रुद्रप्रयाग, 17 मार्च . चोराबाड़ी ग्लेशियर से निकलने वाली मंदाकिनी नदी का तीखा ढलान व तेज बहाव केदारनाथ क्षेत्र में भूकटाव का सबसे कारण बन रहा है, जिससे भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं. बारिश होते ही मंदाकिनी नदी का जलस्तर बढ़ने के साथ ही वेग अधिक हो रहा है.
उद्गम स्थल से गौरीकुंड तक करीब 20 किमी क्षेत्र में नदी संकरी घाटी से होकर गुजर रही है, जहां कुछ देर की बारिश में जलस्तर बढ़ जाता है, जिससे भू-कटाव अधिक होने से भूस्खलन की घटनाओं में प्रतिवर्ष इजाफा हो रहा है. बावजूद, आपदा के एक दशक से अधिक समय बाद भी मंदाकिनी नदी से बचाव के लिए ठोस प्रयास नहीं हो पाए हैं. हिमालय के चोराबाड़ी ग्लेशियर से मंदाकिनी नदी निकल रही है. उद्गम स्थल से नदी का स्पान कम होने के साथ ही ढलान भी है, जो केदारनाथ तक समान है. पर, केदारनाथ से गौरीकुंड तक मंदाकिनी नदी अत्यधिक ढलान के साथ संकरी घाटी में बहती है, जिससे इसका वेग अधिक है.
हिमालय क्षेत्र से निकलने वाली नदियों में मंदाकिनी नदी अपने शुरूआती मार्ग में सबसे अधिक ढलान पर बह रही है. मंदाकिनी नदी लगभग 94 किमी का सफर तय कर रुद्रप्रयाग में अलकनंदा नदी से मिलती है. नदी अपने शुरूआती बीस किमी क्षेत्र में चोराबाड़ी ग्लेशियर से गौरीकुंड तक संकरी वी-आकार की घाटी के साथ ही करीब 18 मीटर वर्टिकल ढलान में बह रही है, जो इसके वेग को रफ्तार देता है. तीखा ढलान व संकरी घाटी के कारण कुछ देर की बारिश में नदी का जलस्तर बढ़ जाता है. ग्रीष्मकाल से बरसात तक नदी केदारनाथ से गौरीकुंड तक खतरे के निशान पर बहती है, जिससे पूरे क्षेत्र में व्यापक स्तर पर भूकटाव भी हो रहा है. प्रो. वाईपी सुंदरियाल बताते हैं कि 16/17 जून 2013 की आपदा के बाद से मंदाकिनी नदी के बहाव और रफ्तार में तेजी आई है, जिससे क्षेत्र में भूकटाव भी तेजी से भी हो रहा है. नदी तल से लगातार भूकटाव का असर केदारनाथ से गरूडचट्टी और बेस कैंप से रामबाड़ा क्षेत्र तक हो रहा भूस्खलन है.
बीते साल 31 जुलाई की देर सांय को अतिवृष्टि से मंदाकिनी नदी का जलस्तर बढ़ने से बहाव में तेजी ने जगह-जगह जमीन काटी, जिससे पैदल मार्ग कई जगहों पर व्यापक रूप से क्षतिग्रस्त हुआ है. यही नहीं, मंदाकिनी नदी के ऊफान का असर गौरीकुंड से लेकर सोनप्रयाग तक भी हुआ है, जिससे यहां हाईवे सहित नदी किनारे भारी कटाव हुआ है. बता दें कि केदारनाथ आपदा के बाद, मंदाकिनी नदी के बहाव को नियंत्रित करने के लिए सर्वेक्षण कर केदारनाथ से रुद्रप्रयाग तक फ्लड़ जोन चिह्नित किए गए थे, जहां पर सिंचाई विभाग के जरिए सुरक्षा कार्य होने थे. पर, आज तक ऐसा नहीं हो सका. इनका कहना है
-हिमालय क्षेत्र में निकलने वाली नदियों में मंदाकिनी का वेग और ढलान सबसे अधिक है, जिस कारण भूस्खलन व भूधंसाव हो रहा है. साथ ही संकरी क्षेत्र में बहने के कारण कुछ देर की बारिश में ही नदी का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर पहुंच जाती है. जरूरी है कि, केदारनाथ क्षेत्र में नदी के दोनों तरफ चरणबद्ध तरीके से सुरक्षा कार्य किए जाएं, जिससे धाम को सुरक्षित किया जा सके.
— प्रो. यशपाल सुंदरियाल, पूर्व विभागाध्यक्ष भू-विज्ञान विभाग, एचएचबीकेविवि श्रीनगर गढ़वाल.
/ दीप्ति