Rupee All-time Low: अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही है. आज डॉलर के मुकाबले रुपया 84.30 रुपये प्रति डॉलर तक गिर गया है जो इसका ऐतिहासिक निचला स्तर है. फॉरेन पोर्टफोलियो इंवेस्टर्स (FPI) की भारतीय बाजार में लगातार बिकवाली और फंड आउटफ्लो के बाद एक और कारण है जिससे भारतीय रुपये के रसातल में जाने का सिलसिला जारी रहने की आशंका है. दरअसल अमेरिकी चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद आने वाले महीनों में अमेरिकी करेंसी डॉलर के और चढ़ने का अनुमान है. ऐसा हुआ तो भारतीय रुपये के लिए नीचे जाने का डर लगातार बना रहेगा और ये अधिक निचले लेवल तक गिर सकता है.
बुधवार को रुपये में लाइफटाइम निचले स्तर पर कारोबार बंद हुआ और ये डॉलर के मुकाबले 84.28 के लेवल पर बंद हो पाया है. करेंसी जानकारों के मुताबिक ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद टैक्स में कटौती और डीरेगुलेशन के बाद आम तौर पर अमेरिकी ग्रोथ में खासी बढ़ोतरी देखी जाने का उम्मीद है. इसके चलते विश्व की अन्य करेंसी के मुकाबले डॉलर की कीमतें ऊंची होंगी और विदेशी निवेशक डॉलर को तरजीह देंगे. इसके अलावा टैरिफ हाईक से लेकर ड्यूटी बढ़ने के असर से यूरो और दूसरी एशियाई करेंसी के भी नीचे आने की संभावना है जिसके बाद भारतीय रुपये के लिए भी संकट बढ़ने की आशंका है.
आज डॉलर इंडेक्स में हालांकि गिरावट देखी जा रही है जिसके चलते ये 0.1 फीसदी गिरकर 104.9 के लेवल पर आ गया है. डॉलर इंडेक्स वो इंडेक्स है जो दुनिया की 6 करेंसी के मुकाबले डॉलर की मजबूती को दिखाता है. ये इंडेक्स बुधवार को 105.12 पर आ गया था जो इसका चार महीने का उच्च स्तर है.
रुपये की कमजोरी के साथ भारत के लिए नई परेशानियों के दरवाजे खुलने का डर रहता है. डॉलर के मजबूत होने का मतलब है कि सीधा-सीधा भारत का इंपोर्ट बिल बढ़ जाएगा. उदाहरण के लिए जिस सामान को खरीदने पर अक्टूबर में 1 डॉलर के लिए 83 रुपये देने होते थे वहीं अब ये रकम 84.30 रुपये की हो जाएगी. भारत विदेशों से सबसे ज्यादा कच्चा तेल आयात करता है और इसको खरीदने के लिए ज्यादा राशि खर्च करनी पड़ेगी क्योंकि डॉलर महंगा हो गया है.
क्रूड ऑयल के महंगा होने से भारत को इसके इंपोर्ट पर ज्यादा खर्च करना होगा जिसके परिणामस्वरूप देश में कई सामानों के दाम महंगे होंगे.
इकोनॉमी पर डॉलर के महंगा होने का असर आएगा क्योंकि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार जो 700 बिलियन डॉलर के करीब जा चुका है, उसमें कमी देखी जा सकती है.
क्रूड के महंगा होने का असर पेट्रोल-डीजल के रेट पर भी आ सकता है, क्योंकि ये ट्रांसपोर्ट फ्यूल के लिए कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल होता है.
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