Himachali Khabar (supreme court decision) प्रोपर्टी पर कब्जे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक मामला आया। दरअसल, देश की सर्वोच्च न्यायालय के सामने एक जटिल कानूनी सवाल आया। इसपर संवैधानिक बैंच को फैसला करना था। कोर्ट (supreme court) के सामने सवाल था कि क्या निजी संपत्तियों को अनुच्छेद-39 (बी) के तहत समुदाय का भौतिक संसाधन माना जा सकता है?
साथ ही सवाल था कि आम लोगों की भलाई करने के लिए क्या किसी की निजी संपत्ति को लेकर वितरित किया जा सकता है। क्या इस उद्देश्य से निजी संपत्ति का अधिग्रहण हो सकता है?
16 याचिकांए सुप्रीम कोर्ट में पहुंची
ऐसे मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट (supreme court) में 16 याचिकाएं दायर की गई थीं। इनमें 1992 में मुंबई की प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन की एक प्रमुख याचिका भी थी। इस याचिका में उन्होंने महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास प्राधिकरण अधिनियम के अध्याय 8-ए का विरोध किया था। इसके तहत सरकारी प्राधिकारियों को उपकरित भवनों और उस भूमि का अधिग्रहण करने का अधिकार दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बैंच ने दिया फैसला
सुप्रीम कोर्ट (supreme court order) की 9 जजों की बैंच ने इस सवाल के जवाब में फैसला दिया। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संवैधानिक बैंच ने बहुमत से इसपर फैसला दिया कि संविधान के अनुसार आम भलाई के लिए सरकारों को निजी संपत्ति के सभी संसाधनों पर कब्जा का कोई अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में फैसला सात दो के बहुमत से आया है। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार कुछ मामले में निजी प्रोपर्टीज पर दावा कर सकती है परंतु आम भलाई हेतु निजी स्वामित्व के सारे संसाधनों पर कब्जा करने का अधिकार नहीं है।
पुराने फैसले को कर दिया खारिज
इससे पहले जस्टिस कृष्णा अय्यर की बैंच ने फैसला दिया था कि संविधान के अनुच्छेद- 39 (बी) के अनुसार सारे निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को वितरण के लिए सरकार अधिगृहीत कर सकती है। वहीं अब सुप्रीम कोर्ट (supreme court) के चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुआई में संवैधानिक बैंच ने इस फैसले को पलटते हुए खारिज कर दिया है।
पहले ऐसे फैसलों का था दूसरा कारण
सुप्रीम कोर्ट (supreme court decision) की तरफ से बहुत बड़ा फैसला दिया गया है। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने अपने उन सभी फैसलों को पलट दिया जिनमें आम भलाई के लिए सरकारों को हर तरह की प्राइवेट संपत्तियों का अधिग्रहण करने का अधिकार दिया था।
पहले फैसला था कि निजी संपत्ति को कब्जे में लेकर वितरित किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा समाजवादी सोच को तरजीह देते हुए पहले ऐसे फैसले हुए थे। वहीं सुप्रीम कोर्ट की बैंच मे एक जज ने अपनी आंशिक सहमति अन्य 7 जजों के साथ जाहिर की तो एक जज पूरी तरह से असमहत रहे।
supreme court ने बताई समकालिन व्याख्या की जरूरत
सुप्रीम कोर्ट (supreme court latest order) में मामले में गहनता से सुनवाई की गई। एक मई को मामले में सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया। यहां प्रमुख सवाल था कि क्या प्राइवेट संपत्तियों को संविधान के तहत समुदाय का भौतिक संसाधन माना जा सकता है।
इस विस्तृत सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी भी प्रकार की निजी संपत्ति किसी समुदाय का भौतिक संसाधन नहीं है या फिर हर निजी संपत्ति, समुदाय का भौतिक संसाधन है। ये दोनों ही एक दम अलग दृष्टिकोण हैं। ऐसे मामलों में समकालिन व्याख्या की जरूरत है।