वेद वेदांग और गुरुवाणी का अद्भुत संगम है श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा
Indias News Hindi February 03, 2025 04:42 AM

महाकुंभ नगर, 2 फरवरी . प्रयागराज महाकुंभ में सनातन धर्म के ध्वजवाहक अखाड़ों की भव्यता देखते ही बनती है. इसी कड़ी में श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है, जहां वेद, वेदांग और गुरु ग्रंथ साहिब की वाणी का संगम देखने को मिलता है. निर्मल पंथ के प्रभाव में इस अखाड़े को शास्त्रों, वेदों और वेदांगों की शिक्षाओं का मार्ग मिला, तो वहीं 1682 में खालसा पंथ की स्थापना के बाद शस्त्र धारण कर असहायों की रक्षा और अन्याय के विरोध का संकल्प भी मिला.

इसी कारण अखाड़े में शास्त्र और शस्त्र, दोनों का समान रूप से सम्मान होता है, जो इसकी संरचना और परंपराओं में स्पष्ट रूप से झलकता है.

सनातन धर्म के 13 अखाड़ों में जहां भव्यता और आडंबर देखने को मिलता है, वहीं श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल सहजता, समता और सेवा भाव के कारण अलग पहचान रखता है. इसके पंथ में दस गुरुओं द्वारा अपने शिष्यों को भक्ति और सेवा का जो संदेश दिया गया, वह आज भी इसकी मूल भावना में समाहित है. गुरु ग्रंथ साहिब, जिसे वेद का दर्जा प्राप्त है, इसकी आध्यात्मिक शिक्षाओं का केंद्र है. इसमें हर जाति के भक्तों और गुरुओं की वाणी संकलित है, जिससे जातिभेद के लिए कोई स्थान नहीं बचता.

अखाड़े में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सभी मिलकर लंगर में प्रसाद ग्रहण करते हैं. पंगत और संगत का यह भाव यहां की परंपराओं का अहम हिस्सा है. अखाड़े में निरंतर गुरु वाणी और कीर्तन का पाठ होता है, जिसमें सेवा और सहजता का भाव प्रकट होता है.

सन 1682 में पंजाब के पटियाला में राजा पटियाला के सहयोग से इस अखाड़े की स्थापना की गई थी. इसके संस्थापक बाबा श्री महंत मेहताब सिंह वेदांताचार्य थे. प्रारंभ में इसका मुख्यालय पटियाला में था, जो अब कनखल, हरिद्वार स्थानांतरित हो चुका है. वर्तमान में ज्ञान देव सिंह इसके अध्यक्ष हैं, जबकि आचार्य महामंडलेश्वर की भूमिका में साक्षी महाराज हैं.

अखाड़े में पांच महामंडलेश्वर के साथ 25 से 26 संतों की कार्यकारिणी होती है, जो अध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष और मुकामी महंत जैसे पदों पर कार्य करते हैं. अखाड़े की सबसे छोटी इकाई विद्यार्थी होती है. देशभर में इसकी 32 शाखाएं फैली हुई हैं.

अखाड़े में पंच ककार की परंपरा का पालन होता है, जिसमें कड़ा, कंघा, कृपाण, केश और कच्छा धारण करना अनिवार्य है. इसके सदस्यों की पहचान उनके वस्त्रों से होती है. नीले वस्त्रधारी निहंग, भगवा वस्त्र धारी संत और श्वेत वस्त्रधारी विद्यार्थी कहलाते हैं. यह अखाड़ा हिंदू सनातन परंपरा की सभी व्यवस्थाओं की साझा विरासत को संजोए हुए है और समता, सहजता और सेवा को अपना मूलमंत्र मानकर आगे बढ़ रहा है.

पीएसएम/

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