इस तरह प्रकट हुए सालासर में दाढ़ी मूंछों वाले बालाजी, करते हैं चमत्कार
Samachar Nama Hindi April 12, 2025 01:42 PM

हनुमान जयंती के अवसर पर राजस्थान के सालासर बालाजी धाम में विशाल आयोजन होता है। आज देश के हर राज्य से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचे हैं। कुछ लोग पैदल जाते हैं, कुछ लोग वाहन से। अपार उत्साह और प्रार्थना के साथ। यह माहौल यहां के मुख्य मेले से कम नहीं है, जो हर साल शरद पूर्णिमा पर आयोजित होता है।

भगवान को फूल, माला, प्रसाद, झंडे और नारियल चढ़ाए जाते हैं। सालासर में भी आपको हर दूसरे या तीसरे भक्त के हाथ में ये सारी चीजें मिल जाएंगी, लेकिन इन सबमें सबसे खास चीज है नारियल। इस मंदिर में हर साल लगभग 25 लाख नारियल चढ़ाए जाते हैं। इन नारियलों को दोबारा इस्तेमाल से बचाने के लिए उन्हें खेत में गड्ढा खोदकर दबा दिया जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि यदि आप सालासर बालाजी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो आपको उन्हें प्रसाद के साथ नारियल और ध्वजा भी चढ़ानी चाहिए। इसी मान्यता ने यहां नारियल को भक्ति का प्रतीक बना दिया है। पिछले 200 वर्षों से श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित खेजड़ी के पेड़ पर लाल कपड़े में नारियल बांधकर अपनी मनोकामना मांगते आ रहे हैं, लेकिन यह कहानी सिर्फ इतनी ही नहीं है।

इस तरह नारियल बांधने की प्रथा शुरू हुई।

ऐसा कहा जाता है कि सीकर के राव राजा देवी सिंह की कोई संतान नहीं थी। वह एक पुत्र को गोद लेने के लिए बलारन जा रहा था। इस दौरान ढोलास गांव के पास एक विशाल पेड़ की शाखा टूटकर गिर गई। मोहन दासजी के गुरु भाई गरीब दासजी यहां एक झोपड़ी में रहते थे। जब राव राजा को हाथी पर सवार होकर यहां से गुजरना कठिन लगा तो उन्होंने इसे कटवाने का आदेश दिया, लेकिन गरीबदासजी ने राव राजा को उसी मार्ग से गुजरने को कहा। जब राजा वहां से गुजर रहा था तो पेड़ की शाखा अपने आप ऊंची हो गई।

यह चमत्कार देखकर देवी सिंह ने गरीब दासजी को प्रणाम किया और उन्हें संतान सुख न मिलने की बात बताई। फिर उन्होंने महाराजा देवी सिंह से अपने बच्चों के विकास के लिए प्रतिज्ञा स्वरूप एक नारियल बांधने को कहा। जब महाराजा की इच्छा पूरी हुई तो यह प्रथा बढ़ती गई। पिछले कई वर्षों से हर साल लाखों श्रद्धालु यहां मन्नत के तौर पर नारियल बांधते आ रहे हैं।

खेजड़ी के पेड़ पर नारियल बांधे जाते हैं।

हनुमान सेवा समिति के अध्यक्ष यशोदानंदन पुजारी ने बताया कि सालासर बालाजी मंदिर में बालाजी के दर्शन के बाद श्रद्धालु महात्मा मोहनदास महाराज की धूनी के पास तथा मंदिर के सामने खेजड़ी के पेड़ पर अपनी मनोकामना के नारियल लाल झण्डों में लपेटकर बांधते हैं। हालांकि, कुछ भक्त इसे तोड़कर प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं, जिसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।

एक बार नारियल का उपयोग हो जाने के बाद उसका पुनः उपयोग नहीं किया जा सकता।

पुजारी यशोदानंदन ने बताया कि सालासर बालाजी मंदिर में प्रसाद के रूप में चढ़ाई गई किसी भी वस्तु का न तो दोबारा उपयोग किया जाता है और न ही उसे बेचा जाता है। जहां तक बधाई के लिए नारियलों का सवाल है, यदि नारियल अधिक हो जाएं तो उन्हें सम्मानपूर्वक उतारकर ट्रैक्टर ट्रॉली से खेतों में ले जाया जाता है।

सपने के बाद बदल गई परंपरा

यहां प्रतिदिन पांच से सात हजार नारियल चढ़ाए जाते हैं। मेले के दिनों में यह संख्या चार से पांच गुना बढ़ जाती है। यह परंपरा मंदिर की स्थापना के समय से ही चली आ रही है। ऐसे में यहां आज तक करोड़ों नारियल चढ़ाए जा चुके हैं, लेकिन लोगों की आस्था और मनोकामना से जुड़े इन नारियलों को मंदिर में चढ़ाने के बाद न तो फेंका जाता है, न जलाया जाता है और न ही किसी अन्य काम में इस्तेमाल किया जाता है। इसे सालासर बालाजी मंदिर से लगभग 11 किलोमीटर दूर मुरडाकिया गांव के पास लगभग 250 बीघा जमीन में खोदे गए एक गड्ढे में दफना दिया गया है, जो आम जनता की पहुंच से दूर है। इस तरह से नारियल दबाने के पीछे एक दिलचस्प कहानी है।

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