भारत बना दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चाय निर्यातक: 2024 में 10 साल का रिकॉर्ड टूटा
Newsindialive Hindi March 29, 2025 12:42 AM
भारत की चाय ने रचा इतिहास, श्रीलंका को पछाड़ा

भारत ने 2024 में वैश्विक चाय बाजार में ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। चाय बोर्ड ऑफ इंडिया द्वारा हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, भारत ने 2024 में कुल 255 मिलियन किलोग्राम चाय का निर्यात किया है, जो बीते एक दशक का सबसे ऊँचा स्तर है। इस आंकड़े के साथ भारत ने श्रीलंका को पीछे छोड़कर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चाय निर्यातक देश बनकर इतिहास रच दिया है। पहले स्थान पर केन्या बना हुआ है, जिसने अपनी स्थिति बरकरार रखी है।

यह सफलता केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है। भारत ने यह मील का पत्थर उन हालातों में हासिल किया है जब दुनिया भर में भूराजनैतिक तनाव, वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता और विलंबित लॉजिस्टिक्स जैसी कई चुनौतियाँ सामने थीं। इसके बावजूद भारतीय चाय ने अपने गुणवत्ता, स्वाद और विविधता के दम पर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जबरदस्त पकड़ बनाई है।

2023 से 2024 में 10% की निर्यात वृद्धि

2023 में भारत ने कुल 231.69 मिलियन किलोग्राम चाय निर्यात की थी, जबकि 2024 में यह आंकड़ा बढ़कर 255 मिलियन किलोग्राम तक पहुँच गया — यानी करीब 10% की प्रभावशाली बढ़ोतरी। सिर्फ मात्रा ही नहीं, राजस्व में भी जबरदस्त उछाल देखा गया है। 2023 में जहाँ भारत ने 6,161 करोड़ रुपये की चाय निर्यात की थी, वहीं 2024 में यह बढ़कर 7,111 करोड़ रुपये तक पहुंच गया, यानी 15% की आयवृद्धि।

इसमें सबसे बड़ा योगदान इराक जैसे बाजारों से आया, जहाँ की मांग में उल्लेखनीय बढ़ोतरी दर्ज की गई है। आंकड़ों के मुताबिक, इराक अकेले भारत के कुल चाय निर्यात का लगभग 20% आयात करता है। पश्चिम एशिया में भारतीय चाय की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है, और श्रीलंका के उत्पादन में गिरावट का लाभ भारत को मिला है, जिसने इन बाजारों में मजबूती से प्रवेश कर लिया है।

भारत की चाय को दुनिया भर में पसंद किया जा रहा है

भारत आज चाय का सबसे बड़ा उपभोक्ता देश तो है ही, अब एक मजबूत वैश्विक ब्रांड भी बन चुका है। भारत 25 से अधिक देशों को चाय निर्यात करता है, जिनमें संयुक्त अरब अमीरात (UAE), इराक, ईरान, रूस, अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम प्रमुख हैं। कुल वैश्विक चाय निर्यात में भारत की हिस्सेदारी लगभग 10% है, जो इस उद्योग की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को दर्शाता है।

भारत से निर्यात की जाने वाली चाय का लगभग 96% हिस्सा ब्लैक टी या काली चाय का होता है। इसके अलावा, ग्रीन टी, हर्बल टी, मसाला टी, और लेमन टी जैसे वैरिएंट्स भी अब धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हो रहे हैं। खास बात यह है कि असम, दार्जिलिंग और नीलगिरी की चाय को दुनियाभर में बेहतरीन क्वालिटी की चाय माना जाता है। इनमें प्राकृतिक खुशबू, स्वाद और विशिष्टता के कारण इनकी मांग हर साल बढ़ती जा रही है।

चाय उत्पादन में भारत के प्रमुख राज्य

भारत में चाय का उत्पादन मुख्य रूप से उत्तर-पूर्व और दक्षिणी राज्यों में होता है। असम घाटी और कछार, भारत की चाय राजधानी कहे जा सकते हैं। इसके अलावा पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग, दोआर्स और तराई क्षेत्र चाय उत्पादन के बड़े केंद्र हैं। दक्षिण भारत में तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक मिलकर भारत के कुल उत्पादन का लगभग 17% योगदान देते हैं।

वर्तमान में भारत में लगभग 2.30 लाख छोटे चाय उत्पादक (Small Tea Growers) सप्लाई चेन का हिस्सा हैं। दिलचस्प बात यह है कि कुल उत्पादन का लगभग 52% योगदान इन्हीं छोटे उत्पादकों से आता है। इससे न सिर्फ ग्रामीण आजीविका को बढ़ावा मिलता है, बल्कि उत्पादन की विविधता और गुणवत्ता में भी इजाफा होता है।

