क्या है प्राचीन काल के संभोग का रहस्य! कैसे होता था पहले के समय संभोग?
Rochak Sr Editor March 01, 2025 09:45 PM

भारत की प्राचीन सभ्यता में सेक्स और शारीरिक आनंद के प्रति दृष्टिकोण काफी अलग और खुले हुए थे। जहाँ पश्चिमी दुनिया में समय के साथ सेक्स को एक शर्मनाक और पापी विषय माना गया, वहीं भारतीय समाज ने इसे न केवल एक प्राकृतिक आवश्यकता के रूप में देखा, बल्कि इसे कला, संस्कृति और जीवन के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में स्वीकार किया। इस दृष्टिकोण को समझने के लिए सबसे प्रमुख ग्रंथ "कामसूत्र" का हवाला दिया जा सकता है, जो केवल यौन संबंधों के बारे में नहीं, बल्कि रिश्तों और जीवन के आनंद के हर पहलू को समेटे हुए है।

कामसूत्र और यौन आनंद

कामसूत्र के लेखक वात्स्यायन ने यौन आनंद को एक प्राकृतिक और सकारात्मक अनुभव के रूप में देखा। उन्होंने काम को सिर्फ संतानोत्पत्ति तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे आनंद और मानसिक संतोष का भी एक महत्वपूर्ण स्रोत माना। उनका कहना था कि शारीरिक संबंध दोनों पक्षों के लिए सुखद और समृद्ध अनुभव होना चाहिए, और इसके लिए शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार होना जरूरी है।

प्राचीन भारतीय वास्तुकला में सेक्स का चित्रण

प्राचीन भारत की वास्तुकला में सेक्स के खुले विचारों को देखा जा सकता है। ओडीशा के कोणार्क सूर्य मंदिर, अजंता और एलोरा की गुफाएँ, और खजुराहो के मंदिरों में नग्न मूर्तियों और यौन संबंधों के चित्रण इसे साबित करते हैं। इन मंदिरों में यौन क्रियाओं के हर रूप को दिखाया गया है, जो यह दर्शाता है कि उस समय सेक्स के प्रति समाज का दृष्टिकोण कितना खुला और स्वीकृत था।

समलैंगिकता की स्वीकार्यता

प्राचीन भारत में समलैंगिकता को भी स्वीकार किया गया था। संस्कृत ग्रंथों में समलैंगिकता को एक प्राकृतिक प्रवृत्ति के रूप में प्रस्तुत किया गया है। "कामसूत्र" में समलैंगिक संबंधों का उल्लेख किया गया है और उन पर कोई निंदा नहीं की गई थी। इसके अलावा, मध्यकालीन ग्रंथों में 'स्वारानी' (महिला समलैंगिक) और 'क्लीव' (पुरुष समलैंगिक) जैसे शब्दों का उल्लेख मिलता है, जो यह दर्शाते हैं कि समलैंगिकता को प्राचीन भारतीय समाज में किसी प्रकार का अपमान नहीं समझा जाता था।

विवाहेत्तर संबंधों की स्वीकृति

प्राचीन भारत में विवाहेत्तर संबंधों को भी अपराध नहीं माना जाता था। राधा और कृष्ण के प्रेम की गाथाएँ इस बात का प्रमाण हैं कि उस समय प्रेम और यौन संबंधों को कोई दैवी या सामाजिक बंधन नहीं था। यही नहीं, संस्कृत काव्य में राधा को एक सामान्य नायिका के रूप में चित्रित किया गया, जो समाज में प्रेम और यौन संबंधों की स्वीकृति का प्रतीक बन गई।

महिला और पुरुष के यौन अनुभव में अंतर

कामसूत्र में वात्स्यायन ने पुरुष और महिला की यौन इच्छाओं में अंतर को स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि पुरुषों की यौन इच्छाएँ आग की तरह होती हैं, जो जल्दी भड़क उठती हैं और उतनी ही जल्दी शांत हो जाती हैं। वहीं, महिलाओं की इच्छाएँ पानी की तरह होती हैं, जो धीरे-धीरे जागृत होती हैं और गहरी होती जाती हैं। इसका मतलब यह था कि महिला के आनंद के लिए सिर्फ पुरुष का अस्तित्व जरूरी नहीं, बल्कि एक गहरे और विचारशील संबंध की आवश्यकता होती है।

प्राचीन भारत में सेक्स को लेकर जो खुलापन था, वह न केवल यौन आनंद की स्वीकृति थी, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण को भी दर्शाता था। कामसूत्र जैसे ग्रंथों ने सेक्स को एक कला, एक शारीरिक और मानसिक संतोष का मार्ग माना, न कि केवल एक शारीरिक क्रिया। इसके अलावा, समलैंगिकता और विवाहेत्तर संबंधों की स्वीकृति से यह साबित होता है कि प्राचीन भारतीय समाज में यौन जीवन को खुली सोच के साथ स्वीकार किया गया था।

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