हरियाणा के सोनीपत जिले से एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है, जो सरकारी सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार की पोल खोलती है। तहसील कार्यालय में प्लॉट की रजिस्ट्री करवाने के बदले रिश्वत लेने का मामला अब और भी गहरा होता जा रहा है। इस घोटाले में अब तक कई चौंकाने वाले खुलासे हो चुके हैं।
एंटी करप्शन ब्यूरो की बड़ी कार्रवाई
करनाल की एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) की टीम ने इस केस में सबसे पहले अर्जीनवीस राजीव कुमार उर्फ यश मल्होत्रा को रंगे हाथों गिरफ्तार किया। यश पर आरोप है कि उसने एक युवक से प्लॉट की रजिस्ट्री के बदले एक लाख रुपये की रिश्वत मांगी और फिर लेते वक्त पकड़ा गया। इस गिरफ्तारी के बाद तहसील कार्यालय से जुड़े कई और चेहरों की जांच शुरू हुई।
सेवादार आशीष की गिरफ्तारी ने खोले और राज
अब इस मामले में तहसील कार्यालय के सेवादार आशीष को भी गिरफ्तार कर लिया गया है। ACB की मानें तो आशीष रोहतक का रहने वाला है और वह अर्जीनवीस यश मल्होत्रा और नायब तहसीलदार के साथ मिलकर रजिस्ट्री के बदले घूस का खेल चला रहा था। घूस की रकम तहसीलदार तक पहुंचाने का काम आशीष के जिम्मे था।
गांव के युवक की शिकायत बनी वजह
ये पूरा मामला तब सामने आया जब गंगाना गांव के सतीश नामक युवक ने ACB में शिकायत दी कि उसने खंदराई गांव के पास एक प्लॉट खरीदा है, जिसकी रजिस्ट्री करवाने के लिए उससे ₹1 लाख की रिश्वत मांगी गई। ACB ने शिकायत को गंभीरता से लिया और एक ट्रैप ऑपरेशन के तहत यश मल्होत्रा को रंगे हाथों रिश्वत लेते हुए 3 अप्रैल को गिरफ्तार कर लिया।
नायब तहसीलदार अभिमन्यु फरार, ACB की तलाश जारी
जैसे ही यश की गिरफ्तारी हुई, जांच में सामने आया कि वह यह रिश्वत नायब तहसीलदार अभिमन्यु के कहने पर मांग रहा था। फिलहाल अभिमन्यु फरार है। ACB ने उसकी कार, दो मोबाइल फोन और उसके घर से करीब ₹2.80 लाख की नकदी बरामद की है। पुलिस उसकी तलाश में कई जगह छापेमारी कर रही है।
रैकेट का नेटवर्क और तरीका
यश मल्होत्रा ने पूछताछ में कबूल किया कि रजिस्ट्री करवाने के बदले ₹150 से ₹250 प्रति वर्ग गज के हिसाब से रिश्वत ली जाती थी। इसमें से वह और आशीष ₹20 प्रति वर्ग गज अपने पास रखते थे, जबकि बाकी रकम आशीष नायब तहसीलदार को पहुंचाता था। इस सुनियोजित तरीके से वे हर दिन हजारों की कमाई कर रहे थे।
रिमांड पर भेजा गया सेवादार
ACB ने आशीष को गिरफ्तार करने के बाद कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे एक दिन की पुलिस रिमांड पर भेजा गया है। इस दौरान उससे और भी खुलासों की उम्मीद की जा रही है।
अब जनता को चाहिए जवाब
सरकारी दफ्तरों में पारदर्शिता और ईमानदारी की बात करने वाले सिस्टम को इस मामले ने पूरी तरह बेनकाब कर दिया है। अब सवाल ये है कि क्या बाकी दोषी भी कानून के शिकंजे में आएंगे? क्या इस तरह के भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी?
राज्य सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी
इस मामले ने न सिर्फ तहसील कार्यालय की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं बल्कि आम जनता के सरकारी सिस्टम पर भरोसे को भी चोट पहुंचाई है। अब देखना ये होगा कि राज्य सरकार इस पर कितनी गंभीरता से कार्रवाई करती है और किस हद तक सफाई की जाती है।
जारी है जांच, आने वाले दिन अहम
ACB की जांच अभी जारी है और इस बात की पूरी संभावना है कि आने वाले दिनों में और नाम सामने आएं। फिलहाल, जनता को उम्मीद है कि इस पूरे रैकेट का सफाया हो और दोषियों को कड़ी सजा मिले।
6. सरकारी दफ्तरों में रिश्वतखोरी की जड़ें कितनी गहरी?