सरकार की नीतियाँ और चाय उद्योग को मिला समर्थन

भारतीय सरकार ने चाय उद्योग को मजबूती देने और इसमें लगे परिवारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई ठोस कदम उठाए हैं। चाय बोर्ड ऑफ इंडिया के माध्यम से केंद्र सरकार ने निम्नलिखित पहलों को लागू किया है:

  • 352 स्वयं सहायता समूह (SHG) बनाए गए हैं, जो चाय बागानों में सामूहिक कार्यों को बढ़ावा देते हैं।
  • 440 किसान उत्पादक संगठन (FPO) और 17 किसान उत्पादक कंपनियाँ (FPC) छोटे उत्पादकों को बेहतर बाजार और संसाधन उपलब्ध कराने में मदद कर रहे हैं।
  • गुणवत्तापूर्ण तुड़ाई, फसल प्रबंधन और प्रशिक्षण पर विशेष जोर दिया जा रहा है ताकि उत्पादकता और गुणवत्ता दोनों में सुधार हो सके।
  • प्रूनिंग मशीन और मैकेनिकल हार्वेस्टर जैसी आधुनिक तकनीकें किसानों को दी जा रही हैं जिससे उत्पादन प्रक्रिया तेज और कुशल बन सके।
  • मिनी चाय फैक्ट्रियाँ स्थापित की गई हैं, जो ग्रामीण उद्यमियों और युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर रही हैं।
भारतीय चाय उद्योग: रोजगार और आत्मनिर्भरता का आधार

आज भारतीय चाय उद्योग में लगभग 1.16 मिलियन लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कार्यरत हैं। इनमें महिलाएं, छोटे किसान, ट्रांसपोर्ट से जुड़े लोग और व्यापारिक प्रतिनिधि शामिल हैं। यह उद्योग न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देता है, बल्कि ‘वोकल फॉर लोकल’ जैसी सरकारी पहलों के तहत आत्मनिर्भर भारत की दिशा में भी योगदान कर रहा है।

भारत की ब्लैक टी: विश्वभर में सबसे अधिक निर्यात की जाने वाली चाय

जब बात होती है चाय के निर्यात की, तो ब्लैक टी यानी काली चाय भारत की सबसे बड़ी ताकत बनकर सामने आती है। भारत से निर्यात की जाने वाली चाय का लगभग 96% हिस्सा ब्लैक टी का है। इसकी लोकप्रियता केवल घरेलू बाजार तक सीमित नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी इसकी जबरदस्त मांग है। काली चाय अपने गहरे रंग, तीव्र स्वाद और लंबे समय तक ताजगी बनाए रखने की क्षमता के कारण दुनियाभर में पसंद की जाती है।

यूके, रूस, ईरान, इराक और अमेरिका जैसे बाजारों में काली चाय की बिक्री सबसे अधिक है। इन देशों में खासकर ब्रेकफास्ट ब्लेंड्स, फ्लेवर्ड ब्लैक टी और मसाला चाय के रूप में इसका सेवन किया जाता है। वहीं कई देशों में काली चाय को दूध और मसालों के साथ “इंडियन मसाला टी” के रूप में अपनाया जाता है, जिससे भारतीय शैली का स्वाद उन्हें एक खास अनुभव देता है।

ब्लैक टी के अलावा भारत अब धीरे-धीरे ग्रीन टी और हर्बल टी जैसे हेल्दी विकल्पों पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है, क्योंकि वैश्विक ट्रेंड्स में स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ रही है। हालांकि फिलहाल काली चाय ही भारत के चाय निर्यात का आधार है, लेकिन आने वाले समय में विविधता का विस्तार निश्चित रूप से देश के निर्यात आंकड़ों को और ऊंचा ले जा सकता है।

चाय उद्योग से जुड़ी चुनौतियाँ: जलवायु परिवर्तन से लेकर लागत तक

चाय उद्योग, जितना बड़ा और लाभकारी है, उतना ही यह चुनौतियों से भी घिरा हुआ है। खासकर जलवायु परिवर्तन इसका सबसे बड़ा दुश्मन बनकर उभर रहा है। बारिश के अनिश्चित पैटर्न, अत्यधिक गर्मी और बाढ़ जैसी घटनाएं चाय उत्पादन पर सीधा असर डाल रही हैं।

इसके अलावा, उत्पादन लागत में लगातार वृद्धि, श्रमिकों के वेतन और सुरक्षा की जरूरतें, और वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा – ये सभी कारक उद्योग को दबाव में रखते हैं। कई बार निर्यात में देरी या कंटेनर की कमी जैसे लॉजिस्टिक मुद्दे भी बड़ी बाधाएं बन जाते हैं।

