सागर : अपनी खेती से हर सीजन फसल का बंपर उत्पादन लेना चाहते हैं। तो किसान फसल चक्र को अपनाए यानी कि एक ही फसल को बार-बार ना लगाए, ऐसे में किसान यदि अलसी की खेती करते हैं तो हजारों की लागत में लाखों का फायदा कमा सकते हैं। जो उनके लिए और उनकी भूमि के लिए भी लाभ वाला रहेगा। खास बात यह है कि कम पानी वाले किसानों के लिए अलसी किसी वरदान से कम नहीं है, क्योंकि इसे ना तो अधिक पानी की जरूरत होती है और ना ही कीट या अन्य बीमारी लगते हैं, यहां तक की इसमें पाला लगने की आसार भी बहुत कम होती है। कम बीज में अधिक उपज निकलती है। बाजार में भी अच्छे मूल्य मिलते हैं। इसमें ऑयल की मात्रा अधिक होती है।
अलसी की उन्नत प्रजाति बनाएंगी मालामाल
सागर कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक चिकित्सक के एस यादव बताते हैं कि ऑल इण्डिया प्रोजेक्ट के अनुसार यहां पर अलसी का अनुसंधान केंद्र भी है, जिसमें बहुत सारी वैरायटी है किसान भाई समय से सतर्क हो जाए तो बीज यहां से मौजूद हो जाता है। अलसी की उन्नत प्रजाति JLS 66, JLS 67, JLS 73, JLS 79, JLS 95 प्रमुख हैं।
इन उर्वरक का कर सकते इस्तेमाल
अगर डीएपी का इस्तेमाल करते हैं तो प्रति हेक्टेयर 120 किलो डीएपी हो और सिंगल फास्फोरस का इस्तेमाल करते हैं तो 200 किलो का आधा बोरी यूरिया के साथ छिड़काव करें, या 60 kg नत्रजन, 40 किलो फास्फोरस 20 किलो पोटाश का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
135 दिन में पककर तैयार हो जाती
अलसी का बीज 8 किलो ग्राम प्रति एकड़ और 20 किलो प्रति हेक्टेयर के मान से बुआई करते हैं। इसमें ठीक उर्वरक और दो पानी मिल जाए तो 6 क्विंटल प्रति एकड़ या 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज मिल जाती है। फसल चक्र और फसल विविधीकरण में किसान भाइयों को अलसी की खेती जरूर करनी चाहिए, इसमें ना तो बीमारी लगते हैं, ना ही पाला लगने का डर होता है। यह 110 से लेकर 135 दिन में पककर तैयार हो जाती है।
मिट्टी में नमी हो तभी करें बुआई
अलसी की बुवाई करने से पहले यह सुनिश्चित करना होता है की मिट्टी में नमी है या नहीं, यदि नमी है तो बुआई कर दें नहीं तो पहले खेत में पानी दे फिर बीज लगाएं, इसके बाद पानी की प्रबंध हो तो एक बार और सिंचाई कर दे, नहीं हो तो कोई परेशानी नहीं। यदि एकाध पानी ऊपर वाले की कृपा से गिर गया तो सोनी पर सुहागा हो जाता है।