दिल्ली की जीबी रोड पर 70 मर्दों के साथ एक रात: एक सेक्स वर्कर की दर्दभरी कहानी
Rochak Khabare Hindi March 15, 2025 06:42 PM

नई दिल्ली के गरस्टिन बास्टियन रोड या जीबी रोड के रेड-लाइट एरिया में हर रात जो गुजरती है, वह किसी के लिए भी कल्पना से परे है। यहां की गुमनाम गलियां और टूटी-फूटी सीढ़ियां सिर्फ उन लोगों के लिए एक पहचान नहीं हैं, जो इस अंधेरी दुनिया का हिस्सा बन चुके हैं। दिल्ली की इस सख्त दुनिया में 22 साल की एक सेक्स वर्कर की कहानी सुनकर किसी की भी रूह कांप उठेगी। यह कहानी है एक औरत की, जिसकी रातें दर्द और तन्हाई से भरी हुई हैं, लेकिन फिर भी वह उम्मीद और संघर्ष की एक जीवित मिसाल बनी हुई है।

कैसे पहुंची मैं इस दुनिया में

मेरा बचपन एक छोटे से गांव में बीता, जहां गरीबी का सामना करते हुए मेरे माता-पिता दिन-रात मेहनत करते थे। घर में पर्याप्त रोटी के लिए भी जद्दोजहद चल रही थी। लेकिन जब मैं 16 साल की थी, एक रिश्तेदार ने मुझे नौकरी दिलाने का वादा किया और मुझे दिल्ली ले आया। यहां मुझे बेच दिया गया। शुरू में बहुत रोई, चिल्लाई, लेकिन एक समय आया जब यह सब मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गया। अब यह मेरा दर्द नहीं, मेरी मजबूरी बन गई है।

एक रात की त्रासदी

वो रात मेरी जिंदगी की सबसे दर्दनाक रात थी। आमतौर पर 5-10 लोग आते थे, लेकिन उस रात, 70 मर्दों ने मेरी नसीब को चुनौती दी। एक के बाद एक, बिना रुके, बिना थके। वे मेरे लिए इंसान नहीं, एक सौदा थे। हर मर्द का चेहरा बेरहम और खाली था, और मैंने उन्हें सिर्फ एक वस्तु के रूप में देखा। मेरी देह का दर्द और मानसिक थकान किसी के लिए मायने नहीं रखती थी। मुझे जो तन्हाई और अवसाद मिला, वह उन रातों में महसूस हुआ। अगली सुबह, मैंने जैसे-तैसे खुद को संभाला, लेकिन मुझे फिर से वही दर्द झेलने के लिए तैयार होना पड़ा।

जीबी रोड की अनकही सच्चाई

जीबी रोड, जो दुनिया के लिए एक शहरी मेला लगता है, हमारे लिए एक जेल से कम नहीं है। यहां हर कदम, हर सांस एक नए डर को जन्म देती है। यहां हर रात एक नई कहानी लिखी जाती है, जहां गुलाबों और दर्द की गंध एक साथ बसी होती है। हम जो दिनभर की मेहनत से सिर्फ जीवन की छोटी सी राहत की कोशिश करते हैं, वो रात होते ही गायब हो जाती है। हमारी हंसी, हमारे आंसू, सब कुछ एक कीमत पर बिकता है। हम यहां अपनी इच्छाओं और हक के लिए नहीं, बल्कि अपने परिवार और पेट की भूख को शांत करने के लिए आते हैं।

एक सपना था जो मर चुका

मैंने भी कभी सपने देखे थे—कि एक दिन अपनी मेहनत से एक घर बनाऊंगी, अपने परिवार को वापस घर लाऊंगी और कुछ अच्छा करूंगी। लेकिन अब यह सपने धुंधले होते गए हैं। दिन-ब-दिन इस संसार के संघर्षों में खुद को खोते हुए मुझे लगा कि मैं कभी किसी सपने को पूरा नहीं कर पाऊंगी। समाज हमारी पहचान को गंदगी के रूप में देखता है, लेकिन कोई भी यह नहीं पूछता कि हम यहां क्यों हैं। हर औरत का दिल बस यही चाहता है कि वह इस दुनिया के गंदे हिस्से से बाहर निकल सके, लेकिन मजबूरी हमें हर बार हारने पर मजबूर कर देती है।

क्या कभी बदलेगी यह जिंदगी?

हर दिन मुझे यही सवाल सताता है कि क्या मेरी जिंदगी कभी बदल पाएगी? जब सरकारें आती हैं, वादे करती हैं, तो क्या वे सच में हमारी जिंदगियों में बदलाव ला पाती हैं? कई बार कुछ लोग हमारी मदद के लिए हाथ बढ़ाते हैं, लेकिन वे भी बहुत कम होते हैं। मैं सिर्फ यही चाहती हूं कि मेरी कहानी एक चेतावनी बनकर न रहे, बल्कि इसे समझने और इसे बदलने की कोशिश की जाए। मैं बस चाहती हूं कि मेरी रातें खत्म हों और मैं खुले आसमान में एक नई जिंदगी जी सकूं।

क्या ये संभव है? शायद हां, शायद नहीं, लेकिन मैं उम्मीद नहीं छोड़ती।

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