इतिहास में कई ऐसी घटनाएं हैं जो आज भी लोगों को चौंका देती हैं। उनमें से एक अजीब और डरावनी घटना फ्रांस के स्ट्रासबर्ग शहर में हुई, जब सैकड़ों लोग अनजाने में नाचते-नाचते अपनी जान गंवा बैठे। यह कोई त्योहार नहीं था, बल्कि एक अजीब महामारी थी, जिसे 'डांसिंग प्लेग ऑफ 1518' के नाम से जाना जाता है।
जुलाई 1518 में, स्ट्रासबर्ग की गलियों में एक महिला, Frau Troffea, अचानक नाचने लगी। न तो कोई संगीत था और न ही कोई उत्सव, फिर भी वह लगातार थिरकती रही। यह नृत्य एक दिन, दो दिन नहीं, बल्कि पूरे सात दिनों तक चला। देखते ही देखते, अन्य लोग भी इस रहस्यमयी नृत्य में शामिल हो गए। अगस्त तक, इस संख्या 400 से अधिक हो गई, और कई लोग इस 'डांसिंग प्लेग' के कारण अपनी जान गंवा बैठे।
स्थानीय प्रशासन ने इसे रोकने के लिए संगीतकारों और पेशेवर नर्तकियों को बुलाया और एक स्टेज तैयार किया ताकि लोग 'अपना मन हल्का कर सकें'। लेकिन इसका उल्टा असर हुआ। लोग थकावट, भूख और डिहाइड्रेशन से मरते चले गए। उस समय के चिकित्सकों ने इसे 'हॉट ब्लड' नामक बीमारी का नाम दिया, यह मानते हुए कि शरीर में गर्म खून जमा हो गया है, जिससे लोग अनायास नाचने लगते हैं। लेकिन यह तर्क मृतकों की संख्या को देखते हुए अपर्याप्त साबित हुआ।
Edinburgh University Press में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, उस समय की घटनाओं को अक्सर संत St. Vitus के श्राप से जोड़ा जाता था। लोग मानते थे कि यह संत नृत्य की बीमारी का श्राप देता है। 1518 में, जब स्ट्रासबर्ग भुखमरी और महामारी जैसी समस्याओं से जूझ रहा था, तो मानसिक तनाव और अंधविश्वास ने इस सामूहिक उन्माद (Mass Hysteria) को जन्म दिया। यह पहली बार नहीं था जब ऐसी कोई घटना सामने आई हो। 11वीं सदी में Saxony के Kölbigk शहर में भी इसी तरह की 'डांसिंग प्लेग' की रिपोर्ट मिली थी। लेकिन 1518 का स्ट्रासबर्ग मामला इसलिए खास बन गया क्योंकि इसने मध्यकालीन मान्यताओं और आधुनिक सोच के बीच एक नया अध्याय लिखा।