जेल में रहकर भी दबंगई दिखा रहा है गैंगस्टर जग्गू भगवानपुरिया
Krati Kashyap November 08, 2024 11:27 AM

जेल में बंद गैंगस्टर जग्गू भगवानपुरिया मतदाताओं को धमका रहा है. इल्जाम है कि वह डेरा बाबा नानक के चुनावी मैदान में खड़े आप प्रत्याशी को वोट देने के लिए कहता है. इसके चलते गुरदासपुर के मौजूदा सांसद सुखजिंदर सिंह रंधावा ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर अर्धसैनिक बलों की तैनाती की मांग की है. सांसद रंधावा ने चुनाव पर्यवेक्षक से भी संज्ञान लेने की निवेदन की है. उपचुनाव में यहां रंधावा की पत्नी जतिंदर कौर कांग्रेस पार्टी की उम्मीदवार हैं.

अभी हरियाणा की कारावास में बंद जग्गू का पैतृक गांव भगवानपुरिया है. कहा जा रहा है कि वह कथित तौर पर वीडियो कॉल के जरिए सरपंचों और बड़े वोट बैंक वाले नेताओं को धमका रहा है. सांसद रंधावा ने बीजेपी के नेतृत्व वाली हरियाणा गवर्नमेंट पर भी निशाना साधा. उन्होंने जग्गू भगवानपुरिया को कारावास में मोबाइल कैसे मौजूद हो रहा है. उन्होंने कहा, ‘मैं यह समझने में विफल हूं कि यह गुंडा कारावास के अंदर से मोबाइल टेलीफोन का इस्तेमाल कैसे कर सकता है.’ रंधावा ने कहा, ‘पंजाब पुलिस ने जग्गू की मां हरजीत कौर और उसके चचेरे भाई गगन भगवानपुरिया को सुरक्षा उपलब्ध कराई है. मैं यह समझ नहीं पा रहा हूं कि गवर्नमेंट उसके परिवार की सुरक्षा क्यों कर रही है.’ इस बारे में कहा जा रहा है कि उसकी मां अपने टेलीफोन से वीडियो कॉल की सुविधा देती है. सूत्रों का बोलना है कि वह वोटर्स के बीच प्रभावशाली नेताओं से मिलती है. एक अधिकारी ने पुष्टि की कि कई नेताओं को वीडियो कॉल आए हैं. उन्होंने कहा, ‘जो कोई भी उसकी बात नहीं मानता, उसे उसके गुर्गों द्वारा निशाना बनाया जा सकता है. और सच्चाई यह है कि क्षेत्र में उसके वफादारों की कोई कमी नहीं है.

नाम वापसी के लिए किया था मजबूर

पंचायत चुनाव में जग्गू ने एक दर्जन से अधिक उम्मीदवारों को अपना नामांकन पत्र वापस लेने के लिए विवश किया था. एक अधिकारी ने कहा, ‘किसी में भी उसके टेलीफोनिक आदेशों को नकारने की हौसला नहीं थी.

अकाली दल का दावा बिल्कुल अलग

शिरोमणि अकाली दल (शिअद) लगातार दावा करता रहा है कि भगवानपुरिया सांसद सुखजिंदर सिंह रंधावा का करीबी है. दिसंबर 2019 में जब रंधावा कारावास मंत्री थे, तब अकालियों ने मांग की थी कि गैंगस्टर के साथ उनके संबंधों की जांच होनी चाहिए. कुछ अकाली नेताओं की लगातार मांग पर तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जांच के आदेश दिए थे, जो डीजीपी (इंटेलिजेंस) द्वारा की गई थी और किसी भी संबंध से इनकार किया गया था.

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