह धागा यहां बनना बन्द हो गया। अब यह धागा बेंगलुरु, कर्नाटक, चेन्नई और कोलकाता से आता है।
इस कपड़े की कई विशेषता हैं। यह कपड़ा केमिकल फ्री होता है। वहीं यह कपड़ा गर्मी के दिनों में ठंडा का एहसास दिलाता है तो ठंडा के दिनों में गर्मी का एहसास कराता है। खास कर यहां पर इसकी चादरें बड़े पैमाने पर तैयार होती हैं। जिसे लोग भागलपुरी चादर बोलते हैं। यह चादर अपने आप में काफी खास होती है।
यह कपड़ा लूम पर तैयार होता है
बुनकर ने कहा कि यह कपड़ा पावर लूम और हैंडलूम दोनों पर तैयार होता है। लेकिन अब लोग इसे पावर लूम पर ही तैयार करते हैं। एक चादर तैयार करने में 3 घंटा लगता है। इसमें अब 3 डी चादर भी तैयार हो रही है।