.कहानी भारत की पहली मुस्लिम लेडी डकैत की, जानिए पुलिसवालों की हत्या के बाद डकैतन क्यों काट ले जाती थी उंगलियां▫ ˛˛
Himachali Khabar Hindi March 30, 2025 02:42 PM

गरीब परिवार में उसका जन्म हुआ। जब उम्र पांच वर्ष की हुई तो उसकी सुंदरता की चर्चा गांव-गली और मोहल्लों में होने लगी। 18 बरस की हुई तो पैरों में घुंघरू बंध गए।

फिर क्या था भाई तबला बजाता तो बहन ऐसा नृत्य दिखाती, जिसे देखकर आजमन से लेकर खासजन मंत्रमुग्ध हो जाया करते। नृत्यांगना की घुंघरू की आवाज चंबल तक पहुंची तो डाकू सुल्ताना गैंग के साथ उसका नाच देखने के लिए आ पहुंचा। लड़की की खूबसूरती और ठुमकों पर डकैत फिदा हो गए और पांच सौ रूपए देकर चला गया। पर डकैत बदले में लड़की को दिल बैठा। फिर क्या था एक दिन वह लड़की से मिलता है और प्यार का इजहार करता है। लड़की इंकार कर देती है। सुल्ताना उसे बंदूक के दम पर उठा ले जाता है। शादी करता है। जब वह प्रेग्नेंट होती है तो सुल्ताना उसे घर पर छोड़ देता है। पुलिसवाले प्रेग्नेंट के साथ दुष्कर्म करते हैं। जिसके बाद भारत की पहली मुस्लिम डकैत का जन्म होता है। जिसके नाम से बड़े-बड़े लोगों की पैंट गीली हो जाया करती। डकैतन पुलिसवालों का शिकार करती। उनकी हत्या के बाद हाथों की दसों को उंगलियां काट कर ले जाती।

डकैतों की इस खास सीरीज में हम आपको चंबल की शेरनी, चंबल की हसीना पुतलीबाई की कहानी से रूबरू कराने जा रहे हैं। पुतलीबाई का जन्म साल 1926 में एमपी के मुरैना जिले के बरबई गांव में एक गरीब मुस्लिम परिवार में हुआ था। पुतलीबाई का असली नाम गौहर बानो था। पिता का नाम नन्हें तो मां का नाम असगरी था। पुतलीबाई के माता-पिता नाच-गा कर अपना घर चलाते थे। लड़की बड़ी होती गई। घर के माहौल की वजह से वो भी नाचने और गाने लगी। पैसे की तंगी की वजह से घर वालों ने गांव में ही महफिल लगानी शुरू कर दी। लड़की का भाई अलादीन तबला बजाता और बहन नाचती। कहते हैं, गौहर बानो इतनी खूबसूरत थी कि उसको देखने के लिए कई गांव के लोग खिचे चले आते थे।

गौहर बानो गांव में ही अपनी महफिल सजाती थी। नाचते वक्त उसके पैर बिजली की तरह थिरकते थे और जब गाती थी तो लोग मदहोश हो जाते थे। देखने में इतनी सुंदर थी कि दूर-दूर के गांवों तक उसकी सुंदरता की चर्चाएं होने लगी थी। कहते हैं, जब नाचती थी तो पुतली की तरह दिखती थी इसलिए लोग उसे पुतली बाई कहकर बुलाने लगे थे। उसकी महफिल में हजारों लोगों की भीड़ उमड़ने लगी थी। धीरे-धीरे उसकी महफिल के चर्चे आगरा, लखनऊ और कानपुर तक होने लगे थे। अब बड़े-बड़े शहरों के लोग गौहर की महफिल देखने बरबई गांव पहुंचने लगे थे। गांव में पुतली के चहेतों की इतनी भीड़ होने लगी थी कि संभाली नहीं जा रही थी इसलिए पुतली को आगरा शिफ्ट होना पड़ा।

अब पुतली बाई की महफिल आगरा में जमने लगी। पूरे यूपी के लोगों पर गौहर का नशा चढ़ता जा रहा था। उसकी महफिल का हिस्सा बनने के लिए बड़े-बड़े लोग लाइन लगा कर खड़े होने लगे थे। लेकिन इसी बीच उसके दुश्मनों की तादाद भी बढ़ने लगी। इन दुश्मनों में पुलिस वाले भी शामिल थे। उसकी महफिल में कभी आग लगा दी जाती तो कभी गोलियां चल जातीं। पुतली को जान से मारने की धमकी दी जाने लगी थी। इन्हीं सब परेशानियों के चलते पुतली को वापस अपने गांव आना पड़ा। पुतली अब अपने गांव में ही नाचती। पुतली के घुंघरुओं की आवाज चंबल तक पहुंची। चंबल से सैकड़ों डाकू उसके दीवाने होते जा रहे थे।

