(Himachali Khabar) Former PM Manmohan Singh Demise: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह इस दुनिया को अलविदा कह गए हैं। उन्होंने कल रात (गुरुवार 26 दिसंबर 2024) अंतिम सांस ली। मनमोहन सिंह अर्थव्यवस्था के सरदार थे उनकी रगों में वित्त की समझ थी। वे देश के वित्त मंत्री रहे और बाद में दो बार प्रधानमंत्री भी बने। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उन्होंने अपनी संपत्ति बढ़ाने के लिए किस निवेश टूल का इस्तेमाल किया? शेयर बाजार में निवेश करके फ्यूचर्स और ऑप्शंस खरीद-बेच कर या पारंपरिक तरीकों से?
जब मनमोहन सिंह 1991 में वित्त मंत्री बने थे तब सेंसेक्स 999 अंकों पर था। उनके बजट सुधारों के बाद साल के अंत तक सेंसेक्स लगभग दोगुना हो गया। लेकिन व्यक्तिगत रूप से उन्होंने शेयर बाजार में निवेश नहीं किया। वे बैंक एफडी और पोस्ट ऑफिस स्कीम जैसे पारंपरिक तरीकों से निवेश करना पसंद करते थे।
एफडी और पोस्ट ऑफिस सेविंग स्कीम2013 में प्रधानमंत्री रहते हुए उनके हलफनामे से पता चलता है कि उनकी कुल संपत्ति 11 करोड़ रुपये की थी। डॉ. सिंह और उनकी पत्नी ने आठ एफडी में निवेश किया था जिसकी राशि 1 लाख रुपये से लेकर 95 लाख रुपये तक थी। 2013 में उनकी एफडी और बैंक बचत 4 करोड़ रुपये की थी जबकि पोस्ट ऑफिस बचत 4 लाख रुपये थी। 2019 में उनके दिल्ली और चंडीगढ़ के घरों की कीमत 7 करोड़ रुपये बताई गई थी। 2013 से 2019 के बीच मनमोहन सिंह की संपत्ति की कीमत 11 करोड़ रुपये से बढ़कर 15 करोड़ रुपये हो गई।
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मनमोहन सिंह की संपत्ति2019 के राज्यसभा चुनाव हलफनामे के अनुसार मनमोहन सिंह और उनकी पत्नी गुरशरण कौर के पास 15 करोड़ रुपये की संपत्ति थी। दिल्ली (वसंत कुंज) और चंडीगढ़ (सेक्टर 11बी) में उनकी दो संपत्तियां हैं जिनकी कीमत 7 करोड़ रुपये थी। गुरशरण कौर के पास 150 ग्राम सोना था जिसकी कीमत 3 लाख रुपये से अधिक बताई जाती है। बैंक एफडी और बचत खातों में उनके पास 7 करोड़ रुपये से अधिक जमा थे। डाकघर की राष्ट्रीय बचत योजना (एनएसएस) में उनका 12 लाख रुपये का निवेश था। इसमें सबसे अधिक योगदान उनकी सावधि जमा और राष्ट्रीय बचत योजना (एनएसएस) का था।
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शेयर बाजार से दूरी की वजह क्या है?1992 में जब शेयर बाजार में काफी उथल-पुथल थी तब मनमोहन सिंह ने संसद में बयान दिया था “मैं शेयर बाजार को लेकर अपनी नींद नहीं खोऊंगा।” उस समय वे वित्त मंत्री थे। यह बयान न केवल निवेश के प्रति उनके दृष्टिकोण को दर्शाता है बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारत के इस महान आर्थिक सुधारक ने अपनी संपत्ति बढ़ाने के लिए पारंपरिक तरीकों (एफडी और डाकघर की योजनाओं) पर भरोसा किया।