वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने पिछले साल इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव द्वारा दिए गए विवादास्पद बयान के मुद्दे का भी हवाला दिया। हालांकि सिब्बल ने दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आवास पर भारी मात्रा में नकदी मिलने के मामले पर टिप्पणी करने से परहेज किया।
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उन्होंने इस मुद्दे पर कहा, इस मामले से निपटने के लिए एक आंतरिक प्रक्रिया है। अब तथ्यों के अभाव में मुझे नहीं लगता कि इस देश के एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में मुझे इस पर टिप्पणी करनी चाहिए। यह पूछे जाने पर कि क्या वह न्यायिक प्रणाली के बारे में चिंतित हैं।
सिब्बल ने कहा, पिछले कई वर्षों से न्यायपालिका के बारे में विभिन्न पहलुओं पर चिंताएं रही हैं, एक चिंता भ्रष्टाचार के बारे में है, और भ्रष्टाचार के कई अर्थ हैं। एक अर्थ यह है कि कोई न्यायाधीश किसी आर्थिक लाभ के कारण निर्णय देता है। भ्रष्टाचार का दूसरा रूप अपने पद की शपथ के विपरीत काम करना है, जो यह है कि वह बिना किसी भय या पक्षपात के निर्णय देगा।
उन्होंने कहा, मैं एक उदाहरण देता हूं, जिला न्यायालय और सत्र न्यायालय में शायद ही कोई न्यायाधीश हो जो जमानत दे सके। अब ऐसा तो नहीं हो सकता कि हर मामले में मजिस्ट्रेट न्यायालय या सत्र न्यायालय को जमानत खारिज करनी पड़े। 90-95 प्रतिशत मामलों में जमानत खारिज हो जाती है।
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सिब्बल ने कहा कि इससे ऐसा प्रतीत होता है कि व्यवस्था में कुछ गड़बड़ है। वरिष्ठ अधिवक्ता ने पूछा कि क्या न्यायाधीश को डर है कि यदि उन्होंने जमानत दे दी तो इसका उनके करियर पर असर होगा? सिब्बल ने कहा कि तीसरा रूप यह है कि न्यायाधीश अब खुलेआम बहुसंख्यकवाद का समर्थन कर रहे हैं और राजनीतिक रुख अपना रहे हैं।
उन्होंने कहा, पश्चिम बंगाल में एक न्यायाधीश थे जो खुलेआम एक राजनीतिक पार्टी के विचारों का समर्थन कर रहे थे और फिर उन्होंने इस्तीफा दे दिया तथा उस विशेष पार्टी में शामिल हो गए। एक न्यायाधीश ऐसे भी थे जिन्होंने खुलेआम कहा कि ‘हां मैं आरएसएस से जुड़ा हूं’।
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सिब्बल ने कहा, हमारे सामने न्यायमूर्ति शेखर (यादव) हैं जिन्होंने कहा कि भारत में ‘बहुसंख्यक संस्कृति कायम रहनी चाहिए और केवल एक हिंदू ही भारत को विश्वगुरु बना सकता है’। उन्होंने न्यायाधीश के रूप में अल्पसंख्यक समुदाय के लिए कुछ बहुत ही अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour