पलामू के हुसैनाबाद विधानसभा क्षेत्र में चुनावी पारा सातवें आसमान पर है। 2019 में NCP के टिकट पर चुनावी जंग जीतने वाले कमलेश सिंह इस बार बीजेपी के सिंबल पर किस्मत आजमा रहे हैं। पर बीजेपी के 2 बागी नेताओं विनोद सिंह और डॉ कर्नल संजय सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में पर्चा भरकर उनकी नींद उड़ा दी है। वहीं, RJD से संजय सिंह यादव और BSP से कुशवाहा शिवपूजन मेहता के मैदान में आने से राजनीतिक मुकाबला बहुत दिलचस्प हो गया है। बीजेपी के चुनाव सह प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा ने हुसैनाबाद का नाम बदलकर रामनगर करने की बात कहकर राजनीतिक संग्राम में और उबाल ला दिया है।
हुसैनाबाद के नाम पर सियासत
पलामू जिले में हुसैनाबाद के नाम से अनुमंडल और प्रखंड तो हैं ही, इसके साथ ही हुसैनाबाद विधानसभा क्षेत्र भी है। इसका विधानसभा नंबर है 79. इसमें हुसैनाबाद के साथ-साथ हैदरनगर और मोहम्मदगंज के अतिरिक्त हरिहगंज और पिपरा जैसे 5 प्रखंड आते हैं। बोला जाता है कि इनमें से हुसैनाबाद, हैदरनगर और मोहम्मगंज प्रखंडों के नाम मुगल शासकों के नाम पर वर्षों पहले पड़े थे। पर विधानसभा चुनाव की घड़ी आते ही इन तीनों प्रखंडों के नाम बदलने के प्रश्न पर राजनीति गरमाती जा रही है। बीजेपी ने वादा किया है कि पार्टी की गवर्नमेंट बनते ही पहली कैबिनेट मीटिंग में हुसैनाबाद का नया नाम रामनगर करने का प्रस्ताव पास होगा। जबकि हैदरनगर को हरी नगर और मोहम्मगंज का नाम भीम नगर कर दिया जाएगा। बीजेपी की इस हुंकार के बाद राजनीतिक शब्द वाणों की बौछार प्रारम्भ हो गई। सोशल मीडिया में रामनगर ट्रेंड करने लगा। देखते ही देखते इस राजनीतिक संग्राम में बीजेपी के विरोधी भी कूद पड़े और दोनों ओर से आरोप-प्रत्यारोप का धुआंधार दौर शुरु हो गया।
पहले भी बदले हैं नाम
झारखंड के कई शहरों के नाम पहले भी बदलते रहे हैं। डालटनगंज और नगरउंटारी इसके उदाहरण हैं। 1861 में छोटानागपुर के आयुक्त कर्नल डाल्टन ने डालटनगंज शहर बसाया था। पर वर्ष 2001 में तब की बीजेपी गवर्नमेंट ने पलामू के जिला मुख्यालय डालटनगंज का नाम बदलकर मेदिनीनगर कर दिया था। ये नाम चेरो राजवंश के महान राजा मेदिनी राय के नाम पर किया गया था। गढ़वा के नगर उंटारी शहर का नामकरण भी बीजेपी की गवर्नमेंट ने बंशीधर नगर कर दिया था। नगरउंटारी में भगवान कृष्ण का मंदिर है। उसी मंदिर के नाम पर नगरउंटारी का नाम बदल कर बंशीधर नगर कर दिया गया था। अब बीजेपी ने एक बार फिर हुसैनाबाद का नाम बदलने का राग छेड़कर राजनीतिक आग में घी डाल दिया है।
हुसैनाबाद का राजनीतिक गणित
वर्तमान RJD उम्मीदवार संजय सिंह यादव वर्ष 2000 में हुसैनाबाद से चुनाव जीते थे। पर झारखंड बनने के बाद 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में NCP उम्मीदवार कमलेश सिंह ने उन्हें महज 35 वोट से हरा दिया था। 2009 के चुनाव में RJD प्रत्याशी संजय सिंह यादव ने वापसी की। उन्होंने BSP उम्मीदवार कुशवाहा शिवपूजन मेहता को हरा दिया। जबकि NCP उम्मीदवार कमलेश सिंह चौथे जगह पर रहे। 2014 में BSP उम्मीदवार कुशवाहा शिवपूजन मेहता ने NCP उम्मीदवार कमलेश सिंह को 27,752 वोट के बड़े अंतर से हरा दिया था। 2019 में कमलेश सिंह ने वापसी की और उन्होंने RJD उम्मीदवार संजय सिंह यादव को 9,849 वोट से पछाड़ दिया। लेकिन इस बार NCP छोड़ कर बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे कमलेश सिंह की राह आसान नहीं है। बीजेपी के कई बागी नेताओं ने उनके रास्ते में कांटे बिछा दिए हैं। तो BSP और RJD से भी उन्हें कड़ी चुनौती मिल रही है।
हुसैनाबाद की पहचान है जपला
जपला शहर हुसैनाबाद की पहचान है। 1917 में मार्टिन बर्न कंपनी ने जपला में सीमेंट फैक्ट्री प्रारम्भ की थी। तब से ये फैक्ट्री वर्षों वर्ष चली। पर 80 के दशक में इसकी माली हालत बिगड़ गई। 1984 में पहली बार ये फैक्ट्री बंद हुई। बिहार गवर्नमेंट की पहल पर 1990 में इस फैक्ट्री को फिर से खोला गया। पर 1991 में इस पर फिर से ताला लग गया। बकाया वेतन को लेकर श्रमिकों के आंदोलन और लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 2018 में फैक्ट्री की मशीन नीलाम हो गई थी। इसके बाद से सीमेंट फैक्ट्री की खाली पड़ी जमीन पर कल-कारखाना लगाने का मामला उठता रहा। इस पर कई निजी कंपनियों ने दिलचस्पी भी दिखाई। विधानसभा के सत्र में राज्य गवर्नमेंट ने भी जपला को औद्योगिक क्षेत्र के रुप में विकसित करने का वादा किया। कई लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भी इस मामले पर जोरदार राजनीति हुई। लेकिन जपला को उसकी खोई पहचान दिलाने का प्रश्न अब तक ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है। पर अब हुसैनाबाद के नाम पर गरमागरम राजनीति जरुर हो रही है।