एक दिन पुतली की सुंदरता की चर्चा उन दिनों से सबसे कुख्यात डाकू सुल्ताना तक पहुंची। सुल्ताना महिलाओं का सम्मान किया करता था, लेकिन चर्चाएं इतनी ज्यादा होने लगी थीं कि एक दिन उसको भी पुतली की महफिल का हिस्सा बनने जाना पड़ा। दरअसल पुतली के पड़ोस के गांव ‘सिरीराम का पुरा’ में उसका कार्यक्रम चल रहा था। सुल्ताना भी वहां पहुंच गया। पुतली का डांस देख उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। पुतली की एक-एक अदा उसके दिल में उतर गई थी। उसने पूरा डांस देखा और 500 रुपए का इनाम देकर वापस आ गया। सुल्ताना वापस बीहड़ तो आ गया, लेकिन उसका दिल पुतली पर ही अटका हुआ था। सुल्ताना पुतली का दीवाना हो चुका था।

एक दिन सुल्ताना को पता चलता है कि पुतली धौलपुर गांव की एक शादी में महफिल जमाने आई है। रात को 2 बजे फायरिंग करते हुए सुल्ताना वहां पहुंच जाता है। महफिल में सन्नाटा पसर जाता है। सुल्ताना पुतलीबाइ के सीने में बंदूक तान देता है और उसे चंबल जाने को कहता है। भाई की जान बचाने के लिए पुतली उसके साथ बीहड़ चली जाती है। बीहड़ में सुल्ताना पर बुतलीबाइ भी फिदा हो जाती है। दोनों के प्यार के किस्से आम हो गए। तभी पुतलीबाई प्रैग्नेंट हो जाती है। तब सुल्ताना उसे गांव छोड़ आता है। पुलिस को पुतलीबाई के बारे में जानकारी होती है। पुलिस उसे पकड़ लेती है।

पुलिस ने पुतलीबाई को अरेस्ट करने के बाद सुल्ताना के बारे में पूछताछ करती है। पर पुतलीबाई मुंंह नहीं खोलती। पुलिस ने उसे बेइंतहा पीटा और प्रेग्नेंट होने के बाद भी उसके साथ बलात्कार किया। फिर जैसे ही सुल्ताना कोई कांड करता पुलिस पुतली को पकड़ लेती और उसके साथ उसके परिवार वालों को भी मारती। ये सिलसिला 4 महीनों तक चलता रहा। फिर पुतलीबाई एक बेटी को जन्म देती है, जिसका नाम तन्नो रखा जाता है। बेटी को मां के पास छोड़कर वो वापस सुल्ताना के पास चली जाती है। बीहड़ में वापसी के बाद पुतली ने सुल्ताना से हथियार चलाना सीखा। पुतली गैंग के साथ मिलकर लूट अपहरण और हत्याओं जैसी वारदातों को अंजाम देना शुरू कर देती है।

इसी बीच एक दिन धौलपुर के रजई गांव में सुल्ताना गैंग की पुलिस से मुठभेड़ हो जाती है। दोनों तरफ से खूब गोलीबारी होती है। सारी गैंग बचकर भाग जाती है, लेकिन पुतली पुलिस की पकड़ में आ जाती है। पुतली को कुछ दिन तारागंज की जेल में रखा जाता है फिर धौलपुर शिफ्ट कर दिया जाता है। यहां भी पुलिस उसका बलात्कार करती है। कुछ दिनों बाद जमानत मिलते ही पुतली फिर से बीहड़ पहुंच जाती है। तीसरी बार बीहड़ पहुंचने के बाद उसने उन सभी पुलिस वालों को चुन-चुन कर मारा जिन्होंने उसका बलात्कार किया था।

पुतलीबाई अपनी गैंग के साथ एक-एक पुलिस वाले के घर गई। फायरिंग करते हुए घर के अंदर घुसी। पुलिस वालों को पकड़ कर उनके हाथों की दसों उंगलियों को काट डाला और उनकी अंगूठियां छीन लीं। इसके साथ ही पुतली ने उनकी बीबियों के कानों को चीरते हुए गहने नोच लिए थे। पुतली बाई की इस खौफनाक वारदात के बाद पूरे चंबल में उसकी दहशत फैल गई। पुलिस की कई टीमें सुल्ताना डाकू और पुतलीबाई के पीछे पड़ गई। पर एनकाउंटर के दौरान पुतलीबाई पुलिस पर भारी पड़ती। मुठभेड़ में पुलिसवालों की हत्या के बाद उसके हाथों को दसों उंगलियों को वह काट कर ले जाती है। जानकार बताते हैं कि कटी उंगलियों को वह बीहड़ में रखती।

