कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने रविवार को कहा कि नागरिकों के सूचना के अधिकार को विधि निर्माताओं के सूचना के अधिकार के बराबर मानने वाले अधिनियम के प्रावधान को हटाना “पूरी तरह से अनुचित है।” उन्होंने केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) मंत्री अश्विणी वैष्णव से 2005 के मूल अधिनियम में किए गए संशोधन की समीक्षा करने और उसे निरस्त करने की अपील की।
जयराम रमेश का यह बयान वैष्णव द्वारा उनके पत्र का जवाब देने के कुछ दिनों बाद आया है। इस पत्र में कांग्रेस नेता ने डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (डीपीडीपी) अधिनियम 2023 की धारा 44(3) पर चिंता जताई थी, जो सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम 2005 के तहत व्यक्तिगत जानकारी साझा करने पर “प्रतिबंध” लगाती है।
जयराम रमेश के पत्र के जवाब में वैष्णव ने कहा कि ऐसी व्यक्तिगत जानकारियां, जो विभिन्न कानूनों के तहत सार्वजनिक प्रकटीकरण के अधीन हैं, उनका नये डेटा संरक्षण नियम के लागू होने के बाद भी आरटीआई अधिनियम के तहत साझा किया जाना जारी रहेगा।
कांग्रेस नेता ने वैष्णव को रविवार को लिखे नये पत्र में कहा, “डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (डीपीडीपी) अधिनियम, 2023 की धारा 44 (3) के जरिये आरटीआई अधिनियम, 2005 में किए गए दूरगामी प्रभाव वाले संशोधन के सिलसिले में 23 मार्च, 2025 के मेरे पत्र का 10 अप्रैल, 2025 को जवाब देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।”
उन्होंने कहा, “अब मैं इस विनाशकारी संशोधन के बचाव में आपकी ओर से दिए गए तर्क के जवाब में चार बिंदु रखना चाहता हूं। पहला-आपके पत्र में आरटीआई अधिनियम, 2005 के अंतर्गत खुलासों को संरक्षित करने के लिए डीपीडीपी अधिनियम, 2023 की जिस धारा 3 का जिक्र किया गया है, वह पूरी तरह से अप्रासंगिक है, क्योंकि आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 8(1) में ही बड़े पैमाने पर संशोधन किया गया है।”
रमेश ने कहा, "डीपीडीपी अधिनियम की धारा 3 अब केवल संशोधित अधिनियम के अनुसार खुलासे की रक्षा करेगी, जो सभी व्यक्तिगत सूचनाओं को सुलभ होने से छूट देती है।”
उन्होंने कहा कि आरटीआई अधिनियम, 2005 के क्रियान्वयन ने दर्शाया है कि यह कानून ऐसी व्यक्तिगत जानकारी का प्रकटीकरण रोकने में सक्षम है, जिसका किसी सार्वजनिक गतिविधि या सार्वजनिक हित से कोई लेना-देना नहीं है, जैसा कि शीर्ष अदालत और विभिन्न उच्च न्यायालयों के कई फैसलों से पता चलता है।
कांग्रेस नेता ने तर्क दिया कि आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1) के उस प्रावधान को हटाना “पूरी तरह से अनुचित” है, जो नागरिकों के सूचना के अधिकार को विधि निर्माताओं के सूचना के अधिकार के बराबर मानता है।
उन्होंने कहा, “तीसरा-यह प्रावधान वास्तव में केवल व्यक्तिगत सूचना के प्रकटीकरण को मिली छूट पर ही, बल्कि आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 8(1) में दी गई सभी छूट पर लागू होता है। चौथा-आपने उच्चतम न्यायालय के पुट्टास्वामी फैसले का जिक्र किया है। कृपया याद रखें कि इस फैसले में कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं किया गया है कि आरटीआई अधिनियम, 2005 में संशोधन की जरूरत है।”
रमेश ने तर्क दिया, “यह फैसला इस बात पर जोर देता है कि निजता की सुरक्षा और संस्थागत पारदर्शिता को बढ़ावा देना परस्पर अनन्य नहीं हैं, बल्कि संयुक्त रूप से आवश्यक हैं।”
उन्होंने कहा, “इसलिए मैं आपसे फिर से दृढ़तापूर्वक आग्रह करता हूं कि आप आरटीआई अधिनियम, 2005 में किए गए संशोधन पर रोक लगाएं, उसकी समीक्षा करें और उसे निरस्त करें। जैसा कि आपने देखा होगा, नागरिक संस्थाओं के सदस्यों, शिक्षाविदों और राजनीतिक दलों के नेताओं के एक व्यापक वर्ग ने इस मुद्दे पर गंभीर चिंता जताई है।”
रमेश ने 23 मार्च को वैष्णव को लिखे अपने पत्र में कहा था कि डीपीडीपी अधिनियम की धारा 44 (3) सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत व्यक्तिगत जानकारी साझा करने पर रोक लगाती है।
उन्होंने कहा था कि डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 की धारा 44 (3) सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 8 की उप-धारा (1) में खंड जे (व्यक्तिगत जानकारी से संबंधित सूचना) की जगह लेने का प्रयास करती है।
रमेश ने कहा कि इस संशोधन के कारण उप-धारा के सभी प्रावधान समाप्त हो जाएंगे, जिसमें वह प्रावधान भी शामिल है, जिसमें कहा गया है कि “संसद या राज्य विधानमंडल को जो सूचना देने से इनकार नहीं किया जा सकता, उसे किसी व्यक्ति को भी मुहैया कराने से मना नहीं किया जाएगा।”