बीजान का समय
जुलाई-अगस्त में गेंदे के बीज बोए जाते हैं। अगले दो महीनों में पौधे तैयार होते हैं और दीपावली के आसपास इनमें फूल लगना शुरू हो जाते हैं। होली और गणगौर के आसपास इन फूलों के सूखने का समय हो जाता है। जैसे गर्मी बढ़ती जाती है, यह खत्म होते जाते हैं। सालमनाथ कुटिया के आसपास के करीब एक दर्जन से ज्यादा बाड़ियों में हरी पत्तेदार सब्जियों के साथ गेंदे के फूल भी उगाने का का कार्य होता है।
तीन किस्म के फूलों की पैदावार
क्षेत्र में तीन किस्म के गेंदे के फूलों की पैदावार होती है। केसरिया और पीले रंग के गेंदे के फूलों के अलावा स्थानीय भाषा में लाल रंग के छोटे आकार के फूलों को क्लापड़ी और सफेद रंग के फूलों को किसंती कहा जाता है। इन फूलों से बनी मालाओं की कीमत सामान्यत: दस रुपए से कुछ खास अवसरों पर 30 रुपए तक पहुंच जाती है। वहीं बड़े आकार की वरमाला की कीमत तो और भी ज्यादा होती है। एक किलो में फूल में अनुमानत: 10 से 15 माला बन जाती है।
दूर-दूर तक जाते हैंयहां के फूल
बीकानेर शहर में लक्ष्मीनाथ मंदिर, नागणेची मंदिर, सुजानदेसर स्थित काली माता एवं लोक देवता बाबा रामदेव मंदिर, वैष्णोधाम मंदिर, खाटूश्याम मंदिर, गोपेश्वर मंदिर, शिवबाड़ी मंदिर ,बड़ा गणेश मंदिर , इक्कीसिया गणेश मंदिर , जूनागढ़ स्थित गणेश मंदिर के अलावा आसपास क्षेत्र के बड़े मंदिरों के आगे बैठ कर माला बेचने वाले भी यहां से फूल अथवा माला ले जाते हैं। इसके अलावा मालाएं बेचने वाले कोटगेट ,बड़ा बाजार ,गंगाशहर ,पंचसती सर्किल जस्सूसर गेट, नथूसर गेट, जयपुर रोड आदि स्थानों पर मालाएं बेचते हैं । मंदिरों के अलावा मांगलिक कार्यों एवं शादी समारोह में वरमाला के साथ-साथ सजावट के लिए भी मालाएं और फूल ले जाते हैं।