इसी बीच अपनी गैंग को बड़ा करने के लिए सुल्ताना डाकू ने डाकू लाखन सिंह से हाथ मिला लिया। 25 मई 1955 को अर्जुनपुर गांव में दोनों डाकुओं के गिरोहों की बैठक चल रही थी। लाखन ने पुलिस को पहले ही इस मीटिंग की जानकारी दे रखी थी। पुलिस ने सुल्ताना की गैंग को घेर लिया। मुठभेड़ में सुल्ताना और उसका राइट हैंड मातादीन मारा जाता है। एनकाउंटर के वक्त पुतली भी वहीं मौजूद थी। पुतलीबाई ने एक पत्र लिखा था, जिसमें उसने कहा था कि सुल्ताना की हत्या पुलिस ने नहीं बल्कि लाखन और बाबू लोहार ने की थी। सुल्ताना की मौत के बाद गैंग की कमान बाबू लोहार के हाथों में आ जाती है।

बाबू लोहर और लाखन हाथ मिला लेते हैं। पुतलीबाई के साथ बाबू लोहार दुष्कर्म करता है। उसे अपनी बीवी बनाता है। डाकुओं से घिरी पुतली कुछ नहीं कर सकती थी इसलिए सब कुछ बर्दाश्त करती गई। बाबू लोहार और लाखन गैंग का बीहड़ में दबदबा हो गया। दोनों गैंग लूट-डकैती की वारदातों को अंजाम देने लगे। एक दिन बीहड़ में बाबू लोहार और लाखन की गैंग साथ में बैठी थी। पुलिस ने हमला बोल दिया। बाबू लोहार, कल्ला और लाखन पुलिस की गोलियों का जवाब देने में लगे थे, तभी पुतली बाई ने बंदूक उठाई और इन तीनों को गोलियों से भून दिया और अपने पति की मौत का बदला ले लिया।

तीनों डकैतों को मारने के बाद पुतलीबाई गैंग की सरदार बन जाती है। गैंग को चलाने के लिए पुतली को और ज्यादा पैसों की जरूरत थी। उसने लूट अपहरण की वारदातों को तेज कर दिया। पूरे चंबल में उसके नाम की तूती बोलने लगी थी। लोग खौफ में जीने लगे थे। अपहरण के बाद फिरौती न मिलने पर हत्या कर देती थी और उसकी लाश को उसके घर पार्सल करवा देती थी। इन खौफनाक वारदातों के चलते पुलिस की कई टीमें जंगल में उतर चुकी थीं। पुलिस के साथ एक मुठभेड़ में पुतली के दाएं कंधे पर गोली लग गई थी। हाथ बुरी तरह जख्मी हो गया था। शरीर में गोली का जहर ना फैले इसलिए पुतली ने अपनी गैंग के एक डाकू से बोलकर अपना हाथ ही कटवा लिया था।

हाथ न होने की वजह से उसे बंदूक चलाने में दिक्कत आने लगी थी इसलिए लेफ्टी पुतली ने बाएं हाथ से गोली चलाना सीखा। कुछ ही दिनों में वो अपने बाएं हाथ से इतना सटीक निशाना लगाने लगी थी कि बाकी डाकू उसका निशाना देख अचंभित होते थे। उसका खौफ इतना ज्यादा बढ़ चुका था कि भिंड, मुरैना, ग्वालियर से लेकर चित्रकूट, इटावा जिलों तक के लोग उसका नाम सुनते ही सहम जाते थे। पुतली की वारदातों के चलते नेहरू सरकार भी सकते में आ गई थी। उन्होंने स्पेशल टीमों के गठन कर तुरंत कार्यवाई करने के निर्देश दिए।

एसटीएफ की टीमों ने जंगल में डेरा डाल दिया। 23 जनवरी 1958 को कोथर गांव में पुलिस ने पुतली की गैंग को चारों तरफ से घेर लिया। कई घंटों की फायरिंग के बाद पुलिस ने पुतली और उसकी गैंग के कई सदियों को मार गिराया। जिस वक्त पुतली का एनकाउंटर हुआ तब वो केवल 32 साल की थी। इस मुठभेड़ में पुलिस के भी कुछ जवान शहीद हुए थे। पुतली की हत्या के बाद लोगों ने उसकी और उसके 8 साथियों की लाशों के साथ मुरैना में प्रदर्शन किया था। पुतली की मां असगरी और उसकी बेटी तन्नो इस घटना के बाद सदमे में थीं। बाद में वो कलकत्ता शिफ्ट हो गईं।

© Copyright @2025 LIDEA. All Rights Reserved.