Kasauli and Dharamshala Hill Stations of Himachal Pradesh: नये साल पर आप कसौली और धर्मशाला की सैर कर सकते हैं. ये दोनों ही हिल स्टेशन हिमाचल प्रदेश में हैं और टूरिस्टों के बीच पॉपुलर हैं. यकीन मानिये ये हिल स्टेशन आपको रिफ्रेश कर देंगे और आपके भीतर नई ऊर्जा भर देंगे. कसौली और धर्मशाला जाकर आप खुद को एनरजेटिक महसूस करेंगे. ये दोनों ही हिल स्टेशन प्रकृति की गोद में बसे हुए हैं और टूरिस्टों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. यहां आप नदी, बर्फ से ढके पहाड़, झरने और हरियाली देख सकते हैं. सर्दियों में टूरिस्ट इन दोनों ही हिल स्टेशन में बर्फबारी का आनंद ले सकते हैं. ये ही कारण है कि देश के कोने-कोने से टूरिस्ट इन हिल स्टेशनों की सैर पर आते हैं.
धर्मशाला में टूरिस्ट तिब्बति संस्कृति को देख सकते हैं. यहां आप तिब्बती इंस्टीट्यूट ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट भी जा सकते हैं. यहां पारंपरिक शैली में नाटक की प्रस्तुति की जाती है. इसके अलावा यहां नामग्यालमा स्तूप भी घूम सकते हैं जो कि मैक्लॉडगंज के बेहद करीब स्थित है. धर्मशआला कांगड़ा जिले में है. इसे दलाई लामा का निवास स्थान के रूप में भी जाना जाता है. यहां से सैलानी कांगड़ा घाटी और धौलाधार रेंज के मनोरम दृश्य देख सकते हैं. धर्मशाला में टूरिस्ट वार मेमोरियल (युद्ध स्मारक) घूम सकते हैं.
देवदार के जंगलों में स्थित यह स्मारक शहर के पास है. इसे अंग्रेजों ने बनवाया था. टूरिस्ट यहां भागसुनाग मंदिर देख सकते हैं. यह मंदिर उतना ही पुराना है जितना डल झील है. पौराणिक कथाओं के अनुसार इसकी उत्पत्ति दैत्य राजा भागसु और नागों के देवता (नागराज) के बीच एक विशाल लड़ाई से हुई थी.
कसौली हिल स्टेशन देसी ही नहीं विदेशी टूरिस्टों को भी मंत्रमुग्ध कर देता है. यह हिल स्टेशन सोलन जिले में है. कहा जाता है कि यहां सालभर फूल खिलने का कारण इस कसौली कहा गया. ऐसी लोक मान्यता है कि सालभर पुष्प खिलने के कारण इस जगह को कुसमावली या कुसमाली कहा जाता था जो धीरे-धीरे कसौली हो गया. यह भी कहा जाता है कि पहले इस गांव का नाम कसुल था जो धीरे-धीरे कसौली हो गया. धीरे-धीरे यह हिल स्टेशन के तौर पर विकसित हो गया. 1841 में यहां ब्रिटिश अधिकारी हेनरी लॉरेंस की बच्ची का मलेरिया से निधन हो गया था जिसे यहीं दफनाया गया. यहां हेनरी ने अपनी बच्ची की याद में एक झोपड़ी बनाई थी जिसका नाम’सनीसाइड’ रखा गया. धीरे-धीरे यह जगह हिल स्टेशन के तौर पर विकसित हो गई.
पौराणिक मान्यता है कि लक्ष्मण जी के मूर्छित होने पर हनुमान जी जब संजीवनी बूटी लेने हिमालय जा रहे थे तो उन्होंने यहां स्थित पहाड़ी पर अपना दाया पांव टिकाया था. जहां अब मंदिर है.