नई दिल्ली, 23 फ़रवरी .
भाषा को लेकर विवाद पैदा होना दुर्भाग्यपूर्ण
भारत में कोई प्रादेशिक भाषा नहीं, सब भाषाओं का भाव राष्ट्रीय है
सभी राज्यों को अपना राजकाज, प्रशासन और न्यायिक प्रक्रिया अपनी भाषा में करना चाहिए
नई दिल्ली, 23 फ़रवरी . राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह अरुण कुमार ने राष्ट्र भाषा के बारे में बहुत स्पष्ट कहा है कि भारत की सभी भाषा राष्ट्रीय भाषा हैं. सभी राज्यों को अपना राजकाज, कामकाज, प्रशासन और व्यवहार अपनी अपनी भाषा में करना चाहिए. राष्ट्रीय स्तर पर सहजता से संवाद के लिए ‘कॉमन नेशनल लैंग्वेज’ के तौर पर हिन्दी का विकास कर सकते हैं , लेकिन इसे जबरन किसी पर थोपा नहीं जाना चाहिए.
मुंबई में आईडियाज ऑफ इंडिया के नाम से एक टीवी टॉक शो में प्रस्तोता ने उनसे पूछा था कि संघ हमेशा से राष्ट्र प्रथम की बात करता है जबकि हमारे देश में अनेक राज्य ऐसे हैं जो राज्य प्रथम की बात करते हैं. खासकर भाषा को लेकर, जैसे तमिलनाडु या पूर्वोत्तर के राज्य भी, अपनी भाषा को प्राथमिकता देना चाहते हैं. जबकि हमारे देश की राष्ट्र भाषा हिन्दी है. इसको लेकर कई राज्यों में कुछ विरोध होता है. इस बारे में संघ का क्या नजरिया है कि क्या राष्ट्र भाषा सभी राज्यों को अपनानी चाहिए. हर राज्य को जोड़ने वाली क्या भाषा का एक सूत्र बनना चाहिए.
इस सवाल के जवाब में रा.स्व. संघ के सह सरकार्यवाह अरुण कुमार ने कहा कि भाषा को लेकर जो विवाद खड़ा होता है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है. प्रत्येक राज्य को अपनी भाषा का विकास करना चाहिए. वहां का राज-काज, प्रशासन, न्यायिक काम, लोअर कोर्ट, सेशन कोर्ट, हाई कोर्ट- यह सब वहां की भाषा में चलना चाहिए. दूसरा, भारत में कोई प्रादेशिक भाषा नहीं है. भारत की सब भाषाएं राष्ट्रीय भाषा हैं.
रा.स्व.संघ के द्वतीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी गोलवलकर का उदाहरण देते हुए अरुण कुमार ने बताया एक बार तमिलनाडु में श्रीगुरुजी से किसी ने पूछा कि क्या राष्ट्र भाषा हिन्दी होनी चाहिए. तब उन्होंने कहा था कि ‘नहीं, भारत की सब भाषाएं राष्ट्रीय भाषा हैं. सब भाषाओं में एक ही भाव है. सबमें पूरे देश का भाव है. किसी भी भाषा में राज्य का विचार नहीं है, पूरे राष्ट्र का ही विचार है. अर्थात हमारे यहां भाषाएं अनेक हैं पर भाव एक है. इस दृष्टि से सब भाषाओं का उत्थान होना चाहिए.’
श्रीगुरुजी ने आगे कहा था कि हमने भारत का एक एडिमिनिस्ट्रेटिव सेटअप (प्रशासनिक तंत्र) बनाया है, जिसको संचालित करने के लिए हमें सभी राष्ट्रीय भाषाओं में से एक कॉमन नेशनल लैंग्वेज (समान राष्ट्रीय भाषा) तय करनी होगी. किसी कालखंड में वह संस्कृत थी. आज के समय में वह संभव नहीं है. तब हिन्दी एक ऐसी भाषा हो सकती है. यदि आप हिन्दी नहीं तय करेंगे तो कोई न कोई तो कॉमन नेशनल लेंग्वेज (समान राष्ट्रीय भाषा) वह स्थान लेगी. यदि वह इंग्लिश (अंग्रेजी) आएगी तो वह कॉमन नेशनल लैंग्वेज नहीं होगी, वह कॉमन फॉरेन लैंग्वेज होगी. वह भारतीय भाषा नहीं हो सकती. दूसरी बात उन्होंने (श्रीगुरुजी ने) उस समय कही थी कि यदि हम किसी फॉरेन लैंग्वेज को अपनी कॉमन नेशनल लैंग्वेज बना लेंगे तो आपकी अपनी भाषा का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा.
अरुण कुमार ने कहा कि मैं देश भर में अपने प्रवास में जाता हूं तो प्रायः स्थानीय मीडियम, जैसे महाराष्ट्र में मराठी भाषी, तमिलनाडु में तमिल मीडियम, बंगाल में बंग्ला भाषी मीडियम के विद्यालयों के सामने संकट देखता हूं. क्योंकि सब अंग्रेजी मीडियम की ओर प्रवृत (बढ़) हो रहे हैं. वस्तुतः भारत में यह जो चला और चल रहा है यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है.
अरुण कुमार ने पुरजोर तरीके से फिर रेखांकित किया कि भारत की सब भाषाएं राष्ट्रीय भाषाएं है. भारत के प्रत्येक राज्य के अंदर वहां का राजकाज, कामकाज, प्रशासन, व्यवहार वहां की राष्ट्र भाषा के अनुसार चलना चाहिए. धीरे धीरे कॉमन नेशनल लैंग्वेज के रूप में हिन्दी का उत्थान हो. इसको एक स्वाभाविक प्रक्रिया के तहत होने देना चाहिए. जब आप जबरन थोपेंगे तो उसकी प्रतिक्रिया भी होगी. और जो केवल अपने स्वार्थों के लिए विरोध करते हैं, मुझे नहीं लगता कि उसकी बहुत चिंता करनी चाहिए. समाज बहुत समझदार है. जहां भाषा विभेद के आधार पर विरोध खड़ा किया जाता है, जैसे तमिलनाडु का ही उदाहरण लें, तो वहां हिन्दी प्रचारिणी सभा के माध्यम से लाखों लोग हिन्दी का सर्टिफिकेट कोर्स करते हैं.
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/ जितेन्द्र तिवारी
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/ जितेन्द्र तिवारी