सिगरेट पीने वालों की दर पान मसाला-गुटखा और तंबाकू का सेवन करने वालों की तुलना में लगभग दस गुना अधिक है। यही कारण है कि सिगरेट से प्राप्त कर में वृद्धि हुई है और पान मसाला तथा तंबाकू उत्पादों से प्राप्त कर में कमी आई है। शीतल पेय, विशेषकर ऊर्जा पेय पीने वाले लोगों की संख्या में भी तेजी से वृद्धि हुई है।
राज्य में सिगरेट की खपत तेजी से बढ़ी है। जीएसटी के संदर्भ में सिगरेट पर सबसे अधिक वृद्धि यानी 7.11 प्रतिशत रही। तम्बाकू उत्पादों की वृद्धि दर घटकर -1.75 हो गयी। यानी गुटखा और पान मसाला की तुलना में सिगरेट की मांग करीब दस गुना बढ़ गई है। पिछले दो वर्षों में सिगरेट से जीएसटी के रूप में 842 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं। जबकि तंबाकू उत्पादों से 1213 करोड़ रुपए प्राप्त हुए। यद्यपि तम्बाकू उत्पादों से प्राप्त कर बहुत अधिक है, लेकिन पिछले दो वर्षों में यह 612 करोड़ रुपये से घटकर 601 करोड़ रुपये रह गया है। वहीं, सिगरेट से प्राप्त कर दो साल में 406 करोड़ रुपये से बढ़कर 436 करोड़ रुपये हो गया।
सिगरेट और गुटखा से 2 लाख टन कचरा पैदा होता है
राष्ट्रीय कैंसर रोकथाम एवं अनुसंधान संस्थान (एनआईसीपीआर) के अनुसार, सिगरेट, बीड़ी, गुटखा, खैनी आदि सभी प्रकार के तंबाकू उत्पादों से हर साल 1.7 लाख टन कचरा उत्पन्न होता है, जिसके इस वर्ष तक बढ़कर 2 लाख टन से अधिक हो जाने की संभावना है। इसमें अकेले उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी सबसे अधिक 22 प्रतिशत है। यह रिपोर्ट भारत में तंबाकू उत्पाद अपशिष्ट के पर्यावरणीय बोझ द्वारा तैयार की गई है। तदनुसार, 70 ब्रांड की सिगरेट, 94 ब्रांड की बीड़ी तथा 58 ब्रांड की धूम्ररहित तम्बाकू का परीक्षण किया गया। इसमें प्लास्टिक, कागज, रैपर और फिल्टर के विभिन्न भारों को ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे इंडिया के आंकड़ों के साथ जोड़ा गया। इसमें पाया गया कि तम्बाकू उत्पादों से उत्पन्न कुल अपशिष्ट में 73,500 टन प्लास्टिक था।