उत्तर प्रदेश डायरी: 'अपनी' ही शादी में 'अब्दुल्ला' को क्यों बना दिया बेगाना?
Navjivan Hindi November 17, 2024 11:42 PM

सब कुछ बड़ा नाटकीय रहा जब अक्तूबर की शुरुआत में एक विवाह समारोह में शामिल होने वाले कई पार्टी कार्यकर्ताओं को बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) से  निष्कासित कर दिया गया। मेरठ मंडल के पूर्व प्रभारी प्रशांत गौतम, जिला प्रभारी दिनेश काजीपुर और बीएसपी नेता महावीर प्रधान का यह निष्कासन राजनीतिक हलकों में हलचल मचाने वाला था। रहस्य इसलिए और गहरा गया कि जिस आयोजन में ये लोग शामिल हुए, वह किसी और नहीं बल्कि बीएसपी के ही राष्ट्रीय महासचिव मुनकाद अली के बेटे का विवाह समारोह था।

अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि चूंकि मुनकाद की बेटी सुम्बुल राणा मीरापुर विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार हैं, इसलिए बीएसपी प्रमुख मायावती ने ही पार्टी नेताओं को इस शादी से दूर रहने को कहा था। उनका कहना है कि आदेश की अवहेलना के कारण निष्कासन हुआ। राणा इलाके के एक अन्य बीएसपी नेता की बहू भी हैं लेकिन दोनों बीएसपी नेताओं, यानी उनके पिता और ससुर पर एक्शन लिया जाना बाकी है!

बहुकोणीय मुकाबले वाली मीरापुर सीट पर न सिर्फ बीएसपी बल्कि चंद्रशेखर रावण की आजाद समाज पार्टी और एआईएमआईएम भी मैदान में हैं। इतने ‘बीजेपी विरोधी’ दलों की मौजूदगी स्वाभाविक रूप से समाजवादी पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी करेगी क्योंकि असल मुकाबला तो राणा और बीजेपी-रालोद उम्मीदवार मिथिलेश पाल के बीच ही है। लगता है, पहली बार दो महिलाएं यहां खिताबी जंग के लिए आमने-सामने हैं।

मुरादाबाद में एक और रोचक लड़ाई चल रही जहां अल्लाह का आह्वान करते हुए बीजेपी उम्मीदवार रामवीर सिंह ठाकुर मुसलमानों का समर्थन मांग रहे। योगी आदित्यनाथ के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ के विपरीत, ठाकुर अपने प्रचार में अरबी अक्षरों और प्रतीकों वाली टोपी-दुपट्टे में दिखते हैं। दरअसल कुंदरकी विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम आबादी अच्छी खासी है, ऐसे में ‘जामा बदलाव’ की उनकी कोशिश तर्कसंगत भी लगती है। हालांकि अखिलेश यादव जरूर चुटकी लेते हैं कि ठाकुर को वाकई समर्थन हासिल है, तो उन्हें वोट के वास्ते अपना ‘रूप-रंग’ नहीं बदलना था।

60 फीसदी मुसलमानों वाले इस निर्वाचन क्षेत्र में 11 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में हैं और जाहिर है कि दो बार हार का मुंह देख चुके बीजेपी उम्मीदवार को यहां मुस्लिम वोट में सेंध लगाने के लिए ही उतारा गया है। इसी सीट पर समाजवादी पार्टी ने वोटरों के गायब होने की शिकायत करते हुए हल्ला बोला है। सपा प्रत्याशी हाजी मोहम्मद रिजवान का दावा है कि पिछले कई चुनावों में वोट डालने वाले हजारों मतदाताओं के नाम संशोधित वोटर लिस्ट से गायब हैं। उन्होंने बीजेपी पर बेईमानी का आरोप लगाया क्योंकि निष्पक्ष मुकाबले में तो वह जीत नहीं सकती।

