'पोप व्हीलचेयर पर हैं, हालेलूईया वाले पहले उन्हें ठीक करें..', मिशनरियों पर राजा भैया का तंज..
Newstracklive Hindi February 25, 2025 01:42 AM

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की सियासत में अपनी खास पहचान रखने वाले राजा भइया एक बार फिर सुर्खियों में हैं। प्रतापगढ़ जिले की कुंडा विधानसभा सीट से सात बार के विधायक और जनसत्ता दल लोकतांत्रिक पार्टी के प्रमुख रघुराज प्रताप सिंह, जिन्हें राजा भइया के नाम से जाना जाता है, ने इस बार सीधे तौर पर कैथोलिक चर्च के धर्मगुरु पोप फ्रांसिस की सेहत को लेकर एक विवादित टिप्पणी कर दी है।

पोप फ्रांसिस की खराब सेहत पर चिंता जताते हुए उन्होंने भारतीय ईसाई धर्मगुरुओं पर तंज कसते हुए कहा कि जो धर्मगुरु आदिवासियों और अशिक्षित लोगों को 'हालेलुइया' के नाम पर चमत्कारों का विश्वास दिलाते हैं, उन्हें वेटिकन सिटी जाकर पोप फ्रांसिस के सिर पर हाथ रखकर उन्हें ठीक करने की कोशिश करनी चाहिए। राजा भइया ने व्यंग्य करते हुए कहा, “पोप लंबे समय से व्हीलचेयर पर हैं और अब अस्पताल में गंभीर हालत में हैं, उन्हें तत्काल ही 'हालेलुइया' रूपी चमत्कार की आवश्यकता है।”

राजा भइया द्वारा उल्लेखित 'हालेलुइया' एक हिब्रू भाषा का शब्द है, जो दो शब्दों 'हलेल' और 'याह' से मिलकर बना है। 'हलेल' का अर्थ होता है प्रशंसा करना और 'याह' का मतलब होता है ईश्वर। इस तरह 'हालेलुइया' का शाब्दिक अर्थ हुआ, ईश्वर की स्तुति करना या भगवान के प्रति आभार व्यक्त करना। भारत में कई ईसाई मिशनरी इस शब्द को चमत्कारी रूप में प्रस्तुत करते हैं और इसे एक तरह से अपनी प्रार्थनाओं का हिस्सा बनाकर करिश्माई शक्तियों का प्रदर्शन करने का दावा करते हैं। और इसी तरह वे आदिवासी और दलित भारतीयों को ईसाई भी बनाते हैं, किन्तु कोई अंधश्रध्दा निर्मूलन समिति इनके खिलाफ आवाज़ नहीं उठती, उनके निशाने पर सिर्फ बहुसंख्यक धर्मगुरु ही होते हैं।

 

आदिवासियों और अशिक्षितों को ‘हालेलुइया’ का झांसा देकर करिश्मा दिखाने वाले भारत के ईसाई धर्मगुरुओं को चाहिए कि एक साथ जाकर वाटिकन सिटि में जीवन-मरण के बीच जूझ रहे पोप के सिर पर हाथ फेर कर उन्हें ठीक कर दें। वैसे भी पोप लंबे समय से wheel chair पर हैं और अब अस्पताल में काफ़ी गंभीर…

— Raja Bhaiya (@Raghuraj_Bhadri) February 23, 2025

बहरहाल, राजा भइया की इस टिप्पणी के बाद सियासी गलियारों में हलचल मचने की पूरी संभावना है। दिलचस्प बात यह है कि भारत में हिंदू धर्मगुरुओं और संतों पर इस तरह के तंज अक्सर कसे जाते हैं। कभी अंधविश्वास के नाम पर, तो कभी कर्मकांडों को लेकर, हिंदू समुदाय के धार्मिक नेताओं को हमेशा कटघरे में खड़ा किया जाता है। लेकिन जब बात दूसरे धर्मों की आती है, तो वही आवाजें अक्सर खामोश हो जाती हैं। राजा भइया की इस टिप्पणी ने इसी दोहरे रवैये को उजागर किया है। उनकी बात में एक कड़वी सच्चाई भी छिपी है, आखिर क्यों भारत में हिंदू धर्म को छोड़कर किसी अन्य समुदाय पर सवाल उठाना एक बड़ा विवाद बन जाता है? क्या दूसरे धर्मों के नेताओं और प्रथाओं पर सवाल उठाना वर्जित है? ये सवाल अब सियासी और सामाजिक चर्चाओं का हिस्सा बनने जा रहे हैं।

राजा भइया के इस बयान के बाद राजनीति में भूचाल आ सकता है। एक बड़े नेता द्वारा खुलेआम इस तरह से ईसाई मिशनरी को निशाना बनाना एक दुर्लभ घटना है। अब देखना होगा कि इस बयान पर सियासी पार्टियों की क्या प्रतिक्रिया आती है। क्या इसे धार्मिक असहिष्णुता का नाम दिया जाएगा या फिर इसे एक खुली बहस का मुद्दा माना जाएगा? बहरहाल, राजा भइया ने एक ऐसा मुद्दा छेड़ दिया है, जिस पर बहस तो होगी, लेकिन क्या इस बहस में निष्पक्षता होगी या फिर वही दोहरा मापदंड देखने को मिलेगा, यह देखने वाली बात होगी।

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