बीकानेर न्यूज़ डेस्क - बीकानेर का गंगा थियेटर, जो कभी शहर में मनोरंजन का केंद्र माना जाता था, अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका है। 1924 में बनी महाराजा गंगा सिंह के सपनों की यह इमारत, जहां कभी नाटकों और फिल्मों की चकाचौंध हुआ करती थी, अब समय की धूल में दब चुकी है। एक समय था जब यहां फिल्म के टिकटों के लिए लंबी कतारें लगती थीं। 1950 के दशक में इसे गोलछा ग्रुप को लीज पर दे दिया गया, लेकिन धीरे-धीरे यह विवादों में घिर गया। 2005 में जब इसे हमेशा के लिए बंद कर दिया गया, तो बीकानेर ने न सिर्फ एक थियेटर खो दिया, बल्कि अपनी यादों का एक अहम हिस्सा भी खो दिया।
इमारत से जुड़ी यादें दिलों में बसी हैं
स्थानीय लोग कहते हैं कि यह शानदार इमारत उनके दिलों में बसी है। हमने पहली फिल्म यहीं देखी थी। वो उत्साह, वो हंसी, वो सब अब सिर्फ याद बनकर रह गई है। एक समय था जब बड़े पर्दे पर फिल्में देखने के लिए लंबी कतारें लगती थीं। नई हिट फिल्मों के शो हाउसफुल हुआ करते थे। फिर मल्टीप्लेक्स का दौर आया। सिंगल स्क्रीन सिनेमा की जगह मल्टी स्क्रीन सिनेमा ने ले ली। लेकिन आज मोबाइल के दौर में सिनेमा हॉल इतिहास बन चुके हैं। गंगा थिएटर उनमें से एक है।
इसका निर्माण महाराजा गंगा सिंह ने करवाया था
इसका निर्माण 1924 में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने करवाया था। फिल्मी दौर से पहले इस हॉल का इस्तेमाल स्टेज के तौर पर होता था। बाद में इसे थिएटर में बदल दिया गया और आम लोगों के मनोरंजन के साधन के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा। गंगा थिएटर की कहानी सिर्फ ईंट-पत्थरों से बनी एक इमारत की नहीं है, यह उन जज्बातों की कहानी है जो इस शहर के लोगों के दिलों में पीढ़ियों से बसी हुई हैं। क्या यह कभी अपने मूल स्वरूप में वापस आ पाएगा या फिर यह अतीत की कहानी बनकर रह जाएगा, यह तो वक्त ही बताएगा।