एक और पारिवारिक ड्रामा मैनपुरी जिले में चल रहा है जहां आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव के दामाद तेज प्रताप यादव करहल से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार हैं। उनका मुकाबला जहां बीजेपी से है, वहीं मुलायम सिंह यादव के बड़े भाई के दामाद अभय राम यादव भी निर्दलीय मैदान में हैं। 2022 में इस सीट से यादव उम्मीदवार को लड़ाने का सफल प्रयोग करने वाली बीजेपी ने एक बार फिर यादव को ही उतारा है। अब इस भरे-पूरे मैदान में अगर बीजेपी ने ठीक-ठाक यादव वोट अपने पाले में कर लिए तो यह सपा के लिए परेशानी का सबब हो सकता है। अखिलेश यादव की यह सीट उनके लोकसभा चुनाव जीतने के बाद रिक्त हुई है।

कांग्रेस के न होने के बावजूद मैदान में खासी भीड़ है। राष्ट्रीय राजधानी से सटे गाजियाबाद में बीजेपी और बीएसपी के बीच कड़ी टक्कर दिख रही है। सपा ने बीजेपी के संजीव शर्मा और बीएसपी के परमानंद गर्ग के खिलाफ दलित सिंहराज जाटव को मैदान में उतारा है। परंपरागत रूप से बीजेपी का गढ़ रहे गाजियाबाद की यह सीट बीजेपी के पास रही है, तो विपक्ष का उस पर सवाल उठाना लाजिमी है कि इतने वर्षों में क्षेत्र में क्या काम हुआ? उनका आरोप है कि कचरा, प्रदूषण, परिवहन दिक्कतें, खराब कानून व्यवस्था और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण कारोबार चौपट हैं और तनाव बढ़ रहा है। देखना बाकी है कि बदलाव की यह पुकार मतदाताओं के बीच क्या असर डालती है।

इस बीच, सीसामऊ (कानपुर) से सपा प्रत्याशी नसीम सोलंकी के मंदिर जाने से उपजा विवाद शांत हो गया है। दीपावली पर नसीम सोलंकी द्वारा एक मंदिर में दीपक जलाने की हिन्दू और मुस्लिम- दोनों ने आलोचना की। हिन्दू पुजारियों ने मंदिर का शुद्धिकरण किया तो एक मुस्लिम मौलवी ने फतवा जारी कर बताया कि यह इस्लाम के अनुरूप नहीं था जहां मूर्ति पूजा वर्जित है। सोलंकी का कहना है कि उन्हें दीया जलाने और दिवाली की शुभकामनाएं देने को आमंत्रित किया गया था और वह वहां पूजा नहीं कर रही थीं। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि आमंत्रण मिला तो वह दोबारा मंदिर जाएंगी।

गायब मतदाताओं का दिलचस्प मामला

उत्तर प्रदेश में 20 नवंबर को होने वाले नौ उप-चुनावों से यूपी विधानसभा में बीजेपी के बहुमत पर कोई फर्क नहीं पड़ने जा रहा और इस मायने में इनका कोई बहुत खास मतलब नहीं है। उपचुनावों में आमतौर पर सत्ताधारी दल ही जीतते दिखता है और इसके पीछे मतदाताओं का यह तर्क भी रहता है कि सत्ताधारी पार्टी उनके हितों की बेहतर पूर्ति कर सकती है। फिर भी यह उपचुनाव योगी आदित्यनाथ और समाजवादी पार्टी- दोनों के लिए खासे अहम हैं। जून में 33 लोकसभा सीटें हारने के बाद योगी आदित्यनाथ साबित करने की कोशिश में हैं कि वह अब भी सीटें जिता सकते हैं। उधर, कांग्रेस द्वारा रणनीतिक रूप से अपना दावा छोड़ने के बाद इंडिया गठबंधन के लिए सभी नौ सीटों पर चुनाव लड़ रही सपा को यह साबित करना है कि लोकसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन महज संयोग नहीं था।

