कैमिकल इंजीनियरिंग: एनवायरनमेंट से एमटेक और आईआईटी गुवाहाटी से पीएचडी करने के बाद उन्हें असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में जॉब मिल गई। 80,000 रुपये से आरंभ हुई, जो जल्द ही 1,25,000 रुपये तक पहुंच गई। लेकिन कोविड-19 के आने की वजह से उन्हें घर वापस लौटना पड़ा। इसके बाद, उन्होंने दोबारा जॉब करने के बजाय अपना स्टार्टअप प्रारम्भ करने का विचार बनाया। 2 वर्ष तक रिसर्च करने के बाद, उन्होंने पर्यावरण को बचाने के लिए गेहूं के भूसे, गन्ना के छिलके, और धान की पराली से कप बनाना प्रारम्भ किया। 6 महीने में ही उनके स्टार्टअप ने बल पकड़ लिया और 20 लोगों को रोजगार मिल गया। हाल ही में, स्त्री उद्यमी स्टार्टअप के लिए उन्हें सीएम मोहन यादव ने अवार्ड देते हुए एक लाख रुपये की राशि से सम्मानित किया है
डॉक्टर निलय शर्मा का स्टार्टअप
यह स्त्री सागर की चिकित्सक निलय शर्मा हैं, जिनके द्वारा अपने स्टार्टअप को बिजनेस का रूप दिए जाने की तैयारी की जा रही है। आने वाले 2 वर्ष में वह 100 लोगों से अधिक को रोजगार देने की योजना बना रही हैं। इसके लिए उन्होंने जमीन भी ली है और उस पर इंडस्ट्री बनाने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर का काम कर रही हैं।
रिसर्च का परिणाम
सागर शहर की एसबीआई कॉलोनी में रहने वाली निलय शर्मा बताती हैं कि जब वह जालंधर यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर थीं, तब वे कैमिकल और पेट्रो की पढ़ाई करवाती थीं। इसी दौरान उनके मन में लोगों की स्वास्थ्य को लेकर प्रश्न उपजने लगे। घर लौटने के बाद, उन्होंने इस बात पर रिसर्च किया कि प्लास्टिक के विकल्प में क्या किया जा सकता है। तब उन्होंने ऐसे कप और स्ट्रॉ बनाए हैं जो कि बायोडिग्रेडेबल हैं। इन्हें जानवर खा लेते हैं और पानी में डालने पर मछलियां भी इन्हें खा सकती हैं। मिट्टी में पड़े रहने पर ये खाद में बदल जाएंगे, यानी किसी भी तरह से इससे कोई प्रदूषण नहीं होगा। जैसे-जैसे लोगों को जानकारी मिल रही है, इसकी डिमांड बढ़ती जा रही है।
विभिन्न जिलों से आर्डर
अभी इंदौर, भोपाल, छतरपुर, पन्ना, सतना सहित कई अन्य जिलों से आर्डर आ रहे हैं, जिनकी पूर्ति की जा रही है। इसके अलावा, एमपी टूरिज्म में भी डिस्पोजल की पेटी भेजी जा रही है। आने वाले समय में 300 मिलीलीटर वाली डिस्पोजल के साथ प्लेट और कटोरी बनाने की भी योजना है।
किसानों की सहायता से बनता है उत्पाद
डॉक्टर निलय बताती हैं कि लॉकडाउन के समय में जब वह अपने खेत गई थीं, तब वार्ता के दौरान पता चला कि गेहूं की कटाई के बाद जो वेस्ट मटेरियल निकलता है, उसे किसान भाई जला देते हैं। तब उन्हें ख्याल आया कि किस तरह से इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। कुछ भूसा लेकर विचार करते रहे और फिर यह प्रोडक्ट बनकर तैयार हो गया। इसी तरह, गन्ने से जूस निकालने के बाद बचे हुए पदार्थ से भी ये कप तैयार किए जा सकते हैं। उनकी टीम अब तक 3 लाख से अधिक कप तैयार कर चुकी है, लेकिन संसाधन कम होने की वजह से वे अभी डिमांड पूरी नहीं कर पा रहे हैं। जगह-जगह से आर्डर आ रहे हैं।