इसके अलावा, शुद्ध और गुणवत्ता वाली चाय बनाए रखने की जिम्मेदारी भी चाय उत्पादकों के कंधों पर होती है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रांड इमेज बनाए रखना बेहद जरूरी है। एक छोटी सी चूक से पूरे देश की प्रतिष्ठा प्रभावित हो सकती है।

सरकार और चाय बोर्ड को इन समस्याओं को लेकर निरंतर कार्य करने की आवश्यकता है ताकि यह उद्योग लगातार आगे बढ़ता रहे और किसान, व्यापारी व उपभोक्ता – सभी को लाभ होता रहे।

भारतीय चाय ब्रांड की अंतरराष्ट्रीय पहचान

भारत की चाय को सिर्फ एक उत्पाद नहीं, बल्कि एक ब्रांड के रूप में देखा जा रहा है। “डार्जिलिंग टी”, “असम टी” और “नीलगिरी टी” को GI टैग (Geographical Indication) प्राप्त है, जो इन्हें विशिष्ट पहचान और वैश्विक प्रतिष्ठा दिलाता है। यह टैग दर्शाता है कि यह चाय केवल उस खास भौगोलिक क्षेत्र में ही पैदा होती है और उसकी गुणवत्ता और स्वाद उसी जगह से संबंधित है।

अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में जब कोई “डार्जिलिंग टी” का नाम सुनता है, तो उसे भारत की छवि और प्रीमियम क्वालिटी चाय याद आती है। यही कारण है कि कई लग्जरी चाय ब्रांड्स, भारत से चाय इम्पोर्ट कर अपने नाम से बेचते हैं, और इसके लिए प्रीमियम दाम चुकाते हैं।

भारत को चाहिए कि वह अपने ब्रांड को और अधिक आक्रामक तरीके से प्रमोट करे, जैसे ‘Indian Tea – A Global Heritage’ जैसी मार्केटिंग मुहिम चलाई जा सकती है। इससे न केवल निर्यात बढ़ेगा बल्कि भारत की चाय को दुनिया भर में एक सांस्कृतिक और स्वादिष्ट अनुभव के रूप में पहचाना जाएगा।

चाय और भारतीय संस्कृति: केवल पेय नहीं, एक भावना

भारत में चाय केवल एक पेय नहीं है, यह हर घर की सुबह की शुरुआत, दोपहर की राहत, और शाम की गपशप का बहाना है। ऑफिस मीटिंग हो या रेल यात्रा, गली का नुक्कड़ हो या कोई शादी – चाय हर मौके का हिस्सा है।

यह सांस्कृतिक पहलू भारत की चाय को एक अलग ही पहचान देता है। चाय पीना यहां एक सामाजिक क्रिया है। यही संस्कृति जब अंतरराष्ट्रीय मंच पर जाती है, तो उसे एक भावनात्मक जुड़ाव के साथ प्रस्तुत किया जा सकता है – और यही भारत की चाय को अनूठा बनाता है।

‘चाय पे चर्चा’, ‘कड़क चाय’, ‘आओ चाय पीएं’ जैसे जुमले केवल बातें नहीं, बल्कि भारतीय जीवनशैली की झलक हैं। इस सांस्कृतिक गहराई को भारत के ब्रांडिंग में शामिल कर विश्वभर में भारतीय चाय की नई पहचान बनाई जा सकती है।

भविष्य की दिशा: डिजिटल, सस्टेनेबल और वैश्विक

चाय उद्योग का भविष्य अब डिजिटल, टिकाऊ (सस्टेनेबल) और वैश्विक दृष्टिकोण की ओर बढ़ रहा है। अब किसान ड्रोन से निगरानी, डेटा-ड्रिवन फसल प्रबंधन, और ऑनलाइन बिक्री जैसे आधुनिक साधनों का उपयोग कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर, पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए सस्टेनेबल फार्मिंग और कार्बन फुटप्रिंट घटाने पर भी ज़ोर दिया जा रहा है।

सरकार, NGOs और प्राइवेट कंपनियां मिलकर ई-नीलामी प्लेटफॉर्म्स, डिजिटल मार्केटिंग, और इको-फ्रेंडली पैकेजिंग पर काम कर रही हैं। इससे न केवल गुणवत्ता बेहतर होगी, बल्कि अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों के बीच भारत की छवि एक प्रगतिशील चाय उत्पादक देश की बनेगी।

चाय के क्षेत्र में स्टार्टअप्स और इनोवेटर्स के लिए भी यह समय शानदार है। ‘इन्फ्यूज़्ड टी’, ‘कोल्ड ब्रू’, ‘स्पेशलिटी टी कैफे’ जैसे विचार युवाओं को आकर्षित कर रहे हैं, और यह उद्योग रोजगार और उद्यमिता दोनों में तेजी ला रहा

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