'घर सपना है, जो कभी न टूटे', बुलडोजर एक्शन पर जस्टिस गवई की ये कविता कर देगी इमोश्नल
एबीपी लाइव डेस्क November 13, 2024 02:42 PM

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (13 नवंबर, 2024) को विभिन्न राज्यों में बुलडोजर एक्शन के खिलाफ दायर याचिकाओं पर फैसला सुनाया और इसे गलत तरीका बताया है. जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई ने फैसला सुनाते हुए कवि प्रदीप की कविता का हवाला दिया और बताया कि किसी के लिए घर की अहमियत क्या होती है और जब वह टूटता है तो पूरे परिवार पर क्या गुजरती है. उन्होंने कहा कि किसी आरोपी या दोषी का घर गिरा देना पूरे परिवार के लिए सजा है.

जस्टिस गवई ने कवि प्रदीप की कविता का हवाला देते हुए कहा, 'घर सपना है, जो कभी न टूटे.' यह पूरी कविता ये है- 'अपना घर हो, अपना आंगन हो, इस ख्वाब में हर कोई जीता है. इंसान के दिल की ये चाहत है कि एक घर का सपना कभी न छूटे.' कोर्ट ने कहा कि आरोपी या दोषी का घर गिराना गलत है. सिर्फ इस आधार पर किसी का घर नहीं गिराया जा सकता क्योंकि वह शख्स किसी अपराध में आरोपी या दोषी है. फैसले में जस्टिस गवई ने कई अहम और बड़ी बातें कही हैं.

जस्टिस गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने मामले पर सुनवाई की और फैसला सुनाया. उन्होंने कहा कि जो अधिकारी कानून को हाथ में लेते हैं और अनियंत्रित तरीके से काम करते हैं, उनकी भी जवाबदेही तय होनी चाहिए. कोर्ट ने फैसले में एक और बड़ी अहम टिप्पणी की और कहा कि किसी आरोपी या दोषी का घर गिरा देने जैसी कार्रवाई पूरे परिवार के लिए सजा है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्यपालिका की ओर से ऐसी कार्रवाई की अनुमति देना कानून के शासन के खिलाफ है और यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के भी खिलाफ है क्योंकि सजा सुनाने का काम न्यायपालिका का है. जस्टिस गवई ने फैसले में यह भी कहा है कि किसी को दोषी ठहराना सरकार का काम नहीं है और अगर सिर्फ आरोपों पर किसी का घर तोड़ दिया जाता है तो यह कानून के शासन के बुनियादी सिद्धांत पर हमला होगा.

जस्टिस गवई ने कहा कि सरकार को अधिकार नहीं कि वह जज बन जाए और किसी आरोपी की संपत्ति को गिराने का फैसला सुना दे. उन्होंने कहा कि अगर अचानक से किसी संपत्ति को गिराने के लिए चिन्हित किया जाता है, जबकि उसी तरह की दूसरी संपत्तियों को छुआ तक नहीं जाता तो साफ है कि मकसद गैरकानूनी प्रॉपर्टी गिराना नहीं, बल्कि बिना मुकदमा चलाए ही दंड देने की कार्रवाई है.

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