चुनाव कार्यक्रम जारी होने और प्रचार में तेजी आने के बावजूद तारीखें बदलने के सवाल पर निर्वाचन आयोग एक बार फिर सवालों के घेरे में है। पर्यवेक्षकों का मानना है कि यूपी में 13 नवंबर को होने वाले उपचुनाव 20 नवंबर तक टालना इसलिए भी अनुचित था कि इसके लिए कमजोर बहाने का सहारा लिया गया। आयोग ने राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) की याचिका के हवाले से 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान को चुनाव टालने का आधार बनाया जो समझ से परे है? पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस मामले से आयोग ने एक और खराब मिसाल कायम की है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव का आरोप है कि यह सब जोड़-तोड़ के लिए और समय चुराने को सत्ता में मौजूद एनडीए के इशारे पर हुआ। आरोप तो यह भी हैं कि चुनाव वाले निर्वाचन क्षेत्रों में विशिष्ट समुदायों से संबंधित प्रशासनिक और पुलिस अफसरों की तैनाती की गई है जो शायद चुनाव आयोग को दिखाई नहीं दिया।

मीडिया से बातचीत में अखिलेश यादव ने याद दिलाया कि राज्य में 2022 के विधानसभा चुनावों के बाद उन्होंने मतदाता सूचियों से नाम काटकर सपा समर्थक मतदाताओं को वोट देने से रोकने का आरोप लगाया था। आयोग द्वारा सबूत पेश करने की चुनौती देते हुए दिए गए नोटिस के जवाब में सपा ने हलफनामे के साथ 18,000 ऐसे मतदाताओं की सूची भी पेश की। अखिलेश यादव पूछते हैं कि ‘लेकिन तब से आयोग ने चुप्पी साध रखी है, क्यों?’

गौरतलब है कि इस साल की शुरुआत में लोकसभा चुनाव में हार के बाद बीजेपी ने भी ऐसे ही आरोप लगाए थे। संगम लाल गुप्ता और प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी ने प्रतापगढ़ में हार के बाद यही आरोप लगाया। हालांकि चुनाव आयोग ने ऐसी किसी भी अनियमितता के आरोप को खारिज कर दिया। उसने यह दावा भी किया कि आयोग वैसे मतदाताओं के नाम हटाकर मतदाता सूचियां नियमित रूप से अपडेट करता है जो अब नहीं हैं या अन्यत्र चले गए हैं, खासकर महिलाओं की शादी के बाद ससुराल चले जाने के मामले।

सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में देश के राज्यों में सबसे ज्यादा मुस्लिम और दलित आबादी भी है। न्यूजलॉन्ड्री की एक रिपोर्ट बताती है कि 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य में 7.7 करोड़ महिलाएं वोट देने योग्य थीं लेकिन ध्यान देने की बात है कि सिर्फ 7 करोड़ ही बतौर मतदाता सूचीबद्ध थीं। रिपोर्ट में बताया गया है कि यह विसंगति दलित और मुस्लिम महिलाओं के बीच ज्यादा मुखर है।

हाल ही में सेवानिवृत्त राज्य सरकार के एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि राज्य में पिछले कुछ चुनावों में उन्होंने देखा कि हर मतदान केन्द्र के लिए ईवीएम और वीवीपैट मशीनों को चिह्नित करने के बाद वितरित किया जा रहा था। उन्होंने आरोप लगाया कि पहले ऐसा नहीं होता था और आश्चर्य हो रहा है कि यह नई परंपरा क्यों शुरू की गई। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इलेक्ट्रॉनिक मशीनों की जांच और यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे सही चल रही हैं, पहले स्थानीय लोगों और एजेंसियों की सेवाएं ली जाती थीं लेकिन अब यह सारा काम केन्द्रीकृत करके गुजरात की एक फर्म को सौंप दिया गया है। वह इस नई व्यवस्था की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हैं।

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