इंटरमिटेंट फास्टिंग आजकल काफी ट्रेंडिंग हो रही है. यह न सिर्फ वजन घटाने में मदद करती है, बल्कि शरीर में हार्मोन्स को भी संतुलित कर सकती है. आइए इस बारे में डॉ मंजरी चंद्रा (कंसलटेंट- क्लीनिकल और फंक्शनल नुट्रिशन , मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल गुरुग्राम) से जानते हैं.
इंसुलिन और वजन कंट्रोल –
डॉ मंजरी चंद्रा ने बताया कि जब हम लंबे समय तक फ़ास्ट रखते हैं, तो शरीर में इंसुलिन का लेवल कम होने लगता है. इंसुलिन एक ऐसा हार्मोन है जो शरीर में ब्लड शुगर को कंट्रोल करता है. अगर इंसुलिन अधिक मात्रा में बना रहे तो शरीर में चर्बी जमा होने लगती है, जिससे मोटापा और डायबिटीज़ का खतरा बढ़ जाता है. इंटरमिटेंट फास्टिंग के दौरान इंसुलिन कम होने से शरीर जमा चर्बी को एनर्जी के रूप में इस्तेमाल करता है, जिससे वजन घटने में मदद मिलती है.
इंटरमिटेंट फास्टिंग के दौरान शरीर में ग्रोथ हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है. यह हार्मोन मांसपेशियों की मरम्मत करने, मेटाबॉलिज्म बढ़ाने और एंटी-एजिंग में मदद करता है. ग्रोथ हार्मोन बढ़ने से त्वचा जवां बनी रहती है और शरीर की कुल सेहत में सुधार होता है.
हमारा शरीर दो मुख्य हार्मोन, लेप्टिन और घ्रेलिन—की मदद से भूख को कंट्रोल करता है. लेप्टिन हमें पेट भरा होने का संकेत देता है, जबकि घ्रेलिन भूख बढ़ाने का काम करता है. इंटरमिटेंट फास्टिंग इन हार्मोन्स को बैलेंस करने में मदद करता है, जिससे बार-बार खाने की इच्छा कम होती है और ओवरईटिंग से बचा जा सकता है.
हालांकि इंटरमिटेंट फास्टिंग के कई फायदे हैं, लेकिन महिलाओं को इसे अपनाने से पहले सावधानी बरतनी चाहिए. लंबे समय तक उपवास करने से उनके रिप्रोडक्टिव हार्मोन्स पर नेगेटिव इफ़ेक्ट पड़ सकता है, जिससे मेंस्ट्रुअल साइकिल इर्रेगुलर हो सकता है. इसलिए महिलाओं को छोटे उपवास या कम घंटों के फास्टिंग पैटर्न को अपनाने की सलाह दी जाती है.
इंटरमिटेंट फास्टिंग हार्मोन बैलेंस करने में मदद कर सकती है, लेकिन इसे सही तरीके से अपनाना ज़रूरी है. हर व्यक्ति का शरीर अलग होता है, इसलिए कोई भी नया डाइट प्लान अपनाने से पहले डॉक्टर या एक्सपर्ट से सलाह लेना सबसे अच्छा रहेगा.