गर्भवती महिलाओं के लिए यह एक खुशी का समय होता है, जब वे अपने बच्चे के जन्म का इंतजार करती हैं। डिलीवरी के दो मुख्य प्रकार होते हैं: नॉर्मल डिलीवरी और सिजेरियन डिलीवरी। वर्तमान में, कई महिलाएं सिजेरियन डिलीवरी को प्राथमिकता देती हैं, क्योंकि इसमें दर्द का अनुभव नहीं होता और मेहनत की आवश्यकता नहीं होती।
जब महिलाएं प्राकृतिक तरीके से बच्चे को जन्म नहीं दे पाती हैं, तो डॉक्टर सर्जरी के माध्यम से बच्चे को बाहर निकालते हैं। इसे सिजेरियन डिलीवरी कहा जाता है। इस प्रक्रिया के लिए नियमित रूप से स्त्री रोग विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है। सिजेरियन डिलीवरी के बाद महिलाओं को ठीक होने में अधिक समय लगता है।
जब महिलाएं बिना किसी सर्जरी के यौनि के माध्यम से बच्चे को जन्म देती हैं, तो इसे नॉर्मल डिलीवरी कहा जाता है। यह प्रक्रिया प्राकृतिक होती है और महिलाओं के लिए सबसे बेहतर मानी जाती है। नॉर्मल डिलीवरी के बाद महिलाएं जल्दी ठीक हो जाती हैं।
डिलीवरी की तय तारीख से कुछ हफ्ते पहले महिलाओं में कई बदलाव देखने को मिलते हैं। सामान्यतः प्रसव से एक से चार हफ्ते पहले नॉर्मल डिलीवरी के संकेत मिल सकते हैं।
1. शिशु के सिर का वजाइना पर दबाव डालना, जिससे बार-बार यूरिन आना।
2. पीठ के निचले हिस्से में तनाव और दर्द का अनुभव।
3. पेल्विक क्षेत्र में शिशु की मूवमेंट में कमी।
4. गर्भाशय ग्रीवा का चौड़ा होना।
5. गुदा की मांसपेशियों का रिलैक्स होना।
6. रिलैक्सिन हार्मोन के प्रभाव से जोड़ों का ढीला होना।
7. प्रसव पूर्व संकुचन का अनुभव होना।