झारखंड सरकार ने 50 लाख महिलाओं को दिया 1,000 रुपये से बढ़ाकर 2,500 रुपए मासिक भत्ता
Krati Kashyap November 15, 2024 01:28 PM

झारखंड विधानसभा चुनावों से कुछ ही सप्ताह पहले अक्टूबर में झारखंड गवर्नमेंट ने लगभग 50 लाख स्त्रियों को मिलने वाले मासिक भत्ते को 1,000 रुपये से बढ़ाकर 2,500 रुपये कर दिया. यह तब हुआ जब बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में स्त्रियों को 2,100 रुपये प्रति माह देने का वादा किया था.

विश्लेषक कहते हैं कि हिंदुस्तान में सियासी पार्टियां चुनाव के समय स्त्री मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए नकद फायदा देने की रणनीति अपना रही हैं. इसका उद्देश्य महंगाई और बेरोजगारी की चिंता को कम करना है.

पिछले दशक में हिंदुस्तान में स्त्रियों के वोट डालने का फीसदी बढ़ा है. इससे अब मर्दों की तुलना में स्त्रियों का संख्या बल बढ़ रहा है. इस वजह से, सियासी पार्टियों में स्त्रियों को अपनी ओर खींचने की होड़ मची हुई है. खासकर अक्टूबर में महंगाई 14 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई और बेरोजगारी रेट भी 8.9 प्रतिशत पर है.

एक्सिस बैंक के आर्थिक अध्ययन विभाग की एक रिपोर्ट कहती है कि ज्यादातर सियासी दल स्त्री मतदाताओं को लुभाने की प्रयास कर रहे हैं और उन्हें नकद फायदा देना इसी प्रयास का एक हिस्सा है. पीएम मोदी की पार्टी भाजपा और विपक्षी दलों द्वारा चलाई जा रही कई क्षेत्रीय सरकारें हिंदुस्तान की करीब 67 करोड़ स्त्रियों में से करीब पांचवें हिस्से को लुभाने के लिए ऐसी योजनाएं पेश कर रही हैं.

एक्सिस बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री नीलकंठ मिश्रा ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, “यह सरकारी खजाने पर बड़ा बोझ है. फंडिंग कहां से आ रही है? कुछ हिस्सा बढ़ते घाटे से आ रहा है.

महिलाओं को फायदा देने के लिए योजनाएं पेश कर रहे लगभग सभी राज्यों का बजट घाटा पांच वर्ष पहले की तुलना में बढ़ा है, और कई राज्यों ने इन योजनाओं को लागू करने के लिए अपने पूंजीगत खर्च में कटौती की है.

महिलाओं पर बड़ा खर्च

एक्सिस का अनुमान है कि हिंदुस्तान के 36 में से एक-तिहाई राज्य या संघीय क्षेत्र स्त्रियों के लिए इस तरह की फायदा योजनाओं पर हर वर्ष करीब 2 लाख करोड़ रुपये खर्च कर रहे हैं, जो कि हिंदुस्तान के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 0.6 प्रतिशत है.

पिछले एक वर्ष में कई ऐसी घोषणाएं राष्ट्रीय या क्षेत्रीय चुनावों के समय की गई हैं. झारखंड में हुए घोषणा इसी का एक उदाहरण हैं. हिंदुस्तान की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस, जो झारखंड में सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा है, कहती है कि चुनाव के समय सियासी पार्टियां अक्सर वादे कर फायदा उठाती हैं, भले ही वे उन्हें पूरा न करें.

कांग्रेस के प्रवक्ता उदित राज ने कहा, “महिलाओं या आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों को सियासी पार्टियों द्वारा एक आसान लक्ष्य माना जाता है.

अगले सप्ताह पश्चिमी हिंदुस्तान के सबसे अमीर राज्य महाराष्ट्र में चुनाव होने हैं. सत्ताधारी भाजपा गठबंधन ने अगस्त से निम्न-आय वर्ग की स्त्रियों को 1,500 रुपये देने प्रारम्भ किए थे, लेकिन विपक्ष ने इस राशि को दोगुना करने का वादा किया है.

बीजेपी प्रवक्ता शाजिया इल्मी ने बोला कि मोदी के नेतृत्व में उनकी पार्टी स्त्रियों के कल्याण पर ध्यान दे रही है, जिसमें रियायती रसोई गैस और स्त्रियों के लिए शौचालय बनाना शामिल है.

उन्होंने कहा, “विपक्ष द्वारा फायदा की घोषणा करना भाजपा द्वारा स्त्रियों के लिए किए गए कामों की नकल करने की प्रयास है.

आर्थिक सहायता का असर

ब्रोकर कंपनी एलारा सिक्योरिटीज ने चेतावनी दी है कि राज्यों में होने वाली वित्तीय ढील अंततः राष्ट्रीय बजट पर असर डाल सकती है. हालांकि, स्त्री वर्ग में अधिक नकद राशि पहुंचने से पारंपरिक पुरुष-प्रधान समाज में कुछ सकारात्मक असर भी हो सकते हैं.

मिश्रा ने कहा, “खाने-पीने का सामान, आना-जाना, घरेलू चीजें और स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं की मांग बढ़ सकती है. इन योजनाओं से लक्षित जनसंख्या की आय में 5 से 40 फीसदी की वृद्धि होती है.

महिलाओं सहित अन्य लाभों ने भाजपा को हाल ही में उत्तरी राज्य हरियाणा में अप्रत्याशित रूप से सत्ता में बने रहने में सहायता की. हालांकि, सियासी विश्लेषकों का मानना है कि महाराष्ट्र में भाजपा को जीतने में मुश्किल होगी.

इस वर्ष अप्रैल से जून के बीच हुए आम चुनावों में भाजपा ने अपना संसदीय बहुमत खो दिया था और मोदी तीसरी बार सत्ता में बने रहने के लिए छोटे सहयोगियों पर निर्भर रहे हैं. इन चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी ने स्त्री दिवस के मौके पर बल देकर बोला था कि स्त्री मतदाता उनकी ढाल हैं.

क्या स्त्रियों का समर्थन मिला?

बीजेपी ने पिछले कुछ वर्षों में स्त्रियों के वोट पाने के लिए कई योजनाएं प्रारम्भ की हैं, जो घर-परिवार, कामकाजी अधिकार और सुरक्षा पर केंद्रित हैं. 2016 में प्रारम्भ हुई उज्ज्वला योजना इसी का हिस्सा है, जिसके अनुसार हर घर को खाना पकाने के लिए गैस सिलेंडर मौजूद कराए गए ताकि लकड़ी और कोयले पर निर्भरता कम हो. योजना ने बड़े पैमाने पर कामयाबी पाई, लेकिन सिलेंडर दोबारा भरवाने का खर्च अभी भी एक परेशानी है.

2017 में, भाजपा ने कानूनी संशोधन के जरिए स्त्रियों के लिए मैटरनिटी लीव को दोगुना कर दिया, पर हिंदुस्तान के असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाली अधिकांश महिलाएं अभी भी इस सुविधा से वंचित हैं. यूपी में स्त्रियों की सुरक्षा को लेकर भी भाजपा का दावा है कि उनके शासन में स्त्रियों के विरुद्ध अपराधों में दोषियों को सजा मिलने की रेट सबसे अधिक है, लेकिन राज्य में स्त्रियों के विरुद्ध अपराधों की कुल संख्या भी बढ़ी है.

2023 में स्त्री आरक्षण बिल पास हुआ, जिसमें संसद और विधानसभाओं में स्त्रियों के लिए कम से कम 33 प्रतिशत सीटें सुरक्षित की गईं. हालांकि, इसके लागू होने में देरी और असमंजस है.

बीजेपी ने तीन तलाक पर भी रोक लगाई, इसे मुसलमान स्त्रियों को सशक्त बनाने का कदम कहा गया, पर आलोचकों का मानना है कि इससे मुसलमान समुदाय को गलत ढंग से पेश किया जा रहा है. इन सभी नीतियों पर मिले-जुले विचार हैं, लेकिन सभी के केंद्र में स्त्री मतदाताओं को लुभाने की प्रयास नजर आती है.

लोकसभा चुनाव के बाद लोकनीति के एक सर्वे के अनुसार, इन प्रयासों का स्त्रियों पर खास असर नहीं पड़ा. संसद में भाजपा को सबसे अधिक 240 सीटें और 37 प्रतिशत वोट मिले, लेकिन इनमें मर्दों के वोट अधिक थे.

लोकसभा चुनाव में 37 प्रतिशत पुरुष मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिया, जबकि स्त्रियों की संख्या 36 प्रतिशत रही. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी यह आंकड़ा 36 का ही था. वहीं, विपक्षी पार्टी कांग्रेस पार्टी को 22 प्रतिशत स्त्रियों का वोट मिला, जो 2019 से 2 प्रतिशत अधिक है. कांग्रेस पार्टी को इस बार 21 प्रतिशत मर्दों का वोट मिला.

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