CJI चंद्रचूड़ की टिप्पणी पर SC जजों ने जताई आपत्ति, जानिए क्या कहा
Webdunia Hindi November 06, 2024 07:42 AM


Chief Justice DY Chandrachud News: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) की न्यायाधीश बी.वी. नागरत्ना (Justice Nagarathna) और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया (Justice Sudhanshu Dhulia) ने मंगलवार को निजी संपत्तियों से संबंधित फैसले के दौरान भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की ओर से की गई उस टिप्पणी पर आपत्ति जताई जिसमें कहा गया है कि न्यायमूर्ति वीआर कृष्णा अय्यर सिद्धांत ने संविधान की व्यापक और लचीली भावना का ‘अहित’ किया।

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि सीजेआई की टिप्पणियां अनुचित और असंगत हैं। न्यायमूर्ति धूलिया ने भी टिप्पणियों को दृढ़ता से अस्वीकार करते हुए कहा कि आलोचना कठोर है और इससे बचा जा सकता था। सीजेआई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की 9 न्यायाधीशों की पीठ ने यह फैसला सुनाया है।

क्या है अनुच्छेद 39 (बी) : सीजेआई द्वारा सुनाए गए बहुमत के फैसले ने न्यायमूर्ति अय्यर के पिछले फैसले को खारिज कर दिया कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के तहत वितरण के लिए राज्य द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है। सीजेआई ने खुद और उस पीठ के छह अन्य न्यायाधीशों के लिए आदेश लिखा जिसने इस जटिल कानूनी सवाल का फैसला किया कि क्या निजी संपत्तियों को अनुच्छेद 39 (बी) के तहत ‘समुदाय का भौतिक संसाधन’ माना जा सकता है और क्या राज्य के अधिकारियों द्वारा ‘साझा हित’ में इसे वितरण के लिए इसे अपने अधिकार में लिया जा सकता है। ALSO READ:

वर्ष 1973 से 1980 तक उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश रहे न्यायमूर्ति अय्यर ने न्यायिक सक्रियता के युग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कई ऐतिहासिक फैसले दिए। न्यायमूर्ति नागरत्ना सीजेआई द्वारा दिए गए बहुमत के फैसले से आंशिक रूप से असहमत थीं, जबकि न्यायमूर्ति धूलिया ने सभी पहलुओं पर असहमति जताई। ALSO READ:

न्यायमूर्ति नागरत्ना को क्यों है आपत्ति : न्यायमूर्ति नागरत्ना ने 130 पन्नों के एक अलग फैसले में चंद्रचूड़ की उस टिप्पणी को उद्धृत किया जिसमें कहा गया है कि इस प्रकार, इस न्यायालय की भूमिका आर्थिक नीति निर्धारित करना नहीं है, बल्कि ‘आर्थिक लोकतंत्र’ की नींव रखने के निर्माताओं के इस इरादे को सुविधाजनक बनाना है। कृष्णा अय्यर सिद्धांत संविधान की व्यापक और लचीली भावना का अहित करता है।

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि केवल राज्य की आर्थिक नीतियों में आमूल-चूल बदलाव के कारण इस न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों को संविधान का ‘अहित’ करने वाला करार नहीं दिया जा सकता। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि केवल वैश्वीकरण और उदारीकरण तथा निजीकरण के लिए राज्य की आर्थिक नीतियों में आए आमूलचूल परिवर्तन के कारण, जिसे संक्षेप में ‘1991 के सुधार’ कहा जाता है, जो आज भी जारी है, इस न्यायालय के भूतपूर्व न्यायाधीशों को 'संविधान के प्रति अहित करने वाला' नहीं कहा जा सकता। ALSO READ:

क्या कहा न्यायमूर्ति धूलिया ने : न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि कृष्णा अय्यर सिद्धांत या ओ चिन्नाप्पा रेड्डी सिद्धांत से वो सभी लोग परिचित हैं, जिनका कानून या जीवन से कोई लेना-देना है और यह निष्पक्षता और समानता के मजबूत मानवतावादी सिद्धांतों पर आधारित है। धूलिया ने कहा कि मुझे यहां कृष्णा अय्यर सिद्धांत, जैसा कि इसे कहा जाता है, पर की गई टिप्पणियों पर अपनी कठोर असहमति भी दर्ज करनी चाहिए। यह आलोचना कठोर है और इससे बचा जा सकता था।

न्यायमूर्ति नागरत्ना, जो 2027 में भारत की पहली महिला प्रधान न्यायाधीश के रूप में पदभार संभालने वाली हैं, ने कहा कि इस न्यायालय की ऐसी टिप्पणियां अतीत के निर्णयों और उनके लेखकों पर राय व्यक्त करने के तरीके में एक विसंगति पैदा करती हैं और उन्हें संविधान के प्रति अहितकारी मानती हैं। (भाषा/वेबदुनिया)

Edited by: Vrijendra Singh Jhala

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