अगर आप कभी किसी तहसील या सरकारी ऑफिस में गए हैं, तो शायद आपको भी वो लंबी कतारें, धीमी प्रक्रिया और ‘काम जल्दी करवाना है तो…’ जैसे जुमले सुनने को मिले होंगे। हरियाणा के इस केस ने एक बार फिर दिखा दिया कि कैसे सरकारी दफ्तरों में रिश्वत एक ‘अनकही प्रक्रिया’ बन चुकी है।
इस केस में जिस तरह से नायब तहसीलदार, अर्जीनवीस और सेवादार मिलकर एक सिस्टम चला रहे थे, उससे साफ है कि ये कोई एक बार की बात नहीं थी। ये एक संगठित नेटवर्क था, जिसमें हर व्यक्ति की एक तय भूमिका थी। ग्राहक से पैसे लेना, तय हिस्सा रखना, और फिर ऊपर तक पहुंचाना—ये एक तरह की ‘भ्रष्टाचार की चैन’ है।
हर वर्ग गज पर रिश्वत का रेट तय होना, दिखाता है कि सिस्टम में कितनी सफाई से ये काली कमाई का खेल खेला जा रहा था। ये कोई आम गड़बड़ी नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था की पोल खोलने वाला मामला है।
7. आम आदमी की जेब पर डाका
इस घोटाले का सबसे बड़ा नुकसान किसे हुआ? जवाब साफ है—आम आदमी को। एक आम इंसान जब प्लॉट खरीदता है, तो वो अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई से ये सपना पूरा करता है। लेकिन जब उस प्लॉट की रजिस्ट्री करवाने के लिए भी उसे रिश्वत देनी पड़े, तो ये सीधा-सीधा लूट है।
कल्पना कीजिए, आपने ₹10 लाख में एक प्लॉट खरीदा, और अब आपको उसकी रजिस्ट्री के लिए ₹1 लाख रिश्वत देनी पड़ रही है। यानि कुल कीमत का 10% सिर्फ भ्रष्टाचार में चला गया। और यही पैसे सरकारी खजाने में टैक्स के रूप में नहीं जा पाते, बल्कि कुछ लोग मिलकर अपनी जेबें भर लेते हैं।
ये बात केवल पैसे की नहीं, भरोसे की भी है। जब आम आदमी को हर सरकारी काम के लिए रिश्वत देनी पड़ती है, तो सिस्टम पर से उसका विश्वास उठने लगता है।
8. टेक्नोलॉजी क्यों नहीं रोक पा रही भ्रष्टाचार?
आधुनिक युग में सरकार ने कई ई-गवर्नेंस सिस्टम शुरू किए हैं—ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन, डिजिटल पेमेंट, बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन आदि। फिर भी, इस तरह की घटनाएं क्यों सामने आ रही हैं?
इसका एक बड़ा कारण है—मानव हस्तक्षेप। जब तक किसी प्रक्रिया में इंसान शामिल रहेगा, और जब तक उसकी नीयत खराब होगी, भ्रष्टाचार के रास्ते खुले रहेंगे। यश मल्होत्रा और आशीष जैसे लोग इन तकनीकी व्यवस्थाओं को भी चकमा देने में माहिर हो जाते हैं।
दूसरा कारण है—जनता की जागरूकता की कमी। बहुत से लोग ये सोचकर रिश्वत दे देते हैं कि “सिस्टम ऐसा ही है”, या “क्या फर्क पड़ेगा?” लेकिन यदि हर व्यक्ति खड़ा होकर अपनी आवाज़ उठाए, तो सिस्टम को झुकना पड़ेगा।
9. राजनीतिक और प्रशासनिक प्रतिक्रिया
इस घटना के सामने आने के बाद स्थानीय प्रशासन और सरकार की प्रतिक्रिया भी लोगों की नजर में है। क्या सिर्फ गिरफ्तारी ही काफी है? या फिर बड़े अधिकारियों के खिलाफ भी सख्त कदम उठाए जाएंगे?
जनता अब देख रही है कि क्या सरकार इस मामले को उदाहरण बना कर पेश करेगी, या फिर ये भी बाकी मामलों की तरह धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में चला जाएगा। अगर राज्य सरकार ईमानदार है, तो उसे इस पूरे नेटवर्क की तह तक जाना होगा, और हर उस व्यक्ति को सजा दिलवानी होगी जो इसमें शामिल था।
क्योंकि अगर इस बार भी ढील दी गई, तो ये भ्रष्टाचार का नेटवर्क और मजबूत हो जाएगा।
10. कैसे हो सकती है इस सिस्टम की सफाई?
अब सवाल है—क्या इस सिस्टम को साफ किया जा सकता है? जवाब है—हां, लेकिन इसके लिए कुछ जरूरी कदम उठाने होंगे:
ज़ीरो टॉलरेंस नीति: सरकार को भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून बनाने और उनका क्रियान्वयन करने की ज़रूरत है।
डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन: हर प्रक्रिया को पूरी तरह से ऑनलाइन और ट्रैकेबल बनाना चाहिए।
Whistleblower सुरक्षा: जो लोग भ्रष्टाचार की शिकायत करते हैं, उन्हें पूरी सुरक्षा मिलनी चाहिए।
पब्लिक अवेयरनेस: लोगों को उनके अधिकारों के बारे में जानकारी देना बेहद ज़रूरी है।
साफ व्यवस्था सिर्फ सरकारी कदमों से नहीं आएगी, इसके लिए आम जनता को भी जागरूक और सक्रिय होना